BHOPAL. प्रदेश की सात नगर निगम में महापौर पद गवांकर निशाने पर आया बीजेपी प्रदेश संगठन अब सतर्क हो गया है। इस हार को लेकर भोपाल से दिल्ली तक हो रही छीछलादेरी को देखते हुए प्रदेश संगठन अब अपने नए पैटर्न पर काम करेगा। राजधानी में बैठकर निकायों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अथवा नेता प्रतिपक्ष तय करने की बजाय अब प्रदेश संगठन खुद स्थानीय स्तर पर पहुंचेगा। इसके लिए सभी निकायों के लिए पर्यवेक्षक तैनात कर दिए गए है। ये पर्यवेक्षक एक-दो दिन में अपने प्रभार के निकायों के पहुंचकर हर पद के लिए जीते हुए प्रत्याशियों के लिए आम सहमति बनाएंगे; साथ ही लोकल लीडर्स की पसंद से ही नेताओं के नाम फाइनल किए जाएंगे।
जानकारी के अनुसार प्रदेश संगठन ने प्रदेश के 242 नगरीय निकायों में पर्यवेक्षकों के नाम तय कर लिए है। प्रदेश पदाधिकारियों, विधायकों, पूर्व सांसद, पूर्व विधायकों के अलावा जिला अध्यक्ष भी पर्यवेक्षक बनाए जा रहे है। आजकल में ही सूची जारी कर सभी को जल्द से जल्द अपने प्रभार के क्षेत्रों में भेजा जाएगा। सूत्रों के मुताबिक सातों हारे हुए नगर निगमों में अपने अध्चक्ष बनाने और नेता प्रतिपक्ष बनवाने पर प्रदेश संगठन फोकस कर रहा है। ताकि महापौर पद की भरपाई की जा सके। इसके लिए खास टारगेट बनाया जा रहा है कम अंतर वाले नगर निगमों को। जिन नगर निगमों में बीजेपी और कांग्रेस के पार्षदों के संख्या में एक-दो का ही अंतर है, और जहां निर्दलीयों के साथ मिलकर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर उलटफेर कर सकती है, ऐसे सभी नगर निगमों में बीेजेपी के पर्यवेक्षक अपनी सक्रियता दिखाते हुए पूरी स्थिति पर नजर रखेंगे और किसी भी हालत में अपना अध्यक्ष बनवाने की कोशिश करेंगे। वहीं जिला पंचायत अध्यक्षों के लिए बीजेपी जीते हुए अपने बागियों और निर्दलीय प्रत्याशियों की मान मनोव्वल में जुट गई है।
छिंदवाड़ा में नहीं है कोई उम्मीद
पूर्व सीएम व पीसीसी चीफ कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में बीेजेपी के लिए सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी है। मेयर पद पर हारने के साथ ही बीजेपी को छिंदवाड़ा में पार्षद भी काफी कम संख्या में मिले हैं। यहां बीजेपी के 18 तो कांग्रेस के 26 पार्षद है। निर्दलीय भी केवल 4 जीते हैं। ऐसे में बीजेपी यदि निर्दलीयांे को साधने के बाद भी कोई उलटफेर करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए बीजेपी ने अब छिंदवाड़ा को अपनी सूची से अलग कर दिया है। यहां भी पर्यवेक्षक भेजे जाएंगे, लेकिन वे अपने पार्षदों के बीच रायश्ुामारी कर केवल नेता प्रतिपक्ष चुनने में अपनी भूमिका निभाएंगंे। दूसरी ओर सतना, रीवा और बुरहानपुर में निर्दलीय पार्षदों के जरिए कांग्रेस उलटफेर अध्यक्ष पद पर दावेदारी कर सकती है। जबकि यहां बीजेपी के पार्षद सबसे ज्यादा है, लेकिन दोनों के बीच अंतर बमुश्किल एक-दो सीट का अंतर है। निर्दलीय पार्षद भी बहुतायत में है, ऐसे में निर्दलीय खेल न बिगाड़ सकें, इस पर पर्यवेक्षक सीधी नजर रखेंगे। अध्यक्ष पद किसी भी स्थिति में अपने हाथ से जाने नहीं देंगे। जरूरत पड़ने पर प्रदेश संगठन को तत्काल सूचित करेंगे।
जिला पंचायतों में बागियों ने बढ़ाई परेशानी
दस दिन बाद 29 जुलाई को होने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए भाजपा को कई जिलों में खासी मशक्कत करना पड़ रही है। हालात यह हैं कि कई जिलों में तो बीजेपी के पास उस वर्ग के पंचायत सदस्य ही नहीं है ,जिस कैटेगरी के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष का पद आरक्षित है। ऐसे में बीजेपी को अब अपने प्रत्याशी को हराने वाले बागी प्रत्याशियों के ही आगे-पीछे घूमना पड़ रहा है। इनको साधने के लिए जिले के दिग्गज नेताओं को तैनात किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दावा किया है कि बीजेपी 44 जिला पंचायतों में अध्यक्ष बनाएगी। जबकि बीजेपी के नेता जिन जिलों में सीधे जीते हैं, उनकी संख्या 40 से भी कम है। ऐसे में बागी और निर्दलीयों को साधकर ही बीजेपी अपना टारगेट पूरा कर सकती है।
सीधी में अनारक्षित महिला कैंडिडेट नहीं बीजेपी के पास
सीधी जिला पंचायत सदस्य का परिणाम घोषित होने के बाद बीजेपी में जहां अनारक्षित महिला सदस्य का नितांत अभाव है। वहीं कांग्रेस में कई महिला सदस्य दावेदार हैं। कांग्रेस से प्रमुख दावेदारों में मीनू केडी सिंह, नीलम कुलदीप शुक्ला और श्रद्धा देवेंद्र सिंह हैं। बीजेपी से जीते महिला सदस्यों में पूजा कुशरामए हीराबाई सिंह और सरस्वती बहेलिया प्रमुख हैं। पूजा और हीराबाई आदिवासी वर्ग से आती हैं, जबकि सरस्वती अन्य पिछड़ा वर्ग से है। ऐसे में बीजेपी या तो इन्हीं में से किसी एक को अध्यक्ष बनवाएगी या फिर कांग्रेस समर्थित जिला पंचायत सदस्यों को बीजेपी ज्वाइन कराएगी। यहां अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल भी अपनी कोशिश में जुटे हैं।
कटनी में निर्दलीय किन्नर की चमक सकती है किस्मत
कटनी जिला पंचायत में अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित है। यहां जिला पंचायत सदस्यों की चौदह सीटें हैं, जिनमें से केवल दो अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इनमें से एक बहोरीबंद के वार्ड क्रमांक 2 से सुनीता मेहरा हैं जो कांग्रेस के पूर्व विधायक सौरभ सिंह की करीबी मानी जाती हैं। दूसरी सीट रीठी के वार्ड नं 9 से किन्नर माला मौसी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीती है। जिले की 14 सीटों में से सात पर भाजपा अपनी जीत का दावा कर रही है। जीते हुए पांच उम्मीदवार कांग्रेस समर्थित हैं। एक.एक सीट निर्दलीय और बसपा समर्थित के खाते में गई है। ऐसे में बीजेपी किन्नर माला मौसी को पार्टी ज्वाइन कराकर जिला पंचायत अध्यक्ष बना सकती है तभी अध्यक्ष का पद बीजेपी को मिल सकेगा।
रीवा में निर्दलीय पर नजर
रीवा जिला पंचायत अध्यक्ष का पद एसटी महिला के लिए आरक्षित है और यहां भाजपा समर्थित कोई भी महिला सदस्य जिला पंचायत सदस्य नहीं बन सकी है। ऐसे में बीजेपी ने हनुमना क्षेत्र की एक निर्दलीय विजेता सदस्य को पार्टी की सदस्यता दिलाई है और अन्य सदस्यों को साधने के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष का पद हासिल करने की कवायद तेज कर दी है।
खंडवा-रतलाम में बागी के हाथ में बीजेपी
रतलाम और खंडवा जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। खंडवा जिला पंचायत अध्यक्ष पद के दावेदारों में कंचन पति मुकेश तनवे वार्ड क्रमांक 2 से जीती है, लेकिन यह भाजपा की समर्थिक प्रत्याशी का विरोध कर बगावत के साथ चुनाव लड़ी और जीत गई है। ऐसे में भाजपा की सारी उम्मीद अपनी बागी कंचन पर टिक गई है। कंचन को दोबारा साथ लेने के बाद ही बीजेपी अपने टारगेट में सफल हो सकती है। यहां भाजपा के आठ सदस्य जीते हैं, ऐसे में दो बागियों को साथ लेकर ही बीेजेपी बहुमत का आंकड़ा प्राप्त कर सकती है। दूसरी ओर रतलाम में भी लगभग यही स्थिति है। रतलाम जिला पंचायत में कुल 16 वार्ड है जिसमें बीजेपी समर्थित 7 उम्मीदवार जीते हैं तो कांग्रेस समर्थित केवल 3 उम्मीदवार जीते है। 4 वार्डों में जयस तथा 2 वार्ड में निर्दलीय जीते हैं। रतलाम जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अजा महिला के लिए आरक्षित है। इस वर्ग की जो महिलाएं जीती हैं उनमें एक बीजेपी से हैं जबकि दूसरी बीजेपी की बागी हैं। नौ सीटों की पूर्ति के लिए बीजेपी को बागी के सहारे की जरूरत है।
अलीराजपुर में अपने ही कर रहे विरोध
अलीराजपुर जिले में बीजेपी के लिए अपने ही लोगों ने परेशानी खड़ी कर दी है। यहां चुनाव के बाद बीजेपी के नेता ही अपनी पार्टी को अध्यक्ष पद से दूर करने में जुटे है। यहां से शिकायत भी प्रदेश संगठन के पास आ चुकी है। यहां खुलकर भितरघात कर कांग्रेस के प्रत्याशी पर जोर लगाया जा रहा है। असल में यहां दो नेताओं में आपसी टक्कर है, पूर्व विधायक नागर सिंह चौहान ने कई समर्थकों को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाया था, लेकिन सभी हार गए। अब जो जीते हुए कैंडिडेट हैं, उसमें जिला अध्यक्ष वकील सिंह ठकराला की पत्नी सुरेखा ठकराला की मजबूत दावेदारी है, मगर पार्टी का दूसरा धड़ा ही उन्हें अध्यक्ष बनने से रोकने में जुट गया है।