Damoh. दमोह जिले के हटा को बुंदेलखंड की उपकाशी की उपाधि दी गई है। यहां मां चंडी जी का मंदिर सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है और आज भी यहां गुजराती परंपरा के अनुसार माता रानी का पूजन होता है। ऐसा कहा जाता है हीरा कारोबारी इस प्रतिमा को लेकर आए थे।
आदिशक्ति रूप में हैं विराजमान
मां चंडी जी की प्रतिमा आदिशक्ति मां दुर्गा चंडी रूप में विराजमान हैं । बताते हैं कि यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी। हीरा तरासने के लिए जो कारोबारी आते है वह इस प्रतिमा को लाए थे। नारायण शंकर पंड्या की पत्नी ने मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया था बताया जाता है कि यह उनकी कुलदेवी है। एक यह भी किवदंती है कि उनके परिवार के ही लोग कुल देवी के रुप में मां चंडी जी की प्रतिमा लेकर आए थे और एक छोटे से मंदिर में विराजमान किया था । शुरुआत में उनके परिवार के सदस्य ही मंदिर में दर्शन करने जाते थे , धीरे - धीरे लोगों की आस्था मंदिर में बढ़ गई और लोगों की भीड़ उमड़ने लगी।
480 साल पुराना बताया जाता है मंदिर
ऐसा बताते हैं कि हटा में यह मंदिर करीब 480 साल पुराना है पर इसके खास प्रमाण आज तक सामने नहीं आए कि इसकी स्थापना किस सन् सवंत में की है। खास बात यह है कि पड्या परिवार के सदस्य अभी भी हटा में निवासरत हैं और इस परिवार के जो सदस्य दूसरी जगहों पर जाकर बस गए हैं , उनकी आस्था अब भी मंदिर से जुड़ी हुई है । वे मंदिर के लिए हर तीज़ त्यौहार पर आते हैं और कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं । इसमें भी उनका भरपूर सहयोग होता है । मंदिर की पूजा पद्धति अभी भी गुजराती परंपरा के हिसाब से चलती है। यहां के मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष नौ चंडी एवं शत चंडी महायज्ञ का आयोजन होता है । इसके साथ ही चौत्र व शारदेय नवरात्रि में नौ दिवसीय मेला लगता है।
दमोह के दीपक पुस्तक में मिलता है उल्लेख
इस मंदिर का उल्लेख दमोह के दीपक नामक पुस्तक में किया गया है। मंदिर के पुजारी ज्योति गोस्वामी ने बताया कि नारायण शंकर पंड्या की पत्नी जशोदा बाई ने 1933 में मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया था । जिसका शिलालेख अभी भी मंदिर में मौजूद है । दमोह का दीपक पुस्तक में उल्लेख है कि हटा के चंडीजी मंदिर में महामारी के दौरान यहां दूर दूर से लोगों ने बचने के लिए आश्रय लिया और बचाव भी हुआ। नौ दिन लगातार मां चंडी का विशेष श्रृंगार किया जाता है और शाम को महाआरती की जाती हैं जिसमें बड़ी संख्या में श्रृद्धालुओं की उपस्थिति रहती है।