BHOPAL: बीजेपी तीन शहरों में खींचेगी कदम, हारे हुए नगर निगमों में दो पदों से करेगी मेयर पद की भरपाई, अध्यक्ष के लिए नई रणनीति

author-image
Praveen Sharma
एडिट
New Update
BHOPAL: बीजेपी तीन शहरों में खींचेगी कदम, हारे हुए नगर निगमों में दो पदों से करेगी मेयर पद की भरपाई, अध्यक्ष के लिए नई रणनीति

BHOPAL. नगरीय निकाय  चुनावों  (Urban body elections) में जनता ने सत्तापक्ष के साथ ही विपक्षी दलों को भी खुश होने का मौका दिया है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को 5 शहरों की कमान सौंपने के साथ ही प्रदेश के नवागत विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party के) अलावा एक निर्दलीय (independent) को भी मतदाताओं ने सिर-माथे बैठाया है। मगर इस मिलीजुली सरकार ने शहर की सियासत को गर्मा दिया है। खासकर अध्यक्ष पद को लेकर आधा दर्जन से अधिक शहरों में खींचतान के आसार बन गए हैं। एक साथ सात शहर हाथ से​ निकल जाने के बाद बीजेपी अब मेयर के एक पद की भरपाई दो पदों से करने पर विचार कर रही है। इसके चलते नौ शहरों में तो कांग्रेस अध्यक्ष  पद (President's chair )के लिए भी तरस जाएगी। वहीं छिंदवाड़ा के अलावा उन शहरों में भी भाजपा अपने विरोधियों को प्रमुख पदों के लिए खासा परेशान कर सकती है। 

दो चरणों में हुए निकाय चुनावों के रिजल्ट आने के बाद अब दोनों दलों की नजरें अध्यक्ष पद पर टिक गई है। इसके चलते अब पूरा सप्ताह अध्यक्ष पद को लेकर खींचतान में गुजर सकता है। प्रदेश के 16 नगर निगमों में से 9 में बीजेपी (Bhartiya Janta party)के प्रत्याशी जीते हैं तो 7 शहरों में कांग्रेस अपना मेयर बनाने में सफल रही है। इसके अलावा सिंगरौली में आप तो कटनी में निर्दलीय प्रत्याशी महापौर चुना गया है। महापौर के चुनाव में सीधे नुकसान में बीजेपी ही रही है। पिछले चुनाव में जहां सभी 16 शहरों में उसी के मेयर थे तो इस बार सात सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा है। इन सात में से भी पांच शहरों में वार्ड पार्षद के चुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। यानी बीजेपी के पास इतने पार्षद भी नहीं है कि वह अध्यक्ष पद पर सीधे-सीधे जीत सके। इन पांच में छिंदवाड़ा और मुरैना में बीजेपी के पार्षदों की संख्या कांग्रेस से कम हैं तो निर्दलीय भी बराबरी से ​टक्कर दे रहे हैं। ऐसे में बीजेपी सीधे-सीधे टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। जबकि बीजपी किसी भी हाल में अध्यक्ष का पद कहीं भी नहीं छोड़ना चाहती। वहीं जिन सात सीटों पर बीजेपी हारी है, वहां अध्यक्ष के साथ ही नेता प्रतिपक्ष भी बीजेपी अपना बनाकर मेयर और परिषद पर अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है। दूसरी ओर जिन नौ शहरों में बीजेपी के महापौर जीते हैं, वहां अध्यक्ष पद भी बीजेपी अपने पास ही रखेगी। 

हालांकि बुरहानपुर में अपना मेयर होने के बाद भी बीजेपी को अध्यक्ष पद के लिए खासी सतर्कता बरतना पड़ सकती है। बीजेपी के प्रदेश महामंत्री भगवान दास सबनानी का कहना है कि बीजेपी सभी नगर निगमों में अध्यक्ष बनाएगी। जहां हमारे मेयर जीतकर नहीं आए हैं और हमारे पार्षद अधिक हैं वहां नेता प्रतिपक्ष का पद तो हमारा है ही, अध्यक्ष भी हम ही बनाएंगे। किसी और को मौका देने का सवाल ही नहीं उठता। छिंदवाड़ा में हमारी स्थिति स्पष्ट है तो मुरैना और रीवा नगर निगम में अध्यक्ष पद के लिए विचार किया जा रहा है। गुरूवार 21 जुलाई को प्रदेश कार्यालय में इसके लिए मंथन बैठक भी हो रही है। 



सागर में सबसे कमजोर, भोपाल और इंदौर में दावा करने लायक भी नहीं है कांग्रेस



जिन नौ शहरों बीजेपी के महापौर जीते हैं, उनमें से आठ में पार्टी के पास संख्या बल भी भरपूर है। इन शहरों में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावा करने की​ स्थिति में भी नहीं है। सागर शहर की बात की  जाए तो कांग्रेस लगभग साफ है। यहां के 48 में से 40 वार्डों से बीजेपी के पार्षद हैं तो कांग्रेस केवल 7 वार्ड जीत सकी। जबकि एक निर्दलीय के पास है। ऐसे में यहां तो बीजेपी अध्यक्ष अपना बनाएगी और नेता प्रतिपक्ष भी केवल नाम का रहेगा। इसके अलावा भोपाल, इंदौर, खंडवा, रतलाम और देवास में भी कांग्रेस चाहे तो निर्दलीयों का समर्थन लेकर भी बीजेपी के बराबर नहीं पहुंच सकती। ऐसे में वह अध्यक्ष पद के मामले में केवल दर्शक की भूमिका में ही रहेगी। अमूमन यही स्थिति छिंदवाड़ा में खुद बीजेपी की रहेगी। यहां बीजेपी चाहकर भी अध्यक्ष पद के लिए दावा नहीं कर सकती। यहां बीजेपी चारों निर्दलीयों का समर्थन लेकर भी बीजेपी के बराबर नहीं पहुंच सकेगी। यहां कांग्रेस के 26 तो बीजेपी के मात्र 18 पार्षद जीते हैं। छिंदवाड़ा में बीजेपी केवल नेता प्रतिपक्ष के सहारे ही अपनी राजनीति चलाएगी। 









       निगम        


          वार्ड    


        बीजेपी  


      कांग्रेस     


    निर्दलीय 





भोपाल                    


   85  


 58    


 22


5





इंदौर                  


 85  


   64  


 19


   2





ग्वालियर             


 66


34     


   19     


   7





जबलपुर              


 79      


 44  


 26 


 9





खंडवा        


50  


 28      


 13  


  9





बुरहानपुर                      


 48 


19  


 15    


 14





छिंदवाड़ा                       


 48  


 18 


 26    


  4





उज्जैन                    


54


37  


17  


     --





सागर                         


48    


 40    


7  


1





सिंगरौली                     


 45 


23


12  


 10





सतना                  


 45  


20


20


6





कटनी                  


45


 27     


 15  


 3





रीवा                    


45 


 18


16


 11





मुरैना                     


 47 


15


19  


13





रतलाम               


49     


30


15 


4





देवास                   


 45      


 32


8  


 5






सतना में उलझी बीजेपी, रीवा और मुरैना में निर्दलीय तय करेंगे दूसरी कुर्सी



महापौर चुनावों में उलटफेर करते हुए कांग्रेस ने विंध्य और चंबल में बीजेपी को मेयर की कुर्सी से उतार दिया है। इतना ही नहीं, दूसरी कुर्सी यानी अध्यक्ष पद के लिए बीजेपी को खुला मैदान नहीं सौंपा है। इसके चलते अब अध्यक्ष पद पाने के लिए भी बीजेपी को खासी जोर आजमाईश करना होगी। रीवा और कटनी

 में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा पार्षद हैं, लेकिन फिर भी इस स्थिति में नहीं है कि अपनी दम पर अध्यक्ष पद जीत सके। अपना अध्यक्ष बनाने उसे निर्द्लीयों का सहारा लेना होगा। बुरहानुपर में तो अपना मेयर और 19 पार्षद होने के बाद भी बीजेपी  लिए परेशानी बनी हुई है। यहां निर्दलीय पार्षद 14 जीते हैं तो कांग्रेस के 15 पार्षद हैं। ऐसे में कांग्रेस निर्दलीयों को साधकर तस्वीर बदल सकती है। 



तीन शहरो में निर्दलीय ही तय करेंगे अध्यक्ष



सबसे ज्यादा उलझी हुई तस्वीर तीन शहरों सतना, रीवा और मुरैना की है। सतना में मेयर पद बीजेपी ने जीता है, लेकिन बीजेपी के 20 तो कांग्रेस के 19 पार्षद है। इन दोनों के अलावा यहां से 6 निर्दलीय पार्षद भी जीते हैं। ऐसे में निर्दलीय का समर्थन लेकर कांग्रेस भी अध्यक्ष पद के लिए दावा कर सकती है। यही स्थिति रीवा और मुरैना में है। यही स्थिति रीवा की भी है, जहां बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 20 पार्षद हैं। लेकिन कांग्रेस भी ज्यादा पीछे नहीं है। कांग्रेस के 16 पार्षद हैं तो निर्दलीय भी 11 हैं। ऐसे में बीजेपी को अपना अध्यक्ष बनाने के लिए निर्द्लीयों को साथ लेना होगा तो कांग्रेस के लिए भी मैदान खुला हैं। निर्दलीयों को साधकर वह बीजेपी को दूसरी कुर्सी से भी दूर कर सकती है। जबकि मुरैना में इसके विपरीत हाल है। यहां कांग्रेस के सबसे अधिक पार्षद हैं, मेयर पद भी कांग्रेस ने बीजेपी से छीन लिया है। मगर निर्दलीय खेल बिगाड़ सकते हैं। यहां 13 निर्दलीय पार्षद हैं। बीजेपी यदि इन्हें साध लेती है तो अपना अध्यक्ष बनाने की स्थिति में आ जाएगी। 



नगर पालिकाओं में बीजेपी मजबूत, अध्यक्ष पर पर कांग्रेस हताश



नगर निगमों के बाद नगर पालिकाओं की बात करें तो कांग्रेस की हालत बहुत पतली है। प्रदेश की 76 नगर पालिकाओं में से मात्र 11 में ही कांग्रेस के पास संख्या बल है और वह अध्यक्ष बनाने की स्थिति में है। जबकि 65 पालिकाओं में बीजेपी ने अपनी पताका लहराई है। इनमें भी 50 में भाजपा को सीधे-सीधे अध्यक्ष बना रही है। वहीं अन्य 15 में भी बीजेपी की इस स्थिति में है कि वह अध्यक्ष बना ले। इसके चलते बहुत खींचतान नहीं हो सकेगी। कांग्रेस की मजबूती वाली नगर पालिकाओं में जरूर सेंधमारी करते हुए बीजेपी अपने अध्यक्ष बढ़ाने की कोशिश करने में पीछे नहीें रहेगी। दूसरी तरफ प्रदेश की 255 नगर परिषद में से 185 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला है। इनमें से भी 46 में बीजेपी एकतरफा वाली स्थिति में है तो बाकी में भी उसे कोई खतरा नहीं है। इस तरह कुल 231 बीजेपी के पास हैं और कांग्रेस केवल 24 में ही खुशी मना सकती है। 


Madhya Pradesh मध्यप्रदेश बीजेपी की रणनीति BJP's strategy urban body elections नगरीय निकाय चुनाव अध्यक्ष की कुर्सी खींचतान निर्दलीय करेंगे तय President's chair tussle independents will decide