Bhopal. भोपाल कहने के लिए तो प्रदेश की राजधानी है, लेकिन रामसर साइट का खेल ऐसा कि पिछले 17 साल से भोपाल अव्यवस्थित विकास की मार झेल रहा है। बड़े तालाब में बढ़ते अतिक्रमण की वजह से 2005 का मास्टर प्लान देरी से पास हुआ था, जिनके बड़े तालाब पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण है वे इतने प्रभावशील हैं कि 17 साल पुराने मास्टर प्लान के हिसाब से अभी तक शहर का विकास नहीं हो सका। जानकारों का कहना है कि बड़े तालाब के अतिक्रमण की वजह से ही राजधानी का मास्टर प्लान 2031 खटाई में पड़ा है।
2020 में मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि भोपाल के मास्टर प्लान में निजी हितों के कारण नियमों को दरकिनार कर हेरफेर किया गया है| मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में प्रथम दृष्टया भोपाल की हरियाली के साथ समझौता होता हुआ दिख रहा है। कई जगहों पर ग्रीन बेल्ट को खत्म किया गया है, जिससे भोपाल की ग्रीनरी कम हो जाएगी। सूत्रों की माने तो दर्जनों प्रभावशील लोगों के अवैध निर्माण और अतिक्रमण को बचाने के लिए ही मास्टर प्लान अटका हुआ है। यदि मास्टर प्लान में इन इलाकों को ग्रीनरी या बड़े तालाब का कैचमेंट घोषित कर दिया जाता है तो नियमानुसार इन निर्माणों को लेकर कार्रवाई करनी होगी, यदि ग्रीन बेल्ट और कैचमेंट खत्म करते हैं तो आपत्तियों की भरमार लग जाएगी, जिसका जवाब देना कठिन होगा। एक तरफ कुआ एक तरफ खाई की स्थिति बनने से ही भोपाल का मास्टर प्लान अटका हुआ है।
आपको यह नुकसान...
किसी भी शहर का विकास मास्टर प्लान के अनुसार किया जाता है। भोपाल की बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में कई ऐसी सुविधाएं मिलना थी जो सीधे आप और हमसे जुड़ी हुई है। मतलब...प्रभावशील लोगों के अवैध निर्माण और अतिक्रमण का खामियाजा आप और हम जैसी आम जनता भुगत रही है। नया प्लान लागू होने पर आम लोगों को लगभग दोगुना फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर- प्लॉट का एरिया व कुल बिल्टअप एरिया का अनुपात) मिलने और सड़क की चौड़ाई के हिसाब से लैंडयूज का चयन करने की छूट मिलना है, पर यह अटकी हुई है। साथ ही पुराने शहर की हेरिटेज बिल्डिंग्स का डेवलपमेंट भी अटक गया है।
6 साल में भी 100 से अधिक मुनारों का नहीं चला पता
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जुलाई 2016 में बड़े तालाब के सीमांकन का आदेश दिया था। इसके लिए फुल टैंक लेवल (एफटीएल) पर लगी मुनारों की तलाश की जानी थी। पर 6 साल बीत जाने के बाद भी 100 से अधिक मुनारों का कोई पता ही नहीं चल सका है। 2017 तक 4 टीमों ने सर्वे कर 943 में से 809 मुनारें तलाशी थी पर उसके बाद आगे कोई कार्रवाई ही नहीं हो सकी। बड़े तालाब के ग्रीन बेल्ट एरिया में मैरिज गार्डन समेत अन्य अवैध निर्माण रसूखदारों के हैं और इन्हीं के दबाव में निगम अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
तालाब के संरक्षण के लिए क्या किया निगम को पता ही नहीं
हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि रामसर साइट बड़े तालाब के संरक्षण के लिए जिम्मेदार एजेंसी वैटलैंड अथॉरिटी यानी एप्को ने संरक्षण छोड़िए किस तरह से कागजों में कैचमेंट शब्द को ही गायब कर दिया। अब बड़े तालाब के संरक्षण और संवर्धन से जुड़ी दो एजेंसी ने 20 सालों में क्या किया वह भी समझ लीजिए। वैटलैंड अथॉरिटी के बाद दूसरी मुख्य एजेंसी है नगर निगम। इसमें एक झील संरक्षण प्रकोष्ठ है, जिसका काम ही है झील या तालाबों का संरक्षण। जब इसके प्रभारी संतोष गुप्ता से मोबाइल पर बात की तो उन्होंने कहा कि बड़े तालाब के संरक्षण के लिए अनगिनत काम किए गए। जब काम के बारे में पूछा तो कहा कि आफीस से पता चलेगा। आफीस में मौजूद कार्यपालन यंत्री आरके गुप्ता से बात की तो उन्होंने कहा कि बड़े तालाब में सब कुछ सही है कहीं कोई काम की जरूरत ही क्या है। अधिक पूछने पर बताया कि अभी डीपाआर बनाई जा रही है।
एक्ट में उल्लंघन, पीसीबी के अनुसार सब सही
पर्यावरणविद् सुभाष पांडे के अनुसार वॉटर एक्ट 1974 और एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच के आदेश के अनुसार ऐसी वाटर बॉडी जिससे लोगों को पीने के पानी की सप्लाई होती है, उनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज पंप हाउस से निकलने वाले पानी को नहीं छोड़ा जा सकता। इसके उलट पीसीबी यानी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अलग ही तर्क है। पीसीबी के रीजनल आफीसर बृजेश शर्मा ने कहा कि नगर निगम के 17 नाले पहले बड़े तालाब में मिल रहे थे। एनजीटी ने इस मामले में संज्ञान लिया था। पीसीबी ने भी मानीटरिंग की। नतीजा अब इन्हें डायवर्ट कर एसटीपी के द्वारा ट्रीटमेंट करके छोड़ा जा रहा है। इधर सुभाष पांडे का कहना है कि यह बहुत दुखद है कि बड़े तालाब के संरक्षण और संवर्धन से जुड़ी एजेंसियां रामसर साइट को लेकर गैर जिम्मेदार ही रही।
44 महीने में सुनवाई के लिए बेंच तक नहीं हो सकी डिसाइड
बड़े तालाब के संकट को देखते हुए इसके संरक्षण को लेकर एनजीटी में याचिका लगाई गई थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बड़ा तालाब एक वेटलैंड साइट है। इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व है, इसलिए इसकी सुनवाई हाईकोर्ट में होनी चाहिए। जिससे इसका संवर्धन व संरक्षण बेहतर हो सके। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह मामला एनजीटी से उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद WP/06961/2017 से लेकर WP/06969/2017 कुल 9 याचिकाए हाईकोर्ट पहुंची। चूंकि सभी मामले बड़े तालाब से जुड़े थे इसलिए हाईकोर्ट ने 19 फरवरी 2019 को सभी केस को एक साथ एक बेंच में सुने जाने का आदेश दिया। इसके बाद कभी वह बेंच ही डिसाइट नहीं हो पाई जहां इन केसों की सुनवाई होना थी। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे ने कहा कि दुर्भाग्यवश साढ़े 3 साल बाद भी इन केस को कौन जज सुनेगा अभी तक यह डिसाइड नहीं हो पाया और यह जज के पटल तक नहीं पहुंच पाई।