भोपाल. मध्य प्रदेश में संगीन अपराधों के आरोपी भी कोर्ट से बरी हो जाते हैं। ऐसे मामलों में अब राज्य सरकार सख्त रुख अपनाने जा रही है। शुरुआत 10 ऐसे मामलों से हो रही है, जो चर्चा में तो रहे लेकिन पुलिस की चार्जशीट कोर्ट में नहीं टिक सकी और आरोपी बरी हो गए। अब सरकार ने इन मामलों में तह तक जाकर पता लगाया हैं कि केस कमजोर कैसे हुए? पुलिस की जांच में कमी रह गई या अभियोजन अधिकारी से चूक हुई। सरकार की जांच में दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। द सूत्र आपको बताने जा रहा हैं कि किन मामलों से जुड़े पुलिस और अभियोजन अधिकारियों का नपना तय है।
केस नंबर 1 - पेटलावद - 79 लोगों की मौत हुई और आरोपी बरी
12 सितंबर 2015 की सुबह झाबुआ जिले के पेटलावद कस्बे में सेठिया रेस्टोरेंट के पास बने मकान में जोरदार ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 79 लोगों की मौत हो गई थी और 150 से ज्यादा घायल हुए थे। यह विस्फोट मकान में अवैध रूप से रखी जिलेटिन राड और डेटोनेटर से हुआ था। पेटलावद का रहने वाला राजेंद्र कांसवा विस्फोटक का व्यापारी था । जिलेटिन व डेटोनेटर का भंडारण कांसवा के परिवार के मालिकाना गोदामों और मकानों में मिला था। इसी से जुड़े मामलों में परिवार के 6 लोगों और एक सप्लायर धर्मेंद्र राठौर को आरोपी बनाया गया था। मामले की जांच के लिए झाबुआ की तत्कालीन एएसपी सीमा अलावा की अगुवाई में एसआईटी बनाई गई थी।
कोर्ट में सिद्ध नहीं हुए आरोप: 2019 में अन्य केसों में आए फैसले में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया था। इसके बाद 27 दिसंबर 2021 को मुख्य केस में आरोपी धर्मेंद्र राठौर को भी बरी कर दिया गया। राठौर पर आरोप था कि उसने अवैध रूप से राजेंद्र कसावा को जिलेटिन की छड़े और डेटोनेटर सप्लाई किए थे। लेकिन पुलिस की चार्जशीट अपर सत्र न्यायालय झाबुआ में टिक नहीं सकी और साक्ष्यों के अभाव में आरोपी धर्मेंद्र राठौर को बरी कर दिया गया।
केस नंबर 2 - बालाघाट- दो बच्चियों से पड़ोसी ने दुष्कर्म किया
2018 में बालाघाट के कोतवाली इलाके में दो बच्चियों के साथ दरिंदगी का मामला सामने आया था। पड़ोसी युवक पर दोनों बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप लगे थे। लेकिन इस मामले में भी पुलिस आरोप सिद्ध नहीं कर पाई।
इसलिए बरी हो गया आरोपी: हाईलेवल पर कराई गई जांच में जो तथ्य निकलकर आए, उनके मुताबिक पुलिस ने विवेचना ही गलत की थी। पीड़ित 4 साल की बच्ची धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने बयान नहीं दे सकी, जबकि पुलिस जांच में बच्ची का स्टेटमेंट दर्ज किया गया था। दूसरी सबसे बड़ी खामी ये कि पुलिस ने जांच के लिए बच्ची की अंडरवियर जब्त की थी, जो मालखाने में लेगी में बदल गई। यानी केस में पुलिस जांच में गंभीर लापरवाही बरती गई। जिसका फायदा आरोपी को मिला और वो बरी हो गया।
केस नंबर 3 - रीवा में पुलिस अधिकारियों पर हमला भी साबित नहीं कर पाई पुलिस
रीवा के शाहपुर थाना क्षेत्र में एक घर पर तलाशी लेने गई पुलिस टीम पर चार आरोपियों ने हमला बोला था। इस हमले में दो पुलिस उप अधीक्षक और दो निरीक्षक घायल हो गए थे। इस मामले में भी आरोपी बरी हो गए। पुलिस अधिकारियों पर ही हुए हमले को पुलिस कोर्ट में साबित नहीं कर पाई।
ऐसे बरी हो गए आरोपी: कोर्ट में इन घायल पुलिस अफसरों के साथी अपने बयानों से ही पलट गए। वे अदालत को पूरा घटनाक्रम तक नहीं बता सके। वहीं पुलिस रिकॉर्ड में भी कई खामियां पाई गई। पुलिस ये नहीं बता पाई कि घटना में आरोपी घायल कैसे हुए, फिर वो अपने आप अस्पताल कैसे पहुंच गए। यानी कमजोर इनवेस्टीगेशन का फायदा आरोपियों को मिला और वो बरी हो गए।
केस नंबर-4 नरसिंहपुर, 'लव जिहाद' के मामले में बरी हो गया आरोपी
नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में 7 जुलाई 2021 को 19 साल की युवती लापता हो गई थी। शहादत नाम का युवक उसे भगाकर जबलपुर ले गया था। 9 जुलाई को युवती अपने घर लौट आई। उसने बताया कि शहादत, उसके पिता शेख गरीब खान और मालिक (जिसके यहां शहादत काम करता था) शाकिर राइन ने उसके ऊपर धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाया। शहादत उससे शादी करना चाहता था, लेकिन पहले धर्म परिवर्तन कराना चाहता था, जिससे युवती ने इनकार कर दिया तो शहादत शादी से मुकर गया। इस मामले में पुलिस ने तीनों आरोपियों के खिलाफ मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3/5 के तहत मामला दर्ज किया था। इस मामले में भी पुलिस की चार्जशीट ज्यादा दिनों तक कोर्ट में टिक नहीं सकी और आरोपी बरी हो गए।