Gwalior : नेता प्रतिपक्ष और पूर्व सभापति तलाशेंगे नए वार्ड, अधर में लटका भविष्य

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Gwalior : नेता प्रतिपक्ष और पूर्व सभापति तलाशेंगे नए वार्ड, अधर में लटका भविष्य

Gwalior. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के निर्देश और आदेश के मुताबिक हुए आरक्षण ने ग्वालियर नगर निगम (Gwalior Nagar Nigam) की राजनीति का नक्शा और इसके धुरंधर खिलाड़ियों के मुंह का जायका ही बदल दिया है। नेता प्रतिपक्ष और सभापति दोनों के वार्ड आरक्षण में जाने से इनका सब करा-धरा बेकार हो गया है और अब वे नया वार्ड तलाशने को मजबूर हैं।



ओबीसी को हुआ जबरदस्त फायदा



आरक्षण (Reservation) में 16 नगर निगमों में ओबीसी को फायदा हुआ। इनमें पिछले की तुलना में ओबीसी की 21 सीटें बढ़ जाएंगी। 321 निकायों में भी ओबीसी की 250 सीटों का इजाफा हुआ है। ग्वालियर नगर निगम में ओबीसी की तीन सीटें बढ़ गई। पिछली बार ये संख्या 17 थी जो इस बार बढ़कर 20 हो गई।



बिगड़ गए सियासी गणित



एमआईसी मेम्बर रहे बीजेपी के दिग्गज पार्षद सतीश बोहरे आरक्षण की बजह से पिछला चुनाव भी वार्ड बदलकर लड़े थे। इस बार उनका वार्ड-48 पिछड़ा आरक्षित हो गया जबकि उनका मूल वार्ड महिला के लिए आरक्षित है। ऐसे में अब उनकी राह कठिन हो गई। अब उन्हें कोई नया सामान्य वार्ड तलाशना होगा। यही हाल दिग्गज पार्षद जगत सिंह कौरव का है। वे भी एमआईसी में रहे हैं। पार्टी ने पिछली बार उनका टिकट काटा तो वे निर्दलीय लड़ गए। उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल की। वे रहे बीजेपी के ही साथ। इस बार भी वे अपने वार्ड एक से मजबूत दावेदार थे लेकिन उनका वार्ड महिला के लिए आरक्षित हो गया। वार्ड-13 से पार्षद गुड्डू तोमर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के नजदीकी माने जाते हैं। आरक्षण ने उनका भी गणित बिगाड़ दिया। उनका वार्ड भी महिला के लिए आरक्षित हो गया। यही नहीं बीजेपी के दिग्गज नेता पूर्व सभापति गंगाराम बघेल, पूर्व मंत्री माया सिंह के नजदीकी धर्मेंद्र राणा, दिनेश दीक्षित, सुजीत भदौरिया जैसे पार्षदों को भी आरक्षण के कारण नई जमीन तलाशनी होगी।



कांग्रेस में भी यही हाल



ऐसा नहीं कि आरक्षण के कारण बीजेपी के पार्षदों और दावेदारों की ही जमीन खिसकी हो, कांग्रेसी दिग्गज भी बेहाल हैं। तीन बार लगातार पार्षद का चुनाव जीत चुके और सदन में नेता प्रतिपक्ष का ओहदा संभाल चुके कृष्ण राव दीक्षित का वार्ड-12 इस बार सवर्ण से पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो गया। उन्हें नया वार्ड तलाशना होगा। राजेश भदौरिया का वार्ड भी आरक्षण में चला गया।



कहीं खुशी-कहीं गम



आरक्षण में वार्ड चले जाने से जहां दावेदारों में गम का माहौल है। पूर्व एमआईसी सदस्य सतीश बोहरे कहते हैं, अभी तो समझ और सोच ही नहीं पा रहे। वार्डों के आरक्षण ने सारे समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। जिन वार्डों में मेहनत की, वे आरक्षित हो गए। आगे देखेंगे कि कहां से दावेदारी करें या पार्टी कहां से मौका दे लेकिन कुछ जगह खुशी भी है। बीजेपी महिला मोर्चा की वर्तमान अध्यक्ष नीलिमा शिंदे और मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष खुशबू गुप्ता दोनों के वार्ड अनारक्षित होने से इनकी दावेदारी बरकरार है सो ये खुश हैं। अनेक बार चुनाव जीत चुके घनश्याम गुप्ता का वार्ड-46 अनारक्षित है सो वे निश्चिंत हैं। वार्ड-46 से पार्षद डॉ. शोभा सिकरवार का वार्ड भी अनारक्षित है।



सभी नए वार्ड हुए रिजर्व



पूर्व में हुए नगर निगम परिसीमन में निगम का विस्तार करते हुए आसपास की ग्राम पंचायतों से कुछ गांव नगर निगम में शामिल कर 6 नए वार्डों का सृजन किया गया था। इससे ग्वालियर नगर निगम में वार्ड की संख्या बढ़कर 66 हो गई। लेकिन ये सभी वार्ड आरक्षण में चले गए, नतीजा ये हुआ कि वे लोग निराश हो गए जिनकी निगाहें इन वार्डो पर थीं।


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