भोपाल (रूचि वर्मा). प्रदेश में ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission) के तहत जंगल के सुधार और विस्तार की योजना में बड़े गोलमाल का मामला सामने आया है। इसमें पिछले तीन सालों में करीब 84.71 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी 143 वर्ग किलोमीटर वर्ग वन क्षेत्र घट गया है। इसमें 11 वर्ग किमी बहुत सघन वन और 132 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है। यह खुलासा हाल ही में प्रधान मुख्य वन संरक्षक के एक पत्र से हुआ है।
ऐसे हुआ जंगल में पौधे लगाने में गोलमाल का खुलासा: केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ग्रीन इंडिया मिशन के तहत प्रदेश में जंगल का विस्तार किया जाना है। मिशन के तहत 50 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र को सुधारने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए प्रदेश के ऐसे विभिन्न वन क्षेत्रों का चुनाव किया जाता है जहां जंगल कम हो रहे हैं या उनका घनत्व घट हो रहा हो। ऐसे वनों की गुणवत्ता व घनत्व बढ़ाने के लिए नए सिरे से सागौन, चिरोल, आंवला, महुआ, खमेर, मूंगा, जामुन, नीम, बहेड़ा, बेल, पीपल, शीशम, आम, कटहल, अमरूद और खैर के पौधरोपण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसी मिशन के तहत वर्ष 2020 में वन विभाग ने बैतूल उत्तर वन मंडल के अंतर्गत भौरा रेंज के कूप क्रमांक RF130 में करीब 125 हेक्टेयर क्षेत्र का चयन किया गया। इस क्षेत्र में करीब 11 हजार पौधे लगाए गए। बाद में निरीक्षण में यह बात सामने आई कि नियमानुसार उपरोक्त क्षेत्र का चयन पौधरोपण के लिए किया ही नहीं जाना चाहिए था। इसकी वजह जंगल का घनत्व बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र का चुनाव मिशन के वर्किंग प्लान के प्रावधानों के विपरीत होना है। इतना ही नहीं यहां लगाए गए 11 हजार पौधों की क्वालिटी भी निरीक्षण में बेहद खराब पाई गई है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो इस क्षेत्र में 11 हजार पौधे लगाना टैक्सपेयर के पैसे का दुरुपयोग है। यह बड़ा खुलासा प्रधान मुख्य वन संरक्षक एचयू खान के एक पत्र से हुआ है जो उन्होंने हाल ही में सेवानिवृत्त अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (ग्रीन इंडिया मिशन) के रमन को लिखा है। लिहे पत्र में तो यह भी खुलासा हुआ है कि वृक्षारोपण क्षेत्र का चयन तो ग्रीन इंडिया मिशन के वर्किंग प्लान के पूरी तरह से विपरीत है।
1. भौरा वन परिक्षेत्र के कूप क्रमांक RF130 का चयन सह सुधार कार्य के तहत किया गया। वर्किंग प्लान के नियमानुसार सह-सुधार कार्य श्रेणी के वन में सामान्यतः पौधरोपण का कार्य नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये बेहतर गुणवत्ता के प्राकृतिक वनक्षेत्र माना जाता है। इसमें पहले से ही सघन वन एवं मिश्रित प्रजातियों वाले पेड़ बहुतायत में होते हैं।
2. भौरा परिक्षेत्र का कक्ष क्रमांक RF130 एक ऐसे एरिया में आता है जहां वन आवरण का घनत्व 0.5 से अधिक है। मिशन की कार्ययोजना के अनुसार नया वृक्षारोपण तभी किया जाता है जब वन आवरण का घनत्व 0.5 से कम हो।
3.वर्ष 2020-21 के लिए ड्यू-कूप क्रमांक-8 भी भौरा परिक्षेत्र का कक्ष क्रमांक RF130 में ही सम्मिलित है। ड्यू-कूप मतलब ऐसा वन क्षेत्र जहां पेड़ों या जंगल का घनत्व इतना ज्यादा होता है की सूर्य की रोशनी न आने की वजह से छोटे नए पेड़ नहीं उग पाते। इसीलिए ऐसे वन क्षेत्रों में कटाई की जाती है जिससे नए पेड़ उग सकें।
4. पिछले साल 18 जनवरी, 2021 को वन मंडल द्वारा की गयी स्टॉक मैपिंग के अनुसार वर्तमान में कक्ष क्रमांक RF 130 में रिक्त वनक्षेत्र भी लगभग नगण्य है। स्टॉक मैपिंग की प्रक्रिया से वन या वन भूमि के किसी क्षेत्र विशेष में विरल अथवा रिक्त स्थानों के बारे में पता चलता है।
क्या है राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन: यह मिशन जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए देश में बनाए गए आठ मिशनों में से एक है। इसे फरवरी 2014 में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य देश के कम होते वन क्षेत्र को बढ़ाना और जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए पर्यावरण में सुधार करना है। इसके माध्यम से देश में घटते वन क्षेत्र का संरक्षण, पुनर्नवीनीकरण और वन क्षेत्र में वृद्धि करना है।
पांच सालों में 8471.29 लाख खर्च के बाद भी घट गया जंगल
(सोर्स: MOEF&CC द्वारा जारी राशि और MP ग्रीन इंडिया मिशन द्वारा व्यय का विवरण-31 मार्च, 21 तक)
- प्रदेश में वर्ष 2018-2019 में ग्रीन इंडिया मिशन के तहत 1704.16 लाख रुपए स्वीकृत हुए। इसमें केंद्र द्वारा दी गई राशि 1022.497 लाख थी। जबकि राज्य द्वारा दी गई राशि: 681.664 लाख रुपए थी। इस प्रकार कुल 1704.161 लाख रुपए की राशि आवंटित की गई। जबकि 1626.04 लाख रुपए की राशि खर्च की गई।
वर्ष 2020-2021 में केंद्र द्वारा 1573.03 लाख रु. की राशि दी गई एवं स्टेट द्वारा 1048.69 लाख रु. दिए गए। इस प्रकार कुल 2621.72 लाख रुपए की राशि मंजूर की गई। इस प्रकार वर्ष 2018 से 2021 के बीच केंद्र द्वारा 5688.494 लाख रुपए एवं प्रदेश सरकार द्वारा 3792.323 लाख रुपए की राशि दी गई। इस प्रकार ग्रीन इंडिया मिशन के लिए प्रदेश में कुल 9480.817 लाख रुपए मंजूर किए गए। जबकि 8471.29 लाख रुपए खर्च किए गए।तीन साल में बहुत घना जंगल 11 वर्ग किमी, मध्यम जंगल 132 वर्ग किमी घटा: प्रदेश में ग्रीन इंडिया मिशन के तहत वनों के सुधार और विस्तार के नाम पर पिछले तीन सालों में 8471.29 लाख रुपए खर्च होने के बाद भी 143 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र घट गया। (ISFR-20121 की रिपोर्ट के अनुसार) आपको बता दें कि वर्ष 2019 में प्रदेश में बहुत घना जंगल 6676 वर्ग किलोमीटर, मध्यम रूप से घना जंगल: 34341 वर्ग किलोमीटर और खुला जंगल 36465 वर्ग किलोमीटर था। इस प्रकार कुल वन क्षेत्र 77482 वर्ग किलोमीटर था। वर्ष 2021 में प्रदेश में बहुत घना जंगल 6665 वर्ग किलोमीटर, मध्यम रूप से घना जंगल 34209 वर्ग किलोमीटर, खुला जंगल 36619 वर्ग किलोमीटर हो गया। अर्थात कुल वन क्षेत्र 77493 वर्ग किलोमीटर हो गया। इस प्रकार तीन सालों में बहुत घना जंगल बढ़ने के बजाय 11 वर्ग किलोमीटर घट गया। इसी प्रकार मध्यम रूप से घना जंगल भी 132 स्क्वायर किलोमीटर कम हो गया। जबकि खुला यानी मैदानी जंगल 154 स्क्वायर किलोमीटर बढ़ गया।
क्या कहना है फारेस्ट एक्सपर्ट डॉ. रामप्रसाद का: ग्रीन इंडिया मिशन के तहत 10 वर्ष की कार्योजना तय की गई है। योजना के नियमानुसार वृक्षारोपण तभी किया जाता है जब वन आवरण का घनत्व 0.5 से कम हो। घने जंगल में कटाई वाले कुछ एरिया हो सकते हैं। यहां पेड़ों का घनत्व ज्यादा होने के कारण इस तरह छंटाई की जाती है कि पेड़-पौधों के बढ़ने के लिए सूरज की रोशनी जंगल में आ सके।
के.रमण- नियमानुसार ही किया गया जंगल में पौधरोपणः इस मामले में सेवानिवृत अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (ग्रीन इंडिया मिशन) के.रमन का कहना है कि हमारे प्रोजेक्ट में नियमानुसार ही पौधरोपण का प्रोविजन किया गया है। हम ऐसे एरिया को चुनते हैं जहां सघन वन तो हैं पर वहाँ डिग्रेडेशन हो रहा है। अर्थात जहां जंगल की जैविक संपत्ति जैसे पेड़-पौधे स्थाई रूप से कुछ कारणों से कम हो जाते हैं। डिग्रेडेशन को रोकने का मापदंड होता है नेचुरल रिजेनेरेशन जिसे हमको बढ़ाना है।
550 करोड़ की 'नमामि देवी नर्मदे योजना' में भी किया गया था बड़ा घोटाला: उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में 'नमामि देवी नर्मदे योजना' में भी पौधों की खरीदी में करोड़ों का घोटाला हुआ था। योजना के लिए राज्य शासन ने करीब 550 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया था। इसमें 42 करोड़ रुपये से पौधों की खरीदी की गई थी। पर योजना में निजी नर्सरियों के संचालकों के साथ मिलकर उद्यानिकी विभाग के अफसरों ने जमकर गोलमाल किया। जिन नर्सरियों की क्षमता 10 लाख पौधे तैयार करने की थी, उनसे विभाग ने 37 लाख पौधे खरीद लिए। इसका करीब 15 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। केंद्र सरकार के उपक्रम एनएचबी (नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड) में रजिस्टर्ड नहीं होने के बावजूद उद्यानिकी विभाग ने कई नर्सरियों से पौधों की खरीदी की। एमपी एग्रो (MP Agro) की स्वीकृत दरों से महंगी कीमतों में यह खरीदी की गई। पौधे खरीदने के लिए बनी कमेटी के तत्कालीन सदस्य एमपीएस बुंदेला ने फर्जीवाड़े की शिकायत विभागीय मंत्री से लेकर अधिकारियों से की थी। इसके बाद यह बड़ा घोटाला (scam) उजागर हुआ था।