Indore. सेंट्रल जीएसटी और राज्य सायबर सेल द्वारा मप्र, गुजरात में कार्रवाई कर 500 से ज्यादा फर्जी, कागजी कंपनियां बनाकर और इनके जरिए 700 करोड का बोगस लेन-देन दिखाकर सौ करोड से ज्यादा का इनपुट टैक्स क्रेडिट घोटाला करने वाले गिरोह को सूरत से पकडा है। इस गिरोह को पकडने में सबसे अहम भूमिका रिटायर डीजीपी एसके दास की रही है। दरअसल पांच महीने पहले दास के विजयनगर घर स्थित पते पर सेंट्रल जीएसटी का नोटिस आया, इसमें था कि एएन इंटरप्राइजेज नाम की कंपनी इस पते पर हैं, इसने जीएसटी नहीं भरा है। यह देखकर दास चौंक गए और उन्होंने सतर्कता दिखाते हुए जीएसटी विभाग को सूचित किया। इसके बाद इसमें सायबर सेल और जीएसटी विभाग ने जब जांच शुरू की तो एक- दो नहीं कई कंपनियां पहचान में आई। यह गिरोह हर दिन इनुपट टैक्स क्रेडिट के नाम पर सरकार को पांच करोड का चूना लगा रहा था।
नोटिस देख चौंके गए थे पूर्व डीजीपी दास
द सूत्र से बात करते हुए रिटायर डीजीपी दास ने बताया कि जनवरी माह में उन्हें अहमदाबाद के सेंट्रल जीएसटी विभाग से घर पर एक कंपनी को लेकर टैक्स नोटिस आया, जिसे देखकर वह चौंक गए, उन्होंने इसे लेकर क्राइम ब्रांच इंदौर में केस रजिस्टर्ड कराया, साथ ही जीएसटी कमिशनर इंदौर, अहमदाबाद के साथ ही कमिशनर पुलिस हरिनारायण चारी मिश्र को सूचित किया। इस मामले में जीएसटी विभाग के अधिकारी घऱ् पर आए थे उन्हें पूरा बयान दिया और वह भी आकर यहां चौंक गए कि यह कैसे हुआ? फिर पूरी जांच कर यह गिरोह पकडा गया।
केवल 12वीं पास है मास्टरमाइंड
सेंट्रल जीएसटी इंदौर और साइबर सेल की टीम ने 25 मई को सूरत में मारकर पांचों आरोपित आमिर अल्ताफ हालानी, आशान रहीम मर्चेंट, सुलेमान मेचानी, समजुनवीन अमीन बोधानी और फिरोज खान को गिरफ्तार किया। यह सभी 12वीं तक ही पढे हुए हैं। यह पहले युवाओं से नौकरी, कॉलेज में प्रवेश जैसे नाम से लोगों के आधार, पेन जुटाते थे और फिर इसके जरिए फर्जी कंपनियां खोलते थे।
बोरे भरकर मिले दस्तावेज
मौके पर टीम को 300 बोगस कंपनियों की सील और कई बोरे भरकर दस्तावेज सिम कार्ड, रसीद कट्टे मिले हैं।
आधार कार्ड में पंजीकृत नंबर बदलवा देते थे। यह गिरोह इतना शातिर था कि जिसके आधार से जीएसटी नंबर लिया, उसके पंजीकृत मोबाइल नंबर को भी बदलवा लेते थे, जिससे इस आधार से हुए किसी काम की जानकारी संबंधित तक नहीं पहुंचती थी, और फिर इनके नाम की कंपनियां बनाकर इसके बिल काटकर व्यापारियों को देते थे।
स्क्रैप के खेल में लगी थी कंपनियां
दरअसल स्क्रैप के जरिए लोहे के सामान बनाने वाले कारोबारियों को सबसे ज्यादा फर्जी बिल की जरूरत होती है, क्योंकि स्क्रैप को लेकर कोई बिलिंग होती नहीं है और जब यह कारोबारी लोहे के उत्पाद बनाते, बेचते हैं तो इन्हें क्रेडिट लेने के लिए पूर्व बिल की जरूरत होती है। सबसे ज्यादा स्क्रैप का कारोबार गुजरात से ही होता है, ऐसे में मास्टरमाइंड ने घऱ् बैठे ही यह कंपनियां बनाकर फैक्टरी वालों और कारोबारियों को यह बिल देना शुरू कर दिया, इसी के आधार पर यह सरकार से क्रेडिट लेते थे।
यह होता है इनपुट टैक्स क्रेडिट
क्रेडिट के कारण ही जीएसटी को अपनाया गया था, मतलब है कि जब जब व्यक्ति कोई उत्पाद बनाता है, तो इसमें कई तरह के कच्चे माल लगते हैं, कच्चे माल को बेचने वाला पहले ही जीएसटी दे चुका होता है, जब उत्पादक उत्पाद बनाकर आगे बेचता है, तो वह उस उत्पाद पर लगने वाला जीएसटी भरता है, लेकिन चूंकि कच्चे माल पर जीएसटी भरा जा चुका है तो वह सरकार से उस कच्चे माल की खरीदी के बिल के आधार पर अपने खाते, में वह राशि क्रेडिट करा लेता है। जैसे स्क्रैप पर पांच फीसदी यदि जीएसटी है, सरिया पर दस फीसदी, तो सरिया बनाने वाला दस फीसदी जीएसटी देगा औऱ् साथ ही स्क्रैप खरीदी का पांच फीसदी वाला बिल लगा देगा, तो सरकार उसके खाते में पांच फीसदी जीएसटी राशि वापस लौटा देगा। जब बिल फर्जी होगा तो यह क्रेडिट भी गलत ली जाएगी, यही क्रेडिट घोटाला है.