विंध्य की आहट से बीजेपी सहमी, फिर राजेन्द्र शुक्ल पर लगाया दांव

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The Sootr CG
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विंध्य की आहट से बीजेपी सहमी, फिर राजेन्द्र शुक्ल पर लगाया दांव

Bhopal. स्थानीय निकायों के चुनाव और साल भर बाद विधानसभा चुनावों को लेकर विन्ध्य से आ रहे संकतों ने बीजेपी की पेशानी पर बल ला दिया है। सत्ता में लौटने के सवा दो साल तक हाशिए पर रखने के बाद पूर्व मंत्री और रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल को विन्ध्य में बीजेपी का चेहरा बनाकर पेश किया है। दो दिन पहले गठित कोर कमेटी और चुनाव समिति में बतौर सदस्य नामित किया है। यही समिति अब अगले चुनाव तक पार्टी के निर्णयों की नीतिनियंता होगी। ये दोनों समितियां केन्द्रीय नेतृत्व के निर्देश पर बनी हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा संगठन में अब तक राजेंद्र शुक्ल के महत्व से परहेज करते रहे हैं। दूसरी ओर राजेन्द्र शुक्ल को शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिपरिषद में शामिल न किया जाए, इसके लिए प्रतिद्वंदी नेताओं ने एक दबाव समूह भी बनाकर रखा था। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के संगठन प्रभारी मुरलीधर राव ने इस दुरभिसंधि का अच्छे से आंकलन कर लिया है। संघ भी इस हकीकत से वाकिफ है।





जीत के तिलस्म पर विश्वासघात की राजनीति





विन्ध्य जिसे राजनीतिक तौर पर अब रीवा और शहडोल संभाग तक कर दिया गया है यहां राजेन्द्र शुक्ल जैसी कदकाठी का कोई विकल्प बीजेपी के पास नहीं। वीडी शर्मा ने शुक्ल की काट के लिए पहले चरण में बतौर आदिवासी नेतृत्व जिन मीना सिंह का नाम आगे बढ़ाया था वे उमरिया की सीमा से न बाहर निकल पाईं न ही प्रदेशव्यापी पहचान बन पाई। सूत्रों के अनुसार राजेन्द्र शुक्ल को मंत्रिपरिषद में आने से रोकने के लिए प्रदेश नेतृत्व के इशारे पर विन्ध्य क्षेत्र के जिन नेताओं का दबाव समूह बनाया गया था वे भी निर्रथक निकले। बुजुर्ग नेता नागेन्द्र सिंह गुढ-गिरीश गौतम और केदारनाथ शुक्ल की त्रयी भी टूटकर बिखर चुकी है। वैसे भी ये तीनों इस विधानसभा चुनाव तक पार्टी की निर्धारित उम्र की सीमा पार कर चुके होंगे और परिवार से किसी को टिकट मिलेगी इसकी भी उम्मीद जीरो है। इनके अलावा अन्य नेता जो विधायक हैं। वे अपने क्षेत्रों की चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इसलिए घूम-फिरकर पार्टी नेतृत्व को विन्ध्य में वैतरिणी पार लगाने के लिए राजेन्द्र शुक्ल पर नजरें टिकानी पड़ी हैं।





विन्ध्य की रीढ़ पर टिकी है प्रदेश सरकार





2018 के विधायक चुनाव में राजेन्द्र शुक्ल ही विन्ध्य में पार्टी के चेहरा रहे। वे टिकट और कोर कमेटी में थे। गृह जिले रीवा की सभी सीटें बीजेपी के खाते में आई हीं मंत्री के तौर पर उनके प्रभार वाले जिलों शहडोल और सिंगरौली की सभी सीटें बीजेपी ने जीती थीं। अनूपपुर में बड़ा झटका लगा वहां की तीनों सीटें कांग्रेस ने जीती थीं.. बिसाहूलाल पार्टी बदलकर उपचुनाव जब बीजेपी से लड़े तब चुनाव की बागडोर राजेन्द्र शुक्ल को दी गई थी और इसमें सफलता मिली। इस तरह 30 में से 24 सीटें बीजेपी को मिलीं और बकौल शिवराज सिंह चौहान बीजेपी की सरकार विन्ध्य की रीढ़ पर टिकी है। पार्टी कार्यकर्ता और राजनीतिक प्रेक्षक तब हतप्रभ रह गए जब राजेन्द्र शुक्ल को मंत्रिपरिषद में जगह नहीं मिली। प्रदेश संगठन ने कोई तवज्जो नहीं दी और न ही उनके जिला संगठन के पदाधिकारियों की नियुक्ति में उनकी राय ली गई।





स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी के आगे की चुनौतियां





कमलनाथ सरकार जाने के बाद जब से बीजेपी की सरकार बनी है विन्ध्य की जनता खुद को ठगी सी महसूस कर रही है। कहने को तीन मंत्री बिसाहूलाल सिंह, मीना सिंह और रामखेलावन पटेल तीन मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर गिरीश गौतम हैं लेकिन प्रदेश की राजनीति में वह चमक नहीं जो पिछले कार्यकाल में थी। इन दो वर्षों में कोई विशेष निर्माण परियोजनाएं भी नहीं मिलीं। पूर्व स्वीकृत निर्माण कार्यों के उद्घाटन हो रहे हैं या उन पर काम चल रहा है। तीनों मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट पर सवालिया चिन्ह हैं और भाजपा में विधानसभा अध्यक्ष गौतम की वैसी हैसियत कहां जैसी कि श्रीनिवास तिवारी की कांग्रेस में थी। विधायक बेलगाम और विवादित हुए। कार्यकर्ता हताश और निराश। बीजेपी की ओर से जितने भी सर्वे हुए हैं वे चुनावों की दृष्टि से निराशाजनक ही हैं। स्थानीय निकाय यानी कि पंचायत और नगरीय निकायों के चुनाव को लेकर बीजेपी के पक्ष में वैसा वातावरण नहीं है जैसा कि 2015 में था। बीजेपी के लिए ये प्रमुख चिंता का विषय है।



 



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