अरुण तिवारी, Bhopal. साल 2016 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के तुलसी नगर स्थित करुणा बुद्ध विहार में गौतम बुद्ध के अस्थिकलश के दर्शन के बाद कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता। इस बयान के बाद सवर्ण वर्ग और बीजेपी के बीच दूरी बनने लगी। सपाक्स जैसी पार्टी का उदय हो गया। 2018 के चुनाव में बीजेपी 165 से 109 सीटों पर आ गई। विश्लेषकों और कई पार्टी नेताओं ने इसके पीछे माई के लाल बयान को भी बड़ी वजह माना। वक्त बीता लेकिन इस बयान ने शिवराज का पीछा नहीं छोड़ा और गाहे—बगाहे ये बात सामने आती रही कि सवर्ण समाज बीजेपी से नाराज है। अब 2023 के चुनाव के पहले सरकार इस नाराजगी को खत्म करना चाहती है। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सामान्य वर्ग कल्याण आयोग की कमान अपने करीबी मित्र शिव चौबे को सौंपी है। शिव चौबे पिछले छह महीने से प्रदेश में सवर्णों का डाटा इकट्ठा कर रहे हैं। सभी कलेक्टरों से उनके जिलों में सामान्य वर्ग की संख्या, आर्थिक,सामाजिक और शैक्षणिक स्तर की जानकारी मांगी गई है। सवर्णों की समस्याएं सुलझाने के लिए तीन मई को संभागीय सम्मेलन किए जा रहे हैं। इस में संभाग के सभी जिलों के सवर्ण समाज के लोगों को बुलाया गया है। सभी कमिश्नर और कलेक्टरों को उपस्थित रहकर उनकी समस्याएं मौके पर सुलझाने के निर्देश दिए गए हैं।
सवर्णों को साध रही बीजेपी
बीजेपी रणनीतिक तरीके से एससी,एसटी,ओबीसी के बाद अब सवर्णों को साध रही है। पार्टी हर वर्ग पर फोकस कर केंद्रीय नेतृत्व के 50 फीसदी वोट हासिल करने के फॉर्मूले पर काम कर रही है। आयोग के सर्वे में ये बात सामने आई है सामान्य वर्ग को सरकार की योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा। यहां तक कि दस फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण से भी सामान्य वर्ग के लोग वंचित हैं। प्रदेश भर से सवर्णों का डाटा आने के बाद आयोग घर—घर जाकर उनकी समस्याएं सुलझाएगा। आयोग ने कुछ बड़ी सिफारिशें सरकार को ही हैं। इनमें हर जिले में बीस हजार वर्ग फीट पर दिव्यांग पार्क बने। सामान्य वर्ग के लघु और सीमांत किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादकता परियोजना शुरु की जाए। सामान्य वर्ग के छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में चार साल की आयु सीमा की छूट दी जाए। सामान्य वर्ग छात्रों के लिए अलग से होस्टलों को खोला जाए। मंदिर की जमीन का पट्टा देकर पुजारी का घर बनवाया जाए। गांवों की भजन मंडलियों को अनुदान देकर सुविधाएं दी जाएं। छोटे दुकानदारों का प्राकृतिक आपदा में नुकसान होने पर मुआवजा दिया जाए। जिन लोगों की सालाना आय ढाई लाख रुपए से कम है उनके बच्चों को 500 रुपए महीने प्रोत्साहन राशि दी जाए और स्कूल और उच्चशिक्षा के लिए आर्थिक सहायता दी जाए। गांवों के समाजसेवियों को आयोग में सदस्य बनाया जाए। सामान्य वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष शिव चौबे कहते हैं कि हम इस वर्ग को सुविधाएं देकर जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सवर्णों का वोट पर असर
सवाल ये है कि आखिर सवर्ण समाज की चिंता बीजेपी सरकार को चुनाव के वक्त ही क्यों हुई है। इसका पूरा चुनावी समीकरण है। 2018 चुनाव में सवर्ण आंदोलन सपाक्स के रुप में सामने आया। भले ही इस पार्टी को करीब एक फीसदी वोट मिला हो लेकिन इसने सरकार को परेशान बहुत किया। अगर प्रमुख पार्टियों को मिले वोट को छोड़कर वोट शेयर को देखें तो बड़ा हिस्सा नोटा, निर्दलीय और अन्य के खाते में गया है। इन सबको सवर्ण समाज की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि सवर्ण समाज के लोगों ने अलग—अलग तरह से बीजेपी से हिसाब बराबर करने वोट को हथियार के रुप में इस्तेमाल किया है। 2018 में 3 करोड़ 81 लाख 37 हजार 528 वोट पड़े थे। इनमें सपाक्स को करीब डेढ़ लाख, नोटा को 5 लाख 40 हजार, निर्दलीय उम्मीदवारों को 22 लाख 17 हजार और अन्य को 19 लाख 74 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं। इन वोटों ने ही बीजेपी को 185 से 109 सीटों पर पहुंचाया। सपाक्स एक बार फिर चुनावों को लेकर सक्रिय हो गई है। सपाक्स अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि बीजेपी को चुनाव के समय सवर्णों की याद आई है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सामान्य वर्ग कल्याण आयोग की पिछली सिफारिशों को भी सरकार ने नहीं माना।
कांग्रेस का सरकार पर निशाना
चुनाव में सबसे अहम भूमिका 10 फीसदी फ्लोटिंग वोटर भी निभाता है। ये पहली बार का वोटर और युवा वर्ग होता है। ये युवा रोजगार,महंगाई के मुदृे पर वोट डालता है, जो परंपरागत या पारिवारिक विचारधारा से अलग होता है। आयोग मानता है कि इन फ्लोटिंग वोटर्स में सामान्य वर्ग के पढ़े—लिखे युवा ज्यायदा होते हैं। कांग्रेस इसे सरकार का छलावा बता रही है। पार्टी प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि बीजेपी जाति के आधार पर लोगों को बांटकर राजनीतिक अपराध कर रही है।