Jabalpur. बीजेपी ने सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा कैंडिडेट बनाया है। सुमित्रा कभी सिलाई टीचर थीं। सिलाई सीखने आने वाली महिलाओं की तकलीफें जानकर वे भी परेशान हो जाती थीं और फिर उनकी उन्हीं तकलीफों को दूर करने के जज्बे ने उन्हें राजनीति की तरफ मोड़ दिया। सुमित्रा ने एक वेबसाइट से बात करते हुए अपनी जिंदगी के कुछ हिस्सों को शेयर किया....
पति फैक्टरी में काम करते थे
सुमित्रा के मुताबिक, मैं जबलपुर के कांचघर की रहने वाली हूं। फैक्टरी में काम करने वाले रांझी के गुरुचरन वाल्मीकि से मेरी शादी हुई। शादी से पहले सिलाई-कढ़ाई में मैं पारंगत हो चुकी थी। बात 1978 से 1984 के बीच की है। पति सुबह फैक्टरी निकल जाते थे। घर में सास थीं। पूरा दिन खाली रहती थी। इस खाली समय में महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखाना शुरू कर दिया। शादी के बाद इंटर, फिर BA किया।
शुरुआती दिनों में 10 से 15 महिलाएं सिलाई सीखने आती थीं। सभी गरीब घरों की होती थीं, इस कारण उनकी जिंदगी की ढेरों समस्याएं भी होती थीं। अक्सर वे अपनी समस्याओं का जिक्र कर उनसे मदद मांगती थी। महिलाओं की मदद करने के जुनून ने सियासत में आने की राह खोली। महिलाओं की मदद की खातिर कलेक्ट्रेट ऑफिस, विक्टोरिया और एल्गिन अस्पताल जाने लगीं। इन महिलाओं की छोटी-छोटी समस्याएं रहती थीं, जैसे किसी का राशन कार्ड नहीं था, तो किसी की डिलीवरी कराने में मदद करती थी। इसे लेकर अक्सर अधिकारियों और हॉस्पिटल की नर्सों से बहस तक हो जाया करती थी।
गरीबों की छोटी-छोटी समस्याएं रहती थीं, लेकिन उस दौर में इन समस्याओं को दूर कराना ही सबसे मुश्किल होता था। महिलाओं को लेकर ऑटो से नगर निगम, कलेक्ट्रेट और बीमारी या डिलीवरी में अस्पतालों में अक्सर जाने लगी।
1992 में VHP से जुड़ीं
सुमित्रा बताती हैं कि बच्चों की जिम्मेदारी आई तो सिलाई सिखाने का काम बंद करना पड़ा। हालांकि, समस्याएं लेकर महिलाओं का मेरे पास आना जारी रहा। 1992 में विहिप से जुड़े लक्ष्मण गुप्ता घर आए, जो पति के साथ फैक्टरी में काम करते थे। वे बोले- तुम महिलाओं के लिए काम करती ही हो तो विहिप से जुड़ जाओ। उस दौर में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। मैं भी हिंदुत्व से प्रेरित थी, इस कारण विहिप की सदस्य बन गई। 1992 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन हुआ था। तब वहां मदनलाल खुराना की सरकार थी। विहिप के बैनर तले इस सम्मेलन में मैं भी 35 महिलाओं और 5वीं व 6वीं में पढ़ने वाली अपनी दोनों बच्चियों को लेकर शामिल होने गई थी। दिल्ली की ये पहली यात्रा थी।
1993 में MP में विधानसभा चुनाव हुए। कैंट से ईश्वर दास रोहाणी विधायक चुने गए। चुनाव में उनकी मदद की थी। विधायक बनने के बाद वह घर आए और बीजेपी में शामिल होने का ऑफर दिया। बोले- तुम महिलाओं के बीच लोकप्रिय हो। उनकी समस्याओं को उठाती रहती हो। अब बीजेपी की कार्यकर्ता बनकर उनकी समस्याओं के लिए लड़ो। इसके बाद अक्सर होने वाले आंदोलनों में मैं क्षेत्र की महिलाओं के साथ शामिल होने लगी।
मेरा घर अंबेडकर वार्ड में है। 1999 में ये वार्ड SC महिला के लिए सुरक्षित हुआ तो बीजेपी से पार्षद का टिकट मिला। जीतकर नगर निगम के सदन में पहुंची। 2004 में सीट एससी अनारक्षित हुई, बावजूद फिर जीत हासिल की। 2006 में महिला मोर्चा की नगर अध्यक्ष बनी। उसी साल नगर निगम की उप-सभापति चुनी गई। 2008 में सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्य बनी। 2009 में वार्ड सामान्य हुआ, तो टिकट नहीं मिला। पार्टी ने पार्षद मनोनीत कर सदन में भेजा। 2014 में वार्ड नंबर 62 से फिर पार्षद बनी। नगर निगम अध्यक्ष का पद सामान्य होने के बावजूद पार्टी ने मौका दिया।
2019 में पति नहीं रहे। दोनों बेटियों और बेटे की शादी हो चुकी है। एक बेटी भोपाल में ब्याही है। दूसरी जबलपुर में प्राइवेट टीचर है। बेटा सीटी स्कैन का सेंटर चलाता है, तो बहू कम्प्यूटर ऑपरेटर है। 2021 में पार्टी ने प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया और राज्यसभा का प्रत्याशी बनाकर पार्टी ने 30 सालों की सेवा और समर्पण का इनाम दिया है।