PANNA. बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में गोंड़ राजाओं के शासन काल के चिन्ह जहां-तहां आज भी मौजूद हैं। इस पूरे इलाके में गोंड राजाओं की रियासतें रही हैं। तस्वीर में बंगलानुमा जो भवन दिख रहा है, वह गोंड़ जागीरदार नोने सिंह ने बनवाया था। गोंड राजाओं व जागीरदारों द्वारा बनवाए गए ज्यादातर महल व इमारतें या तो नष्ट हो चुकी हैं या फिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं लेकिन गोंड़ जागीरदार नोने सिंह का बंगला आज भी बिलखुरा गांव में एक धरोहर की तरह मौजूद है। इस पुरातन बंगले में कोई भी जूता पहनकर अंदर जाने की हिम्मत नहीं करता है।
बिलखुरा गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय की परंपरा का निर्वहन आज भी गांव के लोग करते आ रहे हैं। जूता चप्पल पहन कर कोई भी इस बंगले के भीतर नहीं जाता। इसके पीछे ग्रामीणों की धार्मिक मान्यता है कि बंगले के भीतर देवता विराजमान हैं। भूरे यादव बताते हैं कि सभी तरह के शुभ कार्य इसी बंगले से शुरू होते हैं। जवारा कहीं भी रखे जाएं, पहले बंगला में आते हैं फिर सेराने के लिए जाते हैं। मिट्टी की दीवाल, लकड़ी और खपरैल से बने इस भवन की शान आज भी देखते ही बनती है। नेपाल सिंह बताते हैं कि बंगले में सामने की तरफ टूट-फूट हो गई थी, जहां सीमेंट शीट लगवा कर मरम्मत कराई गई है। लेकिन बंगले के भीतर कोई बदलाव नहीं है, जैसा का तैसा है।
आज भी रहता है जागीरदार का परिवार
जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर दूर पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग पर स्थित बिलखुरा गांव के ठाकुरन मोहल्ला (राजगोंड़) में यह बंगला अपने वजूद को कायम किए हुए है। गांव के लोग इस पुराने भवन को बंगला कह कर पुकारते हैं। जागीरदार नोने सिंह का परिवार आज भी इसी गांव में रहता है। परिवार के लोग इस प्राचीन धरोहर की देखरेख कर उसे बचाए हुए हैं, ताकि उनके परिवार की गौरव गाथा लोगों की स्मृतियों में बनी रहे।
कभी सूना नहीं रहता है बंगला
जागीरदार रहे नोने सिंह के नाती 55 वर्षीय नेपाल सिंह राजगोंड़ ने बड़े ही गर्व के साथ बताया कि उनके बाबा ने तकरीबन डेढ़ सौ वर्ष पूर्व 12 दरवाजों वाले इस बंगले को बनवाया था। उस समय इसी बंगले में पंचायत लगती थी और फैसले होते थे। जागीरदारी खत्म हुए अरसा गुजर गया, फिर भी इस प्राचीन धरोहर की रौनक बनी हुई है। हर समय इस बंगले की चौपाल व परिसर में स्थित विशालकाय नीम वृक्ष के नीचे गांव के बड़े बुजुर्गों और युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। अनेकों लोग बंगला के बाहरी हिस्से में बैठकर ताश के पत्ते खेलते रहते हैं, बंगला कभी सूना नहीं रहता।
12 दरवाजों का बंगला, 36 गांव की जागीर
बिलखुरा गांव के ही निवासी भूरे यादव 65 वर्ष बताते हैं कि उन्होंने जब से होश संभाला इस बंगले को इसी तरह देखा है। वे बताते हैं कि फुर्सत का समय हम यहीं बैठकर गुजारते हैं, क्योंकि यहां पर सुकून और शांति मिलती है। गांव वालों के लिए यह बंगला किसी विश्रामगृह से कम नहीं है। शिव सिंह यादव (75 वर्ष) बताते हैं कि बिलखुरा चरखारी रियासत की जागीर रही है। उस समय तहसील रानीपुर थी। बताया कि यह 35-36 गांव की जागीर थी। उसी समय यह बंगला बनवाया गया था, जहां दरबार लगता था। जागीरदार परिवार के सदस्य नेपाल सिंह राजगोंड़ ने बताया कि 12 दरवाजे वाले इस बंगले में राजा महाराजा भी आते रहे हैं। दरबार लगने के साथ-साथ यहां पर नाच गाना भी होता था। किसानों से कर की वसूली यहीं होती थी, जागीर के पूरे दस्तावेज व रिकार्ड इसी बंगले में रखे जाते थे।
नीम के नीचे पहलवान करते थे कसरत
गोंड़ राजाओं के समय पहलवानों का बहुत ही आदर सम्मान था। उस दौर में गांव के युवक शरीर को मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए खूब कसरत किया करते थे। इसके लिए पत्थर से निर्मित विशेष तरह के उपकरणों का उपयोग किया जाता था। बंगला परिसर में आज भी व्यायाम में उपयोग किए जाते रहे पत्थर के उपकरण मौजूद हैं। जिन्हें देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजगोंड़ कितने बलशाली रहे होंगे।नीम के पेड़ के नीचे पत्थर का एक डंबल पड़ा हुआ है। जिसे पकड़कर उठाने के लिए बकायदे पत्थर में मुठिया भी बनी है। इस भारी-भरकम पत्थर को उठाना तो दूर खिसकाना भी कठिन है। इसे उठाकर गोंड़ पहलवान व्यायाम करते थे। बंगला परिसर में बैठकर विश्राम करने वाले बुजुर्ग गोंड़ रियासत की भूली बिसरी बातें बड़े ही गर्व के साथ बताते हैं। नेपाल सिंह कहते हैं कि यह बंगला हमारे पूर्वजों की धरोहर है, जिसका हम संरक्षण करते आ रहे हैं।