Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति में मनमाना आरक्षण निरस्त कर दिया है। इसी के साथ नए सिरे से बिना अनुचित आरक्षण लागू किए नियुक्ति करने के आदेश जारी किए हैं। जस्टिस विशाल धगट की बेंच में यह मामला सुनवाई के लिए आया था जिस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।
याचिकाकर्ता डॉ. हेमलता गुप्ता की ओर से ग्वालियर के अधिवक्ता राजेंद्र श्रीवास्तव और अधिवक्ता नीलेश कोटेचा ने अदालत में पक्ष रखा। दलील दी गई कि ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक फिजियोलॉजी के पद पर नियुक्ति के लिए एक विज्ञापन जारी किया गया। इसमें यह शर्त लागू कर दी गई कि केवल महाविद्यालय में कार्यरत चिकित्सक ही नियुक्ति के पात्र होंगे। इसलिए याचिकाकर्ता जो कि इस मेडिकल कॉलेज के बाहर की थीं, उनका आवेदन निरस्त हो गया। चूंकि मेडिकल कॉलेज ने शत-प्रतिशत आरक्षण लागू करने की गलती की है, अतः सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का साफतौर पर उल्लंघन हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भी यह रवैया अनुचित है। सभी सीटें केवल उसी कॉलेज के आवेदकों के लिए निर्धारित करना ठीक नहीं है। इससे याचिकाकर्ता सहित अन्य बाहरी आवेदकों का हक मारा गया है। इसलिए याचिकाकर्ता का निरस्त किया गया आवेदन भी स्वीकार होना चाहिए।
माध्यमिक शिक्षा मंडल को निर्देश, कोरोना काल के चलते नियमित छात्र के रूप में प्रवेश पर लें निर्णय
हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि कोरोनाकाल को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता छात्र को नियमित छात्र के रूप में प्रवेश देने पर निर्णय लें, जिससे उसका भविष्य बर्बाद न हो। माध्यमिक शिक्षा मंडल इस संबंध में शीघ्र फैसला ले ताकि सरस्वती उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रांझी के याचिकाकर्ता छात्र को नियमित छात्र के रूप में प्रवेश दे सके। अगले वर्ष याचिकाकर्ता बारहवीं बोर्ड परीक्षा नियमित छात्र के रूप में दे सकेगा।
दरअसल रांझी निवासी शौर्य शर्मा ने याचिका दायर कर बताया था कि साल 2021 में छात्र ने केंद्रीय विद्यालय खमरिया से 10वीं की परीक्षा दी थी। कोरोना के चलते परीक्षा लेट हुई और 3 अगस्त 2021 को परिणाम आए, वहीं 16 अक्टूबर को मार्कशीट प्राप्त हुई थी। छात्र ने माशिमं द्वारा संबद्ध विद्यालय में 11वीं में प्रवेश के लिए आवेदन किया। अंकसूची और माइग्रेशन सर्टिफिकेट जमा करने में देरी के कारण उसे नियमित छात्र के रूप में प्रवेश नहीं दिया गया था।