हरीश दिवेकर, Bhopal. राज्यसभा के बहाने बीजेपी का सरप्राइज गेम प्लान सामने आ गया है। बीजेपी ने तीन सीटों वाले इस चुनाव के लिए ऐसी रणनीति अपनाई है जिसे देखकर अच्छे-अच्छे राजनीतिक सूरमा दंग हैं। एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक निशाना नजदीक है लेकिन दूसरा कितनी दूर जाकर लगने वाला है इसका अंदाजा किसी को नहीं था। एक फैसले से बीजेपी ने कई मैसेज क्लियर कर दिए हैं। पहला ये कि आने वाला चुनाव युवा, महिला और पिछड़ा वर्ग के चेहरे पर होगा। ये उन मठाधीशों के लिए बुरी खबर है जो टिकट या कुर्सी को अब तक अपनी बपौती समझते रहे। उन्हें अब तक ये समझ जाना चाहिए कि अब भी अपने कंफर्ट जोन से या रसूख से बाहर नहीं निकले तो कंफर्ट तो खूब मिलेगा लेकिन रसूख खत्म होने की पूरी संभावनाएं होंगी।
रणनीति से चौंकाना बीजेपी के लिए नई बात नहीं
अपनी चुनावी रणनीति से चौंकाना बीजेपी के लिए कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी बीजेपी ने अक्सर ऐसे फैसले लिए जिन्हें देख सुनने के बाद चुनाव विश्लेषक भी सिर खुजाते रहे। लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह के सामने प्रज्ञा भारती को उतारना भी ऐसा ही एक फैसला था। मध्यप्रदेश ही नहीं इस फैसले की चर्चा तो विदेशों तक में खूब हुई। इत्मिनानियों के शहर भोपाल की लोकसभा सीट देश और दुनिया भर में सुर्खियां बटोरती रही।
एक तीर से दो निशाने
इसके बाद से अजब गजब फैसले लेने की बीजेपी की फितरत बढ़ती जा रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसे फैसलों की अपेक्षा बहुत ज्यादा रहती है। लेकिन ये किसी रणनीतिकार की सोच से परे था कि राज्यसभा की तीन सीटों पर बीजेपी बड़ा चुनावी खेल कर देगी। प्रत्याशी चयन से मध्यप्रदेश के बड़े लीडर्स को तो मैसेज गया ही है। गुजरात चुनाव के लिए भी बीजेपी ने बड़ा दांव चल दिया है। जैसा हम पहले भी कह चुके हैं। एक तीर से दो निशाने लगे हैं। एक तीर तो एमपी के लिए ही चला दूसरा तीर गुजरात के लिए चला है।
पुराने प्रत्याशियों में ही उलझी है कांग्रेस
बीजेपी की इन रणनीतियों से उलट कांग्रेस पुराने प्रत्याशी में ही उलझी है। हालांकि विकल्प कांग्रेस के पास भी थे लेकिन प्रदेश के विकल्पों को तवज्जो देने की जगह कांग्रेस ने कश्मीर को अहमियत दी। हो सकता है आज ये कांग्रेस का कोरा दांव लग रहा हो। लेकिन इस फैसले का फायदा समझने की लिए आपको थोड़ी दूरदृष्टि की जरूरत होगी।
जो नाम सामने आए उनके चर्चे दूर-दूर तक नहीं थे
किसी भी चुनाव से पहले जब प्रत्याशी चयन का दौर चल रहा होता है तब नामों की अटकलें लगना शुरू हो जाती हैं। ये एक आम चुनावी परंपरा है। राज्यसभा के टिकट फाइनल होने तक भी अटकलें जारी ही रहीं। कितने ही बड़े-बड़े नामों को टिकट मिलने के कयास लगाए गए। लेकिन जो नाम सामने आए उनके चर्चे दूर-दूर तक नहीं थे। जितना आम लोगों को हैरान किया उतनी ही हैरानी यकीनन उन नेताओं को हुई होगी जो खुद को इस पद के लिए मुफीद मान बैठे थे। ऐसे बड़े नेताओं की फेहरिस्त लंबी थी जिन्हें टिकट देकर बीजेपी पिछड़ा वर्ग के दांव-पेंच के साथ क्षत्रपों की राजनीति को भी साध लेती। लेकिन एक फेमस विज्ञापन की टैग लाइन की तरह बीजेपी भी अब रिस्क उठा नाम बना की तर्ज पर फैसले ले रही है। एमपी की राज्यसभा सीटों से जुड़ा ये फैसला भी कुछ ऐसा ही फैसला नजर आता है।
समर्थकों की भीड़ को साध सकती थी बीजेपी
जयभान सिंह पवैया, कैलाश विजयवर्गीय, लाल सिंह आर्य, धर्मेंद्र प्रधान, ये वो नाम हैं जिनकी चर्चा जोरों पर थी। सब राज्यसभा सीटों के अहम दावेदार माने जा रहे थे। इन्हें राज्यसभा भेजकर बीजेपी समर्थकों की बड़ी भीड़ को साध सकती थी। एक अंचल की पूरी राजनीति को अलग दिशा दे सकती थी। पवैया के राज्यसभा जाने से ग्वालियर चंबल में धाक बढ़ जाती। पश्चिम बंगाल चुनाव से फारिग हो चुके कैलाश विजयवर्गीय भी किसी बड़े पद की आस में थे। टिकट मिलता और राज्यसभा जाते तो मालवा में शान और बढ़ जाती। लाल सिंह आर्य भी पिछड़ा वर्ग राजनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभरने के सपने जरूर संजो चुके होंगे। लेकिन लिस्ट में फाइनल हुए दो नाम कुछ और ही थे। बीजेपी ने कविता पाटीदार और समुत्रा बाल्मिकी के नाम को आगे बढ़ाया है। दो नामों के सहारे बीजेपी महिला वोटर्स को साध लिया है। आने वाले पंचायत चुनाव में वो पिछड़ा वर्ग के साथ साथ महिला वर्ग की भी हिमायती नजर आएंगी। पाटीदार के नाम पर गुजरात चुनाव की राह भी आसान होने की उम्मीद है।
दो नामों से बीजेपी की झोली में जा सकता है OBC और SC वर्ग
इन दो नामों से ओबीसी और एससी वर्ग भी बीजेपी की झोली में जा सकता है। याद दिला दें विधानसभा चुनावों महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोटिंग की थी। इस बार ग्राम पंचायत के चुनाव में भी एक करोड़ 90 लाख 62 हजार 749 महिला वोटर हैं। बीजेपी इन्हीं वोटरों को साधने के लिए महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। जबकि कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे विवेक तन्खा को ही रिपीट करने का फैसला लिया है। क्या ये कश्मीर फाइल्स का इम्पैक्ट है या फिर कुछ समय बाद जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने ये फैसला किया है।
बीजेपी ने शुरू किया बड़ा चुनावी खेल
पाटीदार और बाल्मिकी के नाम की घोषणा कर बीजेपी ने बड़ा चुनावी खेल शुरू कर दिया है। इसे पार्टी अब बड़े पैमाने पर भुनाने की कोशिश कर रही है। अभी प्रदेश में सीएम भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं। ओबीसी वर्ग एमपी के चुनाव में गेम चेंजर की भूमिका में होते है। निकाय चुनावों में बीजेपी अगर अपने प्लान में सफल होती है तो इससे मिशन-2023 को भी इससे बड़ा फायदा होगा।
बीजेपी हर चाल को लेकर सजग
फिलहाल तो राजनीति की बिसात कुछ यूं नजर आ रही है कि दोनों तरफ के पाले में बीजेपी ही खेल करती दिख रही है। कांग्रेस के मोहरे उन जगहों तक पहुंचते ही नहीं दिखते जहां से खेल की पहली चाल शुरू होती है। प्यादा हो या राजा बीजेपी हर चाल को लेकर सजग है। जिसे देखते हुए लगता है कि बाजी खेलने में देरी करना कहीं कांग्रेस को और 5 साल के लिए विपक्ष में बैठने पर मजबूर न कर दे।