Guna. प्रदेश के वन्य जीवों की रक्षा में सबसे जघन्य हत्याकांड में बीच जंगल में तीन पुलिसकर्मियों की हत्या(murder of three policemen) मामले में एडीएम की मजिस्ट्रियल जांच के चलते 484 पेज का चालान कोर्ट में पेश किया गया, जिसमें 484 पेज के चालान में मोबाइल डिटेल, 35 फोटो, बयान, पीएम रिपोर्ट शामिल है, लेकिन पुलिस अभी तक काले हिरण के अवशेष(black deer remains) ओर गायब सिर बरामद नहीं कर पाई है, पूरे प्रकरण में पुलिस ने 143 लोगों को बनाया गवाह है।
कई एफआईआर पर उठे कई सवाल
बीते माह पूर्व आरोन थानान्तर्गत जंगल में वन्य जीव शिकारियों ओर पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ के चलते तीन पुलिस के जवानों की हत्या मामले में अलग-अलग पुलिस थानों में दर्ज एफआईआर कई सवालों को जन्म दे रही है। पुलिस और वन विभाग ब्लैक बग के धड़ बरामद नहीं कर पाए हैं। ब्लैक बग के धड़ बरामद करने एक टीम भोपाल से भी आई थी। उनकी तलाश के लिए स्नीफर डॉग भी वहां से आए थे।
एनकाउन्टर मामले मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत
शिकारी- पुलिस की मुठभेड़ के बाद एनकाउंटर में मारे गए लोगों के मामले को लेकर मानव अधिकार आयोग को शिकायत की गई थी। इसके अलावा आरोन के इस कांड को लेकर जिला न्यायालय में भी एक याचिका दायर पेश की गई थी। यह मामला अब मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में भी पहुंच गया है। बता दें कि तीन माह पूर्व आरोन में शिकारी और पुलिसकर्मियों के बीच जंगल में हुई मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्त्या कर दी गई थीं। इस मामले में आरोन थाना पुलिस ने न्यायालय में 484 पेज का चालान पेश कर दिया है, लेकिन अभी तक पुलिस उन काले हिरणों के धड़ नहीं ढूंढ़ पाई, जिनको आरोपियों ने शिकार कर मार गिराया था। उधर इस पूरे मामले की गुना जिला प्रशासन के एडीएम आदित्य प्रताप सिंह के यहां मजिस्ट्रियल जांच चल रही है। संभावना है कि इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों और कर्मियों पर इस जांच रिपोर्ट के आधार पर दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है।
तो बच सकते थे पुलिसकर्मी
भले ही पुलिस ने आरोन में इस मुठभेड़ में शिकारियों को पकड़ने के दौरान एनकाउन्टर कर दिया हो या कोर्ट में चालान पेश कर दिया हो, लेकिन इस पूरी घटना ने गुना की पुलिस को उलझा दिया है। आरोन पुलिस थाने के तत्कालीन प्रभारी ने यदि शिकारियों के होने की सूचना को गंभीरता से लिया होता और पर्याप्त पुलिस फोर्स भेजा होता तो तीन पुलिसकर्मी शहीद होने से बच सकते थे। आरोन में शिकारी और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ को लेकर एक नहीं चार-चार एफआइआर हुई हैं। अलग-अलग पुलिस थानों में लिखी गई 4 एफआइआर का कोर्ट परीक्षण करा ले तो इस पुलिस केस में कई कमी उजागर होकर सामने आएगी।
143 लोगों को बनाया गवाह
गुना पुलिस हत्याकांड के मामले में बुधवार को पुलिस ने 90 दिन के भीतर पुलिस ने 484 पेज का चालान विशेष न्यायाधीश रविन्द्र कुमार भद्रसेन की कोर्ट में चालान पेश किया ओर इसमें 143 लोगों को गवाह बनाया गया है।
एडीएम के यहां भी चल रही है जांच
आरोन के इस मामले को लेकर एडीएम आदित्य सिंह की कोर्ट में जांच चल रही है। वो भी गहराई से जांच और बयानों के दौरान पूछताछ कर रहे हैं। अलग-अलग लोगों से पूछताछ कर बयान एडीएम कोर्ट में दर्ज हो रहे हैं। सूत्र बताते है कि एडीएम की जांच के बाद कई दोषियों पर कार्रवाई की गाज गिर सकती है। जिला कोर्ट में जो चालान पुलिस ने पेश किया है, वह 484 पेजों का है। इसमे आरोपियों के मोबाइल की डिटेल, घटना से संबंधित 35 फोटो, आरोपियों के बयान, गवाहों के कथन सहित पीएम रिपोर्ट, एमएलसी रिपोर्ट, जाति प्रमाण पत्र आदि शामिल किए गए हैं।
किसान, पुलिसकर्मी, डॉक्टर शामिल किए गए हैं। आरोपियों के दो धाराओं में लिए कथन भी शामिल हैं। 13-14 मई की दरम्यानी रात में आरोन के शहरोक की पुलिया के पास पुलिस और शिकारियों के बीच मुठभेड़ हुई थी। वन्यजीव काले हिरण और मोर का शिकार कर ले जा रहे शिकारियों से पुलिस का आमना-सामना हो गया था। मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मी दरोगा राजकुमार जाटव, प्रधान आरक्षक नीरज भार्गव और आरक्षक संतराम मीणा की शिकारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिनको बाद में राज्य शासन ने शहीद का दर्जा दिया था। तीन पुलिसकर्मियों की हत्या का मामला प्रदेश में गूंजा, तो गुना की पुलिस तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राजीव कुमार मिश्रा के नेतृत्व में सक्रिय हुई और आनन-फानन में तीन शिकारियों को पुलिस ने एनकाउन्टर में मार दिया था। एक आरोपी की लाश राघौगढ़ स्थित उसके घर पर मिली थी। 7 आरोपी गिरफ्तार होकर जेल में बंद हैं। इस मामले में ग्वालियर रेंज के तत्कालीन आईजी अनिल शर्मा और गुना पुलिस अधीक्षक राजीव कुमार मिश्रा का ट्रांसफर कर दिया गया।
वन्य प्राणियों के अवशेष बरामद नहीं हुए
शिकारियों की ताबड़तोड़ फायरिंग में गुना के तीन पुलिसकर्मी शहीद हो गए। घटना वाली रात तत्कालीन टीआइ अगर पूरे घटनाक्रम पर नजर रखते, वरिष्ठों को सूचना देते तो शहजाद और ज़हीर एनकाउंटर की तरह ही पूरी तैयारी के साथ पुलिस पार्टियां पहुंचती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आरोपियों को पकड़ने पहुंचे पुलिस बल से कोई संपर्क साधने की कोशिश नहीं की गई। थाने पर ही सूचना घटना के 2 घंटे बाद 5.30 बजे पहुंची, इसके बाद एफआइआर दर्ज करने में 13 घंटे लगा दिए। इसमें सभी आरोपी अज्ञात बताए गए, जबकि जिनको एनकाउंटर में मार गिराया उनको थाने का स्टाफ पहले से जानता था। मामला शिकार को लेकर घटित होना सामने आया है, लेकिन एनकाउंटर में मारे गए या अपराध में गिरफ्तार किसी आरोपी के पास शिकार किए वन्य प्राणियों के अवशेष बरामद नहीं हुए। न ही बरामद करने के प्रयास हुए। पूरे मामले को राजनीतिक तूल देने कांग्रेस और भाजपा में बयानबाजी एवं आरोप प्रत्यारोप लगाकर प्रदेश में माहौल गर्म रहा। हालांकि मामला अब जांच के चलते ठंडा हो चला है।