रायसेन: किले में कैद शिव को साक्षी मान 701 राजपूतानियों ने किया था जौहर

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Shivasheesh Tiwari
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रायसेन: किले में कैद शिव को साक्षी मान 701 राजपूतानियों ने किया था जौहर

अम्बुज माहेश्वरी, Raisen. रायसेन किले में 701 राजपूतानियों ने जौहर किया था। आज यानी 6 मई को 490 साल पूरे हो गए हैं। मुगलों के आक्रमण के दौर में जौहर की इस कहानी के बारे में कम लोग ही जानते है। यह बात 6 मई 1532 की है। जब रायसेन किले पर राजा सिल्हादी की पत्नी दुर्गावती ने सुल्तान बहादुर शाह के सामने झुकने के बजाय लड़ने की बात कही थी और स्वयं सहित 700 राजपूतानियों के साथ किले पर बने सोमेश्वर धाम (जिसमें अब वर्ष भर ताला रहता है) के शिव को साक्षी मानकर जौहर कर लिया था। लेकिन मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके थे। रानी दुर्गावती मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की बेटी थीं। उनका विवाह रायसेन के तोमर राजा शिलादित्य से हुआ था। 



राजा शिलादित्य को रायसेन से हटाना चाहता था सुल्तान बहादुर शाह



इस जौहर के कई प्रमाण इतिहास में मिलते हैं और रायसेन के गजेटियर में भी इस घटना का उल्लेख है। दरअसल सन 1531 में एक संयुक्त अभियान में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह, मेवाड़ के राणा सांगा और रायसेन की शिलादित्य की सेना ने मालवा में बहुत से इलाकों को जीत लिया था, तब हुए समझौते के मुताबिक सिल्हादी को उज्जैन और सारंगपुर के सूबे मिलने थे लेकिन मालवा विजय के बाद बहादुर शाह को लगा कि इससे तो शिलादित्य की शक्ति और बढ़ जाएगी और भविष्य में वो उसके लिए भी खतरा बन सकता, तब सुल्तान ने अपना इरादा बदलकर सिल्हादी को रायसेन के किले को खाली कर उसे सौंपने और वापस बरोडा जाने का कहा दिया, तो शिलादित्य इसके लिए तैयार नहीं हुए। तब बहादुर शाह ने इस विषय पर बात करने उसको अपने कैंप में बुलाकर धोखे से मांडू में कैद कर लिया और बाद में, जब रायसेन किला रानी दुर्गावती और सिल्हादी के भाई लक्ष्मण राय की देखरेख में था तो इसे जाकर सेना के साथ घेर लिया। 



घेराबंदी काम न आई, नहीं झुकी दुर्गावती और जौहर के लिए किया प्रण



सुल्तान बहादुर शाह जब कई महीनों की घेराबंदी के बाद भी रायसेन किले में सेंध नहीं मार पाया। तब आपसी मंत्रणा में रानी दुर्गावती न झुकने और हर हाल में लड़ने का फैसला लिया। किले में बारूद की कमी और शत्रु सेना की अधिक संख्या के चलते हार तय थी इसलिए रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतनियों के साथ जौहर करने का निर्णय ले लिया। राजपूतों ने लड़ाई जारी रख आत्मघाती तो युद्ध किया लेकिन यह लोग मारे गए। शिलादित्य का बेटा भूपति राय इस समय एक युद्ध अभियान पर गया था, जब उसे रायसेन में हुई इस घटना की जानकारी मिली तो वह लौटा और बहादुर शाह के सामंत को मार भगाया। रायसेन किले पर फिर से राजपूतों का कब्जा हो गया।



इस भूमि पर वीर जन्म लेते रहेंगे



रानी दुर्गावती ने अपनी सेना से कहा था कि वीर इस भूमि पर जन्म लेते रहेंगे। बहादुर शाह की सेनाएं रायसेन की ओर बढ़ रही हैं, वहां एक बहादुर शाह है। मगर रायसेन में तो हजारों बहादुर हैं। हमने उसका पूरी ताकत से मुकाबला करने का फैसला किया है। रानी दुर्गावती ने राजपूत सरदारों की रग-रग में उत्साह फूंक दिया था। दिन बीतते चले गए रायसेन के बहादुर सैनिक रात-दिन अपने किले की रक्षा करते रहे। रायसेन के किले में अनाज की मात्रा कम होने लगी। रानी दुर्गावती ने फैसला किया कि वह एक समय भोजन करेंगी। देखते ही देखते रायसेन की सारी महिलाएं एक समय भोजन करने लगीं। इधर बहादुर शाह को खबर मिली की मेवाड़ के राणा रत्न सिंह की सेनाएं रायसेन के लिए रवाना हो रही हैं। वह जान गया कि यदि मेवाड़ की सेनाएं आ पहुंचीं, तो वह रायसेन के किले पर अधिकार नहीं कर सकेगा, बल्कि रायसेन और मेवाड़ की सेनाओं के बीच पिसकर रह जाएगा। 



11 साल बाद ही दूसरे जौहर की दास्तां सामने आई



तारीखे शेरशाही में किले में रानी दुर्गावती के बाद एक और जौहर का उल्लेख भी मिलता है। सन 1543 में शेरशाह सूरी ने जब किले को घेरा तब यहां राजपूत राजा पूरनमल का शासन आ चुका था। कई महीनों की घेराबंदी के बाद भी शेरशाह सूरी को जब को किले पर जीत नहीं मिली, तब रायसेन के पास परवरिया गांव के नजदीक राजपूत और अफगान सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में जब राजपूतों की हार तय लगने लगी तो रानी रत्नावली ने सैकड़ों महिलाओं के साथ जौहर कर लिया था। 



रायसेन के ऐतिहासिक किले में दुर्गावती के जौहर के कई प्रमाण मिले हैं। गजेटियर में भी इसका उल्लेख है। इतिहास को अगर देखा जाए तो मध्यकाल में रायसेन का किले की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। -नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्वविद मप्र



इतिहास के पन्नों पर संघर्ष की इबारत है रायसेन किला



रायसेन का किला इतिहास के पन्नों पर संघर्ष की एक अनूठी मिसाल है। करीब 11 वीं शताब्दी के आस-पास गौंड राजाओं द्वारा बनाये गए इस किले पर 14 बार मुगल शासकों ने हमले किए। सैकड़ो तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद भी यह किला सीना तानकर खड़ा है। देश के अजेय दुर्गों (जिसे कोई जीत न सका हो) में शामिल इस किले पर सोमेश्वर धाम में वर्ष भर ताला लगा रहता है। इसके ताले न खुलने तक मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने अन्न त्याग कर रखा है। वे पिछले दिनों किले पर आईं भी थी। यह किला 1500 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ी पर लगभग दस वर्ग किमी में फैला है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन किला का निर्माण एक हजार ईपु का माना गया है।



एक नजर रायसेन दुर्ग पर हुए हमले-




  • 1223 ई. में अल्तमश


  • 1250 ई. में सुल्तान बलवन

  • 1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी

  • 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी

  • 1315 ई. में मलिक काफूर

  • 1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक

  • 1511 ई. में साहिब खान

  • 1532 ई. में हुमायू बादशाह

  • 1543 ई. में शेरशाह सूरी

  • 1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर

  • 1561 ई. में मुगल सम्राट अकबर

  • 1682 ई. में औरंगजेब

  • 1754 ई. में फैज मोहम्मद




  • रायसेन किले से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं




    • 17 जनवरी 1532 ई. में बहादुर शाह ने किले का घेराव किया।


  • 6 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ दुर्ग पर ही जौहर किया।

  • 10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।

  • जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।

  • जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा किए गए विश्वासघाती हमले में राजा पूरनमल और सैनिकों का बलिदान।


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