Gwalior. कभी ग्वालियर चम्बल अंचल(Gwalior Chambal Zone) की सियासत में तीसरी बड़ी ताकत बनकर उभरने वाली बहुजन समाज पार्टी(Bahujan samaj party) बीते दो दशक से चुनावी अखाड़ों में लड़ने की जगह महज हांफ ही रही है। सिर्फ हारने के लिए लड़ना और टिकट बांटने में पैसे वसूलने के आरोपों के चलते धीमे-धीमे-हाशिये पर जाती रही। कभी ग्वालियर की नगर निगम परिषद(municipal council) में बसपा के इतने पार्षद होते थे कि बगैर उनकी अहमति के परिषद में निर्णय संभव नहीं होता था। भाजपा की मेयर और परिषद होने के बावजूद बसपा का एक एमआईसी मेंबर तक बनाना पड़ता था लेकिन अब इस दल का खाता खुलना तक मुश्किल हो गया। इस लम्बी बदहाली के बाद अब बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर शहर में जोर मारना चाहती है। पार्टी ने ऐलान किया है कि वह मेयर के साथ सभी 66 वार्डों में अपने प्रत्याशी उतारेगी। वास्तव में बसपा यहां अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है।
सभी सीटों पर लड़ेंगे
बसपा के जिला अध्यक्ष सतीश मंडेलिया का कहना है कि इस बार नगर निगम चुनाव बसपा पूरी ताकत के साथ लड़ेगी और सभी 66 वार्ड और महापौर पद(mayor post) के लिए अपने मजबूत प्रत्याशी उतारने के प्रयास में जुटी है। उनके अनुसार वैसे तो हरेक वार्ड में उनके पास सक्षम प्रत्याशी हैं लेकिन कांग्रेस और भाजपा के अनेक दावेदार भी उनके संपर्क में हैं यदि उनकी स्थिति वार्ड में अच्छी हुई तो पार्टी के सर्वे एक आधार पर उनको भी प्रत्याशी बनाया जा सकता है। पार्टी का मानना है कि अभी पार्टी के लिए माहौल अनुकूल है क्योंकि दलित और ओबीसी इस समय भाजपा से नाराज है और कांग्रेस से निराश। ऐसे में उसका मूल वोट फिर बसपा में वापस लौटाकर लाया जा सकता है।
हकीकत में प्रत्याशी ही नहीं
बसपा के नेता कुछ भी बोले लेकिन हकीकत में बसपा की स्थिति अभी बहुत नाजुक है। यहां उसके पास न तो कोई ऐसा नेता है जिसे कोई जानता हो और न ही हर वार्ड में पार्टी की संगठन इकाई। कभी फूलसिंह बरैया मप्र में बसपा के सबसे बड़े नेता थे जिन्हें मायावती ने पार्टी से निकाल दिया। ग्वालियर में उन्ही का संगठन था और उन्हीं का दलितों में जनाधार। उनके निकालने के बाद बसपा कभी ग्वालियर में दुबारा खड़ी नहीं हो पाई। बरैया अभी कांग्रेस में है और दलित बाहुल्य ज्यादातर वार्डों में अभी कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में अब बसपा को यदि सभी 66 वार्ड में प्रत्याशी उतारना हैं तो उसे बस भाजपा और कांग्रेस के उन असंतुष्ट दावेदारों के भरोसे रहना होगा जिन्हे उनके दल टिकट न दें और वे चुनाव लड़ने को उतावले हों। स्वयं पार्टी नेता भी मानते हैं उनकी इन दलों के असन्तुष्टों पर निगाह भी और उनसे संपर्क भी। हालांकि उनका दावा है कि वे वार्ड स्तर पर प्रत्याशियों का सर्वे करवा रहे हैं।