रीवा : नगरीय निकाय चुनाव के लिए तैयार बीजेपी और कांग्रेस, जानें कौन कितना मजबूत

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The Sootr CG
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रीवा : नगरीय निकाय चुनाव के लिए तैयार बीजेपी और कांग्रेस, जानें कौन कितना मजबूत

राकेश मिश्रा, Rewa. नगरीय निकाय चुनाव को लेकर रीवा में भी सियासी पारा चढ़ने लगा है। अभी आरक्षण और मेयर पद के आरक्षण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रमुख पार्टियां मैदान में दो-दो हाथ करने लंगोटी बांधने लगी हैं। दोनों दलों के ताजा हालात के पहले ये जान लेना जरूरी है कि पिछले चुनाव में किसकी क्या स्थिति रही।



7 साल पहले BJP को मिली थी जीत



7 साल पहले प्रदेश के साथ रीवा नगर निगम के आम चुनाव हुए थे जिसमें बीजेपी को ही जीत मिली थी लेकिन तब से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल चुका है। इसके संकेत 2018 के विधानसभा चुनाव और उसके नतीजे में देखा जा सकता है। रीवा विधानसभा सीट पर 2003 के बाद सबसे कम अंतर से जीत मिली जो मार्जिन 60 हजार से ऊपर रहता था वो एकदम से 20 हजार के नीचे आ गया। वे महज 19 हजार मतों से जीत दर्ज कर पाए।



मेयर चुनाव के नतीजे 2014-15




  • ममता गुप्ता, भाजपा-38 हजार 347 वोट


  • प्रियंका तिवारी, कांग्रेस-17 हजार 771 वोट

  • कविता पांडेय, निर्दलीय-24 हजार 892 वोट 



  • कांग्रेस क्यों हारी बाजी ?



    2014 के मेयर चुनाव में कांग्रेस से उम्मीदवार चयन में भारी भूल हुई जिसके कारण पार्टी के हाथ से जीती हुई बाजी निकल गई। जानकार मानते हैं कि प्रियंका तिवारी के स्थान पर पार्टी कविता पांडेय को ही टिकट देती तो नगर निगम चुनाव के परिणाम कुछ और हो सकते थे। कविता पार्टी मे एक जाना-पहचाना और सशक्त नाम है, उसे दरकिनार कर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की करीबी प्रियंका तिवारी को उतार दिया जो एक अपरचित चेहरा था। कविता पांडेय इससे खफा हो गईं और बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरकर कांग्रेस को हार के मुहाने पर पहुंचा दिया। कविता को कांग्रेस प्रत्याशी से बहुत अधिक वोट मिले। जबकि विरोध में दोनों के मत मिलाकर बीजेपी से ज्यादा है। दोनों के वोट 42 हजार 663 थे और बीजेपी को 38 हजार 347 वोट ही मिले।



    विधानसभा के सिग्नल



    निगम चुनाव के लिए होने जा रहे मुकाबले का पूर्वानुमान यदि लगाना चाहें तो हमें 2018 के विधानसभा चुनाव को समझने होंगे। जिले के रीवा विधानसभा सीट पर उक्त चुनाव में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला। हालांकि जीत का सेहरा एक बार फिर पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल के सिर सजा लेकिन इस मर्तबा नतीजे से पार्टी हिल गई। विंध्य के कद्दावर नेता राजेंद्र शुक्ला जिनकी 2003 से जीत का मार्जिन 60 हजार से अधिक होता था। वे केवल 19 हजार के अंतर से कांग्रेस के अभय मिश्रा को हरा सके। रीवा सीट पर 75 फीसदी से अधिक मतदाता शहरी क्षेत्र के हैं।



    बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा चुनाव



    ये कहना कि नगर निगम चुनाव बीजेपी के लिए आसान साबित होगा, उचित नहीं है। संगठन के लिहाज से बीजेपी बीस है लेकिन कांग्रेस के पास शहर सरकार के खिलाफ चुनावी जंग के हथियार कम नहीं हैं। बस उसे सही समय पर इस्तेमाल की जरूरत है। जिन समस्याओं से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है उसे कांग्रेस को अपना सियासी हथियार बनाकर पूरी ताकत से जनता के बीच ले जाना होगा।



    2018 विधानसभा चुनाव के नतीजे




    • अभय मिश्रा, कांग्रेस-51 हजार 717


  • राजेंद्र शुक्ला, बीजेपी-69 हजार 806

  • कासिम खान, बसपा-6 हजार 427



  • लोकसभा 2019 में बीजेपी-कांग्रेस



    लोकसभा के आम चुनाव में रीवा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को मोदी लहर का जबरदस्त लाभ मिला। पार्टी के प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा की कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी राज पर एकतरफा जीत हुई। बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 5 लाख 83 हजार 745 वोट मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 2 लाख 70 हजार 938 वोट मिले। यहां गौर करने वाली बात ये है कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले नगरीय निकाय के मुद्दे बहुत अलग होते हैं। यहां हमेशा स्थानीय मसलों पर चुनाव होते हैं जबकि लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय आधार पर लड़े जाते हैं।



    फैक्ट फाइल




    • जनार्दन मिश्रा, बीजेपी-5 लाख 83 हजार 745


  • सिद्धार्थ तिवारी, कांग्रेस-2 लाख 70 हजार 938

  • विकास पटेल, बसपा-91 हजार 126

  • अंतर-3 हजार 12 हजार 807 से बीजेपी की जीत



  • ये रहेंगे अहम मुद्दे



    इस बार के निगम चुनाव में यूं तो कई मुद्दे हैं लेकिन पानी, सड़क, सीवरेज और बिजली पीएम आवास अहम मसले हैं। 100 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी शहर के 45 वार्डों के करीब 45 हजार लोगों को स्वच्छ और साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। लोगों के घरों में गंदा और बदबूदार, मटमैला पानी लगातार पहुंच रहा है। यही नहीं 214 करोड़ का सीवरेज योजना भी सुपर फ्लॉप साबित हुई। शहर की मुख्य सड़क के साथ ही वार्डों की सड़कें अत्यंत खराब हालत में हैं। पीएम आवास अभी तक हितग्राहियों को समुचित तरीके से नहीं मिल सके। यहां तक कि उन्हें बेचने की मुनादी भी काम नहीं आई। इसके आलावा पिछले कुछ महीनों से बिजली भी बड़ी समस्या बन चुकी है। अघोषित कटौती से लोग तंग आ चुके हैं। शहर के अंदर बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है।


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