भोपाल. किसी की भी जिंदगी में बच्चे के आने की खुशी से बड़ा कुछ भी नहीं। वो बच्चा जिसकी आंखें भी ठीक से ना खुली हों और वो हादसे का शिकार हो जाए तो हर दिलासा बेकार है। हमीदिया कैम्पस के कमला नेहरू हॉस्पिटल में 8 नवंबर की रात को लगी आग से 4 नवजातों की मौत हो गई। इसमें से एक बच्चा इरफाना का भी था। शादी के 12 साल बाद 2 नवंबर को उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था। बच्चे को सांस लेने में दिक्कत थी, इसलिए उसे यहां एडमिट कराया गया था। फरजाना को क्या ही पता था कि अस्पताल की लापरवाही बच्चे की सांसें ही छीन लेगी।
बस आंसू निकले, बोल नहीं
सोमवार रात 9 बजे आग लगने के बाद परिजन को अस्पताल के अंदर नहीं जाने दिया गया। वे बाहर खड़े होकर चीखते-चिल्लाते रहे। तड़के 4 बजे अस्पताल का बाहरी गेट खुला। चार बच्चों के शव दिखाए। इनमें से एक बच्चा इरफाना का भी था। अपने जिगर के टुकड़े को इस हालत में देखकर वह बेसुध हो गईं। अस्पताल के बाहर बैठकर सुबकती रहीं। बाद में परिजन उन्हें अस्पताल से उनके मायके ले गए।
नॉर्मल डिलीवरी हुई थी
भोपाल के DIG बंगले के पास गौतम नगर की रहने वाली इरफाना (29) की 12 साल पहले नसरुल्लागंज के रईस खान से शादी हुई थी। इरफाना की बहन फरजाना ने बताया कि 2 नवंबर को नॉर्मल डिलीवरी हुई थी। बच्चे को सांस लेने में दिक्कत थी तो कमला नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया। सोमवार रात जब आग लगी तो इरफाना को अस्पताल से बाहर कर दिया गया। सुबह 4 बजे बच्चे की मौत होने का पता चला। इरफाना के पति जूतों का कारोबार करते हैं।
एक बार बच्चा दिखा दो
इरफाना की बहन के मुताबिक, बच्चे को जन्म देने के बाद से इरफाना की हालत वैसे भी ठीक नहीं थी। आग लगने के बाद वह कमला नेहरू अस्पताल के बाहर दर्द से कराहते हुए बैठी रही। रिश्तेदारों से बार-बार यही कहती रही कि मुझे मेरा बच्चा दिखा दो। परिजन दिलासा देते रहे कि बच्चा ठीक है। कई घंटे इंतजार के बाद इरफाना को बच्चे का शव दिखाया गया। वह बेबस होकर बिलखने लगी।