REWA. सरकार के अपने वादे हैं। इनके अफसरों के अपने कागजी दावे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर उस मासूम का क्या कसूर था जिसकी उपचार के अभाव में मौत हो गई। वजह यह नहीं थी कि उपचार नहीं मिला बल्कि यह थी कि समय पर नहीं मिला। अस्पताल तक पहुंचे जरूर लेकिन मासूम जिन्दा न था। यह उस मां का विलाप है जिसने देखते ही देखते अपने कलेजे के टुकड़े को खो दिया।
बात रीवा जिले के सेमरिया रमपुरवा की है। गांव के 18 माह के सिद्धार्थ पिता नागेंद्र साकेत की रात अचानक दस्त लगने लगे। सुबह होते ही उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई। एम्बुलेंस मंगाई तो दो किलोमीटर दूर खड़ी हो गई। घर तक पहुँचने में गड्ढे ज्यादा थे। परिजनों ने जैसे तैसे मासूम को एंबुलेंस तक पहुंचाया। अस्पताल पहुँचे तो चिकित्सकों ने उपचार शुरू कर दिया लेकिन मासूम सिद्धार्थ को नहीं बचा सके। मां पूनम ने बताया कि सिद्धार्थ को दस्त लग रहे थे। एम्बुलेंस तो आ गई थी। घर से एम्बुलेंस तक बाइक में ले गए। अस्पताल तक ले गए लेकिन बचा नहीं सके। सड़क सही होती तो आज भी खेलता होता सिद्धार्थ।पूनम और नागेंद्र के एक ही संतान थी।