Bhopal. मध्यप्रदेश के मामा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 5 लाख भांजे-भांजियां इन दिनों साइकिल न मिल पाने की वजह से बेहद दुखी और परेशान हैं पर मामा भी क्या करें, सरकार के पास साइकिल खरीदने के लिए पैसे ही नहीं हैं। ऐसे में मजबूरन इन बच्चों को पैदल या निजी वाहनों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेकर घर से स्कूल आना-जाना पड़ रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को मामा कहते थकते नहीं है। प्रदेश के बेटे-बेटियों को वह अपने प्यारे भांजा-भांजिया कहकर संबोधित करते हैं। एक नेता का एक सूबे के मुखिया का प्रदेश की जनता के प्रति इस तरह का भाव अच्छा है। हम भी इसका समर्थन करते हैं लेकिन क्या सिर्फ भांजा भांजी कह देने भर से उनकी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा, नहीं बिल्कुल नहीं। द सूत्र की पड़ताल आज यही खुलासा करेगी कि कैसे मामा की सरकार में 5 लाख भांजा-भांजियों को घर से स्कूल तक आने-जाने के लिए साइकिल देने की व्यवस्था नहीं है। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले पात्र स्टूडेंट को साइकिल बांटने के लिए सरकार के पास पैसा ही नहीं है। मजबूरन इन स्टूडेंट को पैदल या अपनी व्यवस्थाओं से स्कूल आना-जाना पड़ रहा है।
सिर्फ आदिवासी ब्लाक में पहुंचाई गई 40 हजार साइकिलें
प्रदेश में इस शैक्षणिक सत्र करीब 5.40 लाख बच्चों को साइकिल मिलनी थी। साइकिल खरीदने टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। वित्त से अनुपूरक बजट में 160 करोड़ मांगे थे, लेकिन एक रुपया नहीं मिला। विभाग के पास 20 करोड़ रुपए थे। इनमें से करीब 15 करोड़ खर्च कर सिर्फ आदिवासी ब्लॉक वाले 40 हजार बच्चों के लिए ही साइकिल दी गई। हालांकि अब तक इन साइकिलों का भी पूरी तरह से वितरण नहीं हो पाया है। इस संबंध में लोक शिक्षण संचालनालय यानी डीपीआई में साइकिल वितरण योजना के प्रभारी और उप संचालक सुशील परसाई से बात की तो वह बता ही नहीं पाए कि स्टूडेंट को कब तक साइकिल मिल पाएगी या किन कारणों से अब तक साइकिल नहीं मिल पाई है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से बात कीजिए।
करोड़ों की 66 हजार साइकिल दो साल से खा रहीं धूल
मध्यप्रदेश में शैक्षणिक सत्र 2019-20 के लिए 24 जून 2019 को 4.32 हजार स्टूडेंट को साइकिल का वितरण हुआ था। इसके बाद से प्रदेश में स्टूडेंट को साइकिल वितरित नहीं हुई। 2019-20 में स्कूल शिक्षा विभाग ने करीब 5 लाख साइकिल खरीद ली। तब से 66 हजार साइकिल धूल ही खा रही हैं। यदि एक साइकिल की कीमत 3 हजार से 4 हजार मानी जाए तो इन साइकिलों की कीमत करीब 20 से 25 करोड़ है। इनकी मरम्मत कर इन्हें स्टूडेंट को वितरित कर भी दिया जाए तब भी 4.35 स्टूडेंट को साइकिल नहीं मिल पाएगी। इससे विवाद की स्थिति बन जाएगी। यही कारण है कि विभाग फिलहाल इन साइकिलों को भी बांट नहीं पा रहा है। इस संबंध में स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार से मोबाइल पर जब बात करना चाही तो उनका नंबर पीएसओ ने अटेंड किया और गुजरात चुनाव में व्यस्तता का हवाला देकर फिलहाल बात कराने से मना कर दिया।
कोरोना काल में एडमिशन लेने वाले 8.60 लाख को मिलेगी ही नहीं साइकिल
कोरोनाकाल में 6वीं और 9वीं कक्षा में आने का खामियाजा सूबे के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 8.60 लाख स्टूडेंट भुगत रहे हैं। इन स्टूडेंट को सरकार से साइकिल (School bicycle) नहीं मिल पाएगी। इनकी गलती सिर्फ यह है कि यह कोरोनाकाल यानी वर्ष 2020-21 और 2021-22 में कक्षा 6वीं और 9वीं में आए। इन दो सालों में नियमित रूप से शैक्षणिक सत्र पूरा नहीं चल पाया, जिसके कारण इन दो सालों के पात्र स्टूडेंट को साइकिल देने के लिए कोई प्रावधान ही नहीं है। यानी भले ही ये स्टूडेंट अब 7-8वीं कक्षा में पढ़ रहे हों या 10वीं-11वीं के स्टूडेंट हो, इन्हें अपने ही साधन से स्कूल आना-जाना होगा। इन्हें सरकार की ओर से साइकिल नहीं मिल पाएगी। साइकिल वितरण को लेकर डीपीआई के कमिश्नर अभय वर्मा से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन न तो उनसे संपर्क हुआ और न ही उन्होंने मैसेज का कोई रिप्लाई दिया।
यह है नि:शुल्क साइकिल वितरण योजना
निःशुल्क साइकिल वितरण योजना का फायदा ऐसे ग्रामीण क्षेत्र के स्टूडेंट्स को मिलता है, जो सरकारी सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं और वह जिस गांव के निवासी हैं उस गांव में सरकारी माध्यमिक विद्यालय/हाई स्कूल संचालित नहीं है। ऐसे स्टूडेंट पढ़ने के लिए किसी अन्य गांव/शहर के सरकारी स्कूल में जाते है, उन्हें निःशुल्क साइकिल दी जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसे मोहल्ले/टोले जिनकी दूरी स्कूल से 2 किमी से ज्यादा है तो ऐसे टोले से विद्यालय में आने वाले छात्रों को भी साइकिल दी जाती है। ग्रामीण क्षेत्र में स्थित कन्या छात्रावास में अध्ययनरत छात्राएं जिनका स्कूल छात्रावास से 2 कि.मी या अधिक दूरी पर है, उन्हें भी साइकिल मिलती है। छात्रावास में रहने वाली बालिकाएं इनका प्रयोग कर सकेंगी। छात्रावास छोड़ते समय साइकिलें छात्रावास में ही जमा करना आवश्यक होता है। शुरूआत में इसमें सिर्फ 9वीं कक्षा के स्टूडेंट को शामिल किया गया था, बाद में इसमें 6वीं कक्षा के स्टूडेंट को भी शामिल कर लिया गया।
जबलपुर में 2 महीने पहले आ गई साइकिल पर वितरित ही नहीं कर रहे
जबलपुर में आदिवासी बच्चों को साइकिल वितरित करने के लिए ठेकेदार ने करीब दो महीने पहले करीब 3000 साइकिलें भेज दी, पर यह अब तक वितरित ही नहीं हो सकी हैं। जबलपुर में महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल के हॉल में बंद होकर कबाड़ हो रही हैं। इसी तरह मझौली और कंडम भी साइकिलें पहुंच गई हैं। इधर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में पदस्थ योजना अधिकारी रामानुज तिवारी का कहना है कि छात्राओं का वेरीफिकेशन हो चुका है। शासन के आदेश आने के बाद साइकिलें वितरित की जाएंगी। सिवनी, नरसिंहपुर, विदिशा जैसे अन्य जिलों की भी यही स्थिति है। यहां अब तक साइकिलें वितरित नहीं हुई है जिससे स्टूडेंट अपने साधनों से ही स्कूल आ जा रहे हैं।