राहुल शर्मा, भोपाल। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए कागजों में भले ही कितनी योजनाएं बन जाएं, लेकिन वे जमीन पर कम ही आती हैं। जो योजनाएं साकार रूप भी लेती हैं तो उनके शुरू होने में राजनीति आड़े आ जाती है और लाखों रुपए बर्बाद हो जाते हैं। महिला दिवस (8 मार्च) के मौके पर हम मेरा बजट, मेरा ऑडिट की कड़ी में बात कर रहे हैं राजधानी के महिला हॉकर्स कॉर्नर की। इस हॉकर्स कॉर्नर को बनाने का मुख्य मकसद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना था। भोपाल में गवर्मेंट सरोजिनी नायडू गर्ल्स कॉलेज (नूतन कालेज) के सामने 2016 में 10 हजार वर्गफीट जमीन पर इसे 25 लाख रुपए की लागत से महिला हॉकर्स कॉर्नर बनाया गया, लेकिन 6 साल बाद भी यह हॉकर्स कॉर्नर शुरू नहीं हो पाया।
ये थी योजना: जब हॉकर्स कॉर्नर बनना शुरू हुआ, तब यहां लोगों को दुकानें आवंटित करने की योजना थी। लेकिन गर्ल्स कॉलेज के पास होने की वजह से यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता। इस आशंका के चलते हॉकर्स कॉर्नर में सिर्फ महिलाओं को स्टॉल आवंटित करने का निर्णय लिया गया। यहां केवल महिलाओं को ही प्रवेश दिया जाने का भी निर्णय हुआ था। हॉकर्स कॉर्नर में लॉटरी सिस्टम में महिलाओं को दुकानें आवंटित होना थी, पर ये आवंटन कभी हुआ ही नहीं।
हॉकर्स कॉर्नर शुरू होने से ये फायदा होता: महिला हॉकर्स कॉर्नर के ठीक सामने नूतन कॉलेज है। इस हॉकर्स कॉर्नर के शुरू होने से कॉलेज की छात्राओं को इसका फायदा मिलता। अभी स्टेशनरी, फोटोकॉपी, प्रोजेक्ट वर्क जैसी तमाम जरूरतों के अलावा खानपान के लिए स्टूडेंट को 6 नंबर मार्केट जाना पड़ता है। कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं ने हॉकर्स कॉर्नर जल्द शुरू किए जाने की मांग की है।
राजनीति की भेंट चढ़ा हॉकर्स कॉर्नर: राजनीति के हत्थे चढ़े महिला हॉकर्स कॉर्नर का करीब 3 साल तक उद्घाटन ही नहीं हो सका। निर्माण के बाद शुरूआती 3 साल तक यह महापौर, पार्टी अध्यक्ष और स्थानीय विधायक के बीच उलझा रहा। जैसे तैसे ये विवाद सुलझा तो दुकान आवंटन का विवाद खड़ा हो गया। तत्कालीन क्षेत्रीय पार्षद गुड्डू चौहान ने आवंटन में वार्ड की महिलाओं को प्राथमिकता देने की मांग कर दी। वहीं निगम अधिकारी और सत्ता पक्ष के लोगों का कहना था कि महिलाओं को प्रशिक्षण देने के बाद लाटरी से स्टॉल आवंटित किया जाए। आपस के इसी टकराव के कारण महिलाओं को कभी जगह का आवंटन ही नहीं हो सका।
ये बोले जनप्रतिनिधि: कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा ने कहा कि परमानेंट एलॉटमेंट की जगह वहां समय-समय पर बाजार लगता है, जिसमें महिलाएं अपने प्रोडक्ट बेचती हैं। मैं समझता हूं यह कॉन्सेप्ट भी सही है। वहीं, बीजेपी विधायक कृष्णा गौर के हिसाब से तो हॉकर्स कॉर्नर शुरू हो गया है और दीवाली के समय एक एग्जीबिशन लगी था। यह सच भी है। पर सवाल यह है कि क्या इस हॉकर्स कॉर्नर को महिला दिवस और दीवाली के समय सिर्फ एग्जीबिशन लगाने के लिए बनाया गया था। यदि स्थाई रूप से महिलाओं को दुकानें आवंटित नहीं हो रही है तो इसका जिम्मेदार कौन है?
फिरदौस पार्क पर अतिक्रमण: पार्क सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए आरक्षित है। लेकिन आलम ये है कि इस पार्क के एंट्री गेट पर अतिक्रमण है, आपराधिक तत्वों का जमावड़ा भी यहां दिनभर लगा रहता है। दिनभर यहां लड़के बेरोकटोक घूमते रहते हैं। इस पार्क में पहले प्रोफेसर कॉलोनी, पुराने शहर की महिलाएं और एमएलबी कॉलेज की लड़कियां आती थीं, अब इनकी संख्या कम हो गई है। महिलाओं का कहना है कि पार्क के बाहर लड़कों का जमावड़ा होता है। कई बार असामाजिक तत्वों के घुसने की भी घटनाएं हो चुकी है। बाहर पार्क से लगकर ही गुमठियों ने अतिक्रमण कर रखा है। पार्क का संचालन और रखरखाव नगर निगम करता है। दो 25 दिवसीय कर्मचारी और एक गार्ड के वेतन समेत इसके मेंटेनेंस पर करीब हर महीने 60 हजार से ज्यादा का खर्चा हो रहा है, लेकिन पार्क के बाहर अतिक्रमण और लड़कों का जमावड़ा ही बढ़ रहा है।
12 साल पहले महिलाओं के लिए आरक्षित हुआ था: वैसे तो यह पार्क 1970 के दशक में बना था, लेकिन 12 साल पहले जनवरी 2010 में तत्कालीन महापौर कृष्णा गौर ने फिरदौस महिला उद्यान के जरिए महिलाओं को ये सौगात दी थी। इसके बाद पार्क को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया। हालांकि, पार्क में महिलाओं की संख्या लगातार कम होने के पीछे ही अब कृष्णा गौर अलग तर्क देती नजर आती है। गौर के मुताबिक, हमने तो अच्छी सोच के साथ पार्क बनाया था, पर इस पर ज्यादा ध्यान इसलिए नहीं दिया गया, क्योंकि लोग अब व्यस्त हो गए हैं। महिलाओं के अब जो भी कार्यक्रम या गेदरिंग होती हैं, वह होटलों में होती है, पार्क में नहीं।