भोपाल. मध्यप्रदेश में कांग्रेस अब भी नहीं जागी तो हो सकता है कि अगले चुनाव में वो साल 2018 की कामयाबी न दोहरा सके। दोहराना तो दूर की बात उसके सपने देखना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल लगता है। कांग्रेस में बैठक पर बैठक हो रही हैं। 18 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस के मुट्ठी भर नेता दूसरे असंतुष्ट नेताओं को साधने में ही वक्त जाया कर रहे हैं। उधर बीजेपी ने कांग्रेस के खाते वाली 16 सीटों को हथियाने का प्लान बना लिया है। पिछले चुनाव के नतीजों से बीजेपी ने सबक लेने में देर नहीं की है। लिहाजा हर रणनीति उन सीटों के हिसाब से बन रही है, जो बीजेपी ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में गंवा दीं थीं। अब तैयारी उन सीटों को वापस अपनी झोली में लाने की है। इसके लिए बीजेपी ने चौंकाने वाला फैसला लिया है।
बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती पर कांग्रेस हर साल छुटपुट आयोजन करती रही है। अंबेडकर को कांग्रेस ने अपना माना लेकिन कार्यक्रम उनकी प्रतिमा पर फूल माला अर्पण करने और श्रद्धांजलि देने से आगे नहीं बढ़ सका। बीजेपी भी वैसे अब तक इसी तर्ज पर काम कर रही थी। लेकिन अब बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती प्रदेश के किसी एक शहर में नहीं मनाई जाएगी। बल्कि आयोजन पूरे प्रदेश में होगा। हर बूथ स्तर पर बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती जोरों-शोरों से मनाने की तैयारी हो चुकी है।
65 हजार बूथों पर होगा कार्यक्रम
14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इस दिन को नजर में रखते हुए राजनीतिक दलों ने दलित वोटबैंक में पैठ बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। खासतौर से बीजेपी इसमें सबसे आगे है। जो छोटे लेवल से लेकर बड़े लेवल तक कार्यक्रम करने की तैयारी में हैं। बीजेपी ने प्रदेशभर के 65 हजार बूथों पर कार्यक्रम करने का फैसला लिया है। खुद प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने सभी बूथों को अंबेडकर जयंती से जुड़े जरूरी दिशा-निर्देश दिए हैं। उनके मार्गदर्शन में बीजेपी सभी बूथों पर अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देगी। इसके अलावा राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान पर भी बड़ा कार्यक्रम करने की तैयारी है।
चुनावी मूड में बीजेपी
पंद्रह साल प्रदेश की सत्ता में रहने के बाद बीजेपी 2018 का चुनाव हारी। बहुत कम मार्जिन से मिली हार के बाद भी बीजेपी साल 2023 के चुनाव में कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। हार के कारणों पर तो पहले ही चर्चा हो चुकी है। अब उन कारणों या फैक्टर्स की भरपाई करने की रणनीति बन चुकी है। 2023 के मद्देनजर चुनावी मूड में आ चुकी बीजेपी ने 2023 के रोडमैप पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। उस रोडमैप का एक पड़ाव पहले पार हो चुका है। अब तैयारी दूसरे पड़ाव को पार कर आगे का रास्ता तलाशने की है। बीजेपी ही नहीं कांग्रेस भी 2023 की फिक्र में रणनीति तैयार कर रही है। लेकिन बीजेपी के मुकाबले काफी पिछड़ी नजर आ रही है।
वो दिन तो आपको याद ही होगा, जब यूपी चुनाव की व्यस्तताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल आए थे। बिरसा मुंडा की जयंती पर भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया था। कोई दो राय नहीं कि आयोजन बहुत भव्य था। उस एक आयोजन के जरिए बीजेपी ने एसटी वोटबैंक को साधने की पूरी कोशिश की। असर सिर्फ मध्यप्रदेश में नहीं बाकी चुनाव में भी दिखाई दिया।
बीजेपी की पूरी रणनीति अब एसटी, एससी पर फोक्सड है। जनजातीय गौरव दिवस मनाने के बाद अब 14 अप्रैल को बीजेपी दलित महाकुंभ की तैयारी कर रही है, जिसमें ढाई लाख एससी वोटर्स को भोपाल में लाकर एक मेगा शो करने की तैयारी है। संभव है कि गृहमंत्री अमित शाह भी इस कार्यक्रम में शिरकत करें।
बीजेपी की इस पूरी प्लानिंग के बाद कांग्रेस के पास सिवाय हाथ मसलने के कुछ शेष नहीं रह गया है। कांग्रेस भी बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती मनाती रही है। लेकिन कभी उसे महू से निकालकर भोपाल में कराने पर विचार नहीं किया। इस मेगा शो के बहाने बीजेपी ने अंबेडकर को भी अपना बना लिया है। अब कांग्रेस के पास बीते सालों की जुगाली करने और बीजेपी को कोसने के अलावा चारा ही क्या नजर आ रहा है। ये साफ है कि कांग्रेस इस मामले में बुरी तरह पिछड़ी है। चुनावी रणनीति में बनाते समय माइक्रोलेवल की इंजीनियरिंग करने वाली बीजेपी ने बीते चुनाव में हार की नब्ज को इस बार थामने का पक्का फैसला कर लिया है।
एमपी में बीजेपी की दलित राजनीति
इस माइक्रोलेवल की इंजीनियरिंग को समझने के लिए आपको बीते कुछ सालों के चुनावी समीकरणों को भी समझना होगा। इसके बाद ये अंदाजा होगा कि हमेशा सिर्फ हिंदुतत्व की बात करने वाली बीजेपी के लिए एमपी में दलितों की राजनीति करना इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया। आखिर उस वोटबैंक ने बीजेपी का इतना क्या नुकसान किया जिसकी भरपाई करने पहले नरेंद्र मोदी को एमपी आना पड़ा और अब अमित शाह के आने की संभावना है। मध्यप्रदेश की सत्ता का रास्ता नापेंगे तो पाएंगे कि यही वो रास्ता है जो जीत तक लेकर जाता है। सत्ता के गलियारों की चाबी एससी एसटी और ओबीसी के वोट बैंक से ही होकर गुजरती है।
साल 2018 में यही वोटबैंक छिटका तो बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई। मोटे-मोटे आंकड़ों को समझें तो दलित वोटबैंक का प्रतिशत मध्यप्रदेश में 15.7 फीसदी है। पिछले चुनाव में 35 सीटें ऐसी थीं, जो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। इसमें से 19 सीटें बीजेपी के खाते में आईं जबकि 16 सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं। यही नुकसान बीजेपी को भारी पड़ गया।
बीजेपी ने चुनाव के लिए कमर कस ली
आरक्षित सीटों की बात छोड़ दें तो 230 विधानसभा वाले प्रदेश में 59 ऐसी सीटें हैं, जहां आरक्षित वर्ग का वोट बैंक वजनदारी रखता है। पहले जनजातीय गौरव दिवस और अब अंबेडकर जयंती के बहाने बीजेपी की कोशिश इस वोट बैंक को पूरा का पूरा अपनी तरफ खींचने की है। इन्हीं रिजर्व सीटों के सहारे कांग्रेस ने अपना 15 साल लंबा सत्ता का वनवास खत्म किया था। लेकिन उसके बाद अपने ही नेताओं और उनके असंतोष को न संभाल पाने की वजह से कांग्रेस टर्म पूरा किए बगैर सत्ता से बेदखल हो गई। उसके बाद से कांग्रेस अपनी ही पार्टी में ऐसी कोई नई जान नहीं फूंक सकी है कि नेता फिर 2018 वाला करिश्मा दोहरा सकें। जबकि 2018 की हार से सबक लेकर डेढ़ साल पहले से ही बीजेपी ने चुनाव के लिए कमर कस ली है। अब देखना ये होगा कि क्या बीजेपी के मेगा शो से इम्प्रेस हो कर ये वर्ग बीजेपी के पाले में जाते हैं या फिर महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे को दमदार मानकर कुछ और ही फैसला सुनाते हैं।