Bhopal. आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में क्या बड़ा उलटफेर होगा। इसका जवाब तकरीबन साफ हो चुका है। शिवराज विष्णु की जोड़ी टिकेगी या जाएगी, इस पर मध्यप्रदेश का पॉलीटिकल सिनेरियो ही जवाब देने के लिए काफी है। जिन लोगों ने महाकाल लोक के लोकार्पण के इवेंट को बारीकी से ऑब्जर्व किया है। उनके लिए चुनाव में बीजेपी की रणनीति और चेहरे का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
नमस्कार मैं हूं हरीश दिवेकर आप देख रहे हैं न्यूज स्ट्राइक
विधानसभा चुनाव नजदीक है। जिस तरह से बीजेपी ने पिछले चुनावों के दौरान कुछ प्रदेशों में चेहरे बदले उसके बाद से ये कयास लगते रहे कि एमपी में भी चेहरा बदला जाएगा। आने वाला चुनाव शिवराज के चेहरे पर नहीं लड़ा जाएगा। यही बात प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा पर भी लागू हुई कि कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें भी बदला जा सकता है। हालांकि आने वाले वक्त में क्या होने वाला है ये सिर्फ पार्टी आलाकमान जानते हैं कि उनके मन में क्या चल रहा है। इसके बावजूद अटकलों का बाजार है कि थमने का नाम नहीं ले रहा। बीजेपी के ताजा कार्यक्रमों के बाद फिर से राजनीतिक गलियारों में तकाजे होने लगे हैं कि शिव और विष्णु रहेंगे या जाएंगे।
क्या फिर से बाजी पलटेगी
शिव और विष्णु, एमपी में ये वही जोड़ी है जो हारी हुई बाजी को पलट कर सत्ता में वापसी कराने में कामयाब रही। अरसे तक सत्ता से दूर रही कांग्रेस को सिर्फ 15 महीने में ही सत्ता से फिर बेदखल कर दिया गया। कमलनाथ सरकार गिराने के बाद यही कयास लगते रहे कि अबकी मौका शिवराज सिंह चौहान को नहीं मिलेगा। विरोधी खेमा इस कदर सक्रिय रहा कि शिवराज को सिंहासन से दूर करके ही दम लेगा लेकिन वक्त और परिस्थितियों के आगे किसी की नहीं चली. शिवराज सिंह चौहान दोबारा कुर्सी पर काबिज हुए और 26 दिन तक अकेले सरकार भी चलाते रहे।
वीडी शर्मा को लेकर भी अटकलें तेज
तब से अब तक शिवराज सिंह चौहान जमे हुए हैं। बीजेपी ने जब जब किसी भी दूसरे प्रदेश के सीएम बदले नजरें मध्यप्रदेश पर भी जमीं। लेकिन शिवराज टस से मस नहीं हुए। हाल ही में जो नजारे महाकाल लोक के दौरान नजर आए। उनसे यही अंदाजा लगाया भी जा रहा है कि शायद अब शिवराज का चेहरा बदलने की संभावनाएं कम ही हैं। सिर्फ शिवराज सिंह चौहान ही नहीं चेहरा तो वीडी शर्मा का बदला जाएगा इस पर भी संशय है। वीडी शर्मा का कार्यकाल अगले साल की शुरूआत में खत्म हो रहा है। उससे पहले ही लॉबिंग की तैयारी होने लगी है लेकिन जिस तरह ये तय हुआ है कि जेपी नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से नहीं बदले जाएंगे। उसी तरह ये संभावनाएं भी जताई जा रही हैं कि वीडी शर्मा भी शायद अगले चुनाव तक पद पर बने रहें। जिसके बाद अब ये अटकलें हैं कि अगला चुनाव शिव और विष्णु ही करवाएंगे।
शिव और विष्णु पर ही भरोसा
ऐसे एक दो नहीं कई कारण हैं जो फिलहाल ये तय करते नजर आ रहे हैं कि शिव विष्णु की जोड़ी नहीं बदलने वाली है जिसका सबसे पहले कारण तो खुद पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं, जिनसे ज्यादा पॉपुलर और विश्वसनीय चेहरा कोई और नहीं है। यकीनन एमपी के चुनाव में भी यही चेहरा सबसे आगे होगा। इसके अलावा जेपी नड्डा और अमित शाह भी ये साफ कर चुके हैं कि 2023 के चेहरे शिवराज सिंह चौहान ही होंगे। हालिया इवेंट में जिस तरह प्लानिंग हुई उसे देखकर भी राजनीतिक विशेषज्ञों का आंकलन इसी नतीजे पर पहुंचता है कि न शिव बदले जाएंगे और न ही विष्णु के बदलने की संभावनाएं हैं। पिछले कुछ दिनों से प्रदेश में एक खबर तेजी से जोर पकड़ रही थी कि विष्णु दत्त शर्मा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। अब ये कमान प्रदेश के किसी अन्य नेता को सौंपी जाएगी।
सीएम की रेस में कई नेता
इसी तरह की अटकलें सीएम फेस के लिए भी लगती रहीं। पर अब तस्वीर से धुंध छंटती दिखाई दे रही है। सीएम पद की रेस में कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नाम शामिल बताए जाते रहे। इसी तरह नए अध्यक्ष के लिए भी कैलाश विजयवर्गीय का नाम उछलता रहा. लेकिन महाकाल लोक के कार्यक्रम में जिस तरह इन सभी नेताओं को दूर रखा गया उससे तस्वीर कुछ और ही नजर आती है। महाकाल लोक में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ कार्यक्रम में शरीक होने सीएम शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा भी पहुंचे थे। उज्जैन में कुछ वक्त ये चेहरे पीएम के साथ दिखाई भी दिए लेकिन महाकाल मंदिर में प्रवेश से पहले उन्हें रोके जाने की खबर है। इसके बाद आगे के कार्यक्रम में सीएम शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही साथ नजर आए जिसके बाद इन अटकलों का बाजार भी ठंडा होते नजर आ रहा है कि सीएम का चेहरा बदला जा सकता है। सीएम या वीडी शर्मा के न बदले जाने के पीछे कुछ ठोस कारण भी नजर आते हैं।
- पहला कारण- ये तय है कि बीजेपी अगला चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही रहेगी। कुर्सी किसे के भी पास हो लेकिन फेस नरेंद्र मोदी ही होंगे।
इन्हीं कारणों के चलते ये माना जा रहा है कि चेहरा बदलने से ज्यादा बीजेपी अपनी माइक्रो रणनीति पर ज्यादा फोकस करेगी। चेहरा बदलने में वक्त जाया करने की जगह अंचलवार और जातिगत वोटर्स के आधार पर रणनीति बनाने पर ज्यादा समय देगी। फिलहाल का राजनीतिक सिनेरियो तो इसी ओर इशारा कर रहा है। आने वाले वक्त में सियासत क्या रंग लेगी ये कहना मुश्किल है।
असंतोष पर कंट्रोल करने में बीजेपी एक्सपर्ट
जिस तरह से बीजेपी के बड़े नेताओं का प्रदेश में बार-बार दौरा होना है उससे ये ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्रीय नेतृत्व पूरा चुनाव प्रचार कैप्चर कर लेगा। प्रदेश में फिलहाल नए सीएम या प्रदेशाध्यक्ष का शगूफा छेड़ने की जगह सिर्फ पीएम दी के चेहरे पर चुनाव लड़ना ज्यादा समझदारी का सौदा होगा। ऐसा करने से पार्टी चुनाव पर ध्यान दे पाएगी। पीएम के चेहरे पर कोई असंतोष उभरने की गुंजाइश भी कम ही है। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद प्रदेश की बागडोर कौन संभालेगा ये तय करना ज्यादा बेहतर माना जा रहा है। चुनाव में अब भी एक साल का वक्त तो है ही। बीजेपी जल्दी फैसले लेने और असंतोष पर कंट्रोल करने में एक्सपर्ट मानी जाती है। ऐसे में किसी भी वक्त फैसला बदलने की स्थिति से भी इंकार नहीं किया जा सकता।