खाना टेबल पर था ,आधा घंटे खाया नहीं क्योंकि उन्हें पता चला कोई साथ खाने आ रहा है , महान कलाकार ही नहीं लाजबाव इंसान भी थे राजू

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Dev Shrimali
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खाना टेबल पर  था ,आधा घंटे खाया नहीं क्योंकि उन्हें पता चला कोई साथ खाने आ रहा है , महान कलाकार ही नहीं लाजबाव इंसान भी थे राजू

देव श्रीमाली GWALIOR. इकतालीस दिन तक उन्हें फिर से मंच पर खड़े होकर गुदगुदाते हुए देखने के लिए बेचैन प्रसंशकों को आखिरकार राजू श्रीवास्तव आज रुलाकर चले गए। वे बेजोड़ कलाकार थे जिन्होंने हास्य -व्यंग्य को एक नया मंच प्रदान किया और उन्होंने ऑब्जर्वेशन की नयी शैली विकसित की जिससे वे हास्य -व्यंग्य के जरिये नेताओं की कार्यशैली ,सामाजिक बिद्रूपताओं पर इतना गहरा प्रहार करते थे कि सभागार में बैठा वह व्यक्ति भी ठहाका लगाने को मजबूर होता था जिस पर यह प्रहार किया गया होता था। राजू की कला का तो मानो पूरा देश ही दीवाना था क्योंकि वे अपने प्रदर्शन के जादू से सबको सम्मोहित ही कर लेते थे लेकिन राजू श्रीवास्तव अपनी निजी जिंदगी में भी अत्यंत सहज ,विनम्र और सलीकेदार व्यक्ति थे यह उनके साथ समय बिताने वाला ही जान सकता था। मुझे भी ग्वालियर में उनके साथ लगभग एक घंटा बिताने और दोपहर का भोजन करने का मौक़ा मिला और तब उनसे लम्बी अनौपचारिक बातचीत भी हुई लेकिन पहली ही मुलाक़ात में उन्होंने अपनी सादगी से मुझे अपना मुरीद बना लिया। 



         बात 2011 की है। उस समय ग्वालियर में  गर्मी थी। वे झांसी तरफ से किसी प्रोग्राम से लौटकर ग्वालियर आये थे और यहाँ उनका कोई कार्यक्रम नहीं था। अशोक सिंह से उनकी मित्रता थी और उनके आग्रह पर वे उनके होटल सेंट्रल पार्क में कुछ देर के लिए रुक गए थे। प्रयोजन लंच था और चूंकि राजू श्रीवास्तव को जल्द से जल्द दिल्ली के लिए निकलना था इसलिए उनकी टेबल पर खाना भी फटाफट लग गया था । इस बीच अशोक जी ने मुझे भी लंच के लिए कॉल कर दिया। मैं पहुंच नहीं पाया ,वे पशोपेश में थे। राजू भाई भांप गए। उन्होंने उनसे पूछा कि कोई आ रहा है क्या ? उन्होंने कहा-हाँ मैंने एक मित्र को कॉल किया है लेकिन देर से किया।  कृपया आप शुरू करें ,आपको निकलना भी है। राजू ने मुस्कुराते हुए पूरे खाने को प्लेट से ढक दिया और बोले सब मिलकर ही खाएंगे। दस मिनट में मैं वहां पहुँच गया। सबने खाना खाया  और उन्होंने स्वयं ही इस घटनाक्रम को अपने ही अंदाज़ में सुनाया और बोले अरे भाई आपके मित्र बड़े संकोची है। हमारी कौन सी ट्रेन छूट रही थी। साथ में खाना खाया तो और ज्यादा मज़ा आ गया। यह सादगी देखकर मैं दंग रह गया। 



फैंस के फैन थे राजू 



वहां पहुंचते ही मुझे पता चल गया था कि वे जल्दी में है और दिल्ली में एक कार्यक्रम में रात को ही शामिल होना है इसलिए मैंने उनसे कहा कि मेरा छोटा बेटा देवांग  आपका बड़ा फैन है।  अगली बार कभी आओगे तो उसे आपसे मिलवाएंगे। इस पर वे अपने ही लहजे में बोले-अरे भैया,फैन से अगली बार मिलने की कौन कहता है ? अभी क्यों नहीं मिलवाते ? कुछ दक्षिणा लगेगी तो वो भी दे देंगे। फिर वे जिद ही कर गए। मैंने अपने भतीजे पंकज को फोन कर देवांग को होटल बुलवाया, राजू भाई न केवल उससे मिले बल्कि फोटो भी खिंचवाई और उसे खाना भी खिलाया। 



हास्य उतना ही जरूरी है जितना भोजन 



इस दौरान लगभग एक घंटे का लंबा समय उनके साथ बिताने को मिला तो मैं उनकी सहजता  का कायल हो गया। उन्होंने इस दौरान लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचने की अपनी संघर्ष यात्रा को तफ्सील से बताया और यह भी कि इसमें दिक्क्तों से ज्यादा उल्लेखनीय उन लोगों का साथ है जिन्होंने हर मोड़ पर सहारा देकर प्रोत्साहित किया। जब उनसे पूछा कि आप धुरंधर नेताओं के सामने ही उनका परिहास करके मखौल उड़ाते है तो आपको डर  नहीं लगता ? तो उन्होंने कहा कि हास्य हर व्यक्ति की वैसी ही जरूरत होती है जैसे भोजन इत्यादि की। कलाकार का मन साफ है तो हास्य किसी को परेशान नहीं करता बल्कि मनोरंजन के साथ सीख भी देता है। वे लोग सचमुच महान होते है जिन पर हास्य रचे जाते हैं। इस मुलाकात के बाद मेरा लगातार उनसे टेलीफोनिक संपर्क बना रहा। उनसे आखिरी बार बातचीत कोरोना के पहले चरण के दौर में हुई थी जब मैं कोरोना का शिकार हो गया था। उन्होंने हालचाल पूछा और हौसला बढ़ाया। सिर्फ महान कलाकार ही नहीं एक शानदार इंसान भी आज सबको छोड़कर चला गया जो युगों-युगों तक लोगों के दिल और दिमाग में जीवित रहेगा। 


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