सुनील शर्मा, Bhind. भिंड में मध्यप्रदेश सरकार और प्रशासन गरीब मजदूरों के पेट पर लात मार रही है। मनरेगा योजना में मजदूरों की जगह मशीनों से काम कराया जा रहा है। इस तरह से सरकार और प्रशासन गरीबों की रोटी छीन रही है। केंद्र और प्रदेश सरकार ने गर्मी में पेयजल के संकट से निपटने के लिए नवीन तालाब खनन और पुराने तालाबों की मरम्मत कराने का फैसला किया है। भिंड में करीब 100 तालाब बनाए जा रहे हैं लेकिन मजदूरों की जगह सरपंच सचिव मशीनों से काम करा रहे हैं और मजदूरों के हक का पैसा हजम कर रहे हैं।
भिंड में बनाए जा रहे 100 नए तालाब
मनरेगा के तहत भिंड में करीब 100 नए तालाब बनाए जा रहे हैं। सरकार ने मशीनों से खुदाई पर रोक लगाई है लेकिन भिंड में इसके उलट हालात दिखाई दे रहे हैं। अमृत सरोवर योजना के तहत हो रहे 100 तालाबों की खुदाई में लगातार मजदूरों को हाशिए पर रखकर मशीनों से खुदाई कराई जा रही है।
भिंड कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार कर रहे निरीक्षण
सरकार की मंशा के अनुरूप भिण्ड जिले में 100 तालाब तैयार किए जाने हैं। भिंड कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस भी इन दिनों लगातार क्षेत्र के अलग ग्राम में प्रस्तावित नवीन तालाबों का निरीक्षण कर रहे हैं। इस दौरान ग्राम पंचायत डगर और रजपुरा में जेसीबी मशीन के जरिए हो रही तालाब की खुदाई की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं। मशीनों के जरिए कार्य कराने की वजह से मनरेगा मजदूरों को खुदाई का काम नहीं मिल पा रहा है। मशीनें मिट्टी के साथ-साथ गरीबों का पेट भी काट रही हैं।
भिंड कलेक्टर ने दी सफाई
जेसीबी से खुदाई की तस्वीर भिंड कलेक्टर के सोशल मीडिया अकाउंट से पोस्ट की गई थी। इस पर कलेक्टर सतीश कुमार का कहना है कि हर जिले में 100 तालाबों के निर्माण की व्यवस्था है। 15 जून से पहले कम से कम 100 तालाबों का निर्माण किया जा रहा है। मनरेगा में मशीनों का उपयोग करना सीमित व्यवस्था है। भिंड कलेक्टर की बातों से इतना तो साफ है कि सरकार ने मशीनों के उपयोग से तालाबों की खुदाई का एक विकल्प खोज लिया है लेकिन इसका असर भी मनरेगा मजदूरों की आय पर होना तो निश्चित ही है। मशीनें काम करेंगी तो गरीबों के मुंह से निवाला तो छिनना तय है।
क्यों असफल हुई मनरेगा
मनरेगा में मजदूरी सिर्फ 204 रुपए है जबकि बाजार में अनट्रेंड मजदूर की मजदूरी 400 रुपए होने के चलते मनरेगा कार्य के लिए मजदूर असल में मिलता ही नहीं है, यही वजह थी कि सरपंच-सचिव भी मनरेगा में कार्य कराने के लिए मजदूरों के नाम पर पैसा निकालकर मशीनों से कार्य कराते आ रहे थे। मनरेगा में मजदूरी 400 से 500 करने की जरूरत है।