भोपाल. कमला नेहरू अस्पताल में लगी आग ने एक ऐसा जख्म दिया है जिसे वहां मौजूद हर शख्स कभी भुला नहीं पाएगा। इस हादसे ने कई मांओं की कोख उजाड़ दी। हर तरफ चीख पुकार, परिजन अपने दिल के टुकड़े का हाल जानने के लिए बदहवास अस्पताल में घूमते रहे। न सिर्फ परिवार बल्कि अस्पताल स्टाफउस रात को याद कर सहम जाते हैं। अस्पताल में तैनात दो स्टाफ नर्स के आंखों के सामने 4 बच्चों की मौत हो गई । आइए आपको बताते हैं हादसे की कहानी, चश्मदीदों की जुबानी
'वेंटिलेटर से भड़की आग'
एक अखबार को दिए इंटरव्यू में नर्स बबीता पंवार बताती हैं -8 नवंबर को मेरी SNCU वार्ड में नाइट ड्यूटी थी। रात 8:30 बजे थे। वार्ड में करीब 20 बच्चे भर्ती थे। यहां एक बच्चा सीरियस हालत में आया। उसे वेंटिलेटर की जरूरत थी। मैं बच्चे को टोपा लगा रही थी। वार्ड बॉय वेंटीलेटर लेकर आए। जैसे ही डॉक्टर ने वेंटीलेटर चालू किया, उसमें आग लग गई। मैं तुरंत बच्चे को उठाकर ले गई। वहां मौजूद डॉक्टर ने आग बुझाने वाले सिलेंडर से आग पर काबू पाने की कोशिश की। अचानक धुआं फैलने लगा।जैसे-तैसे बच्चों को उठाकर PICU में शिफ्ट किया।
धुंए के गुबार में खुद हो गई बेहोश: राजेश राजा बुंदेला
SNCU वार्ड में नाइट ड्यूटी के दौरान अचानक वेंटिलेटर में ब्लास्ट हुआ। अफरा-तफरी मच गई। धुआं इतना ज्यादा कि कुछ नहीं दिख रहा था। दूसरे अटेंडर और स्टाफ के लोग सभी ने आग बुझाने की कोशिश की, लेकिन पहले बच्चों को निकाला। मैंने खुद करीब 8 से 10 बच्चों को PICU में शिफ्ट किया।ऑक्सीजन के लिए खिड़की तोड़ी। बच्चों को बचाने के दौरान मैं कब बेहोश हो गई,पता ही नहीं चला।
आग बुझाने वाले सिलेंडर बंद थे: मोहम्मद मोजिब खान
मेरा भांजा दो दिन पहले ही SNCU में भर्ती था। मैं और मेरे जीजा मोहम्मद आमिर 5वीं मंजिल पर थे। अचानक भागदड़ मच गई।लोगों से पता चला की तीसरी मंजिल पर बच्चों के वार्ड में आग लग गई है। हम तुरंत वहां पहुंचे, मैंने सिलेंडर से खिड़की का कांच तोड़ा, जिससे धुंआ बाहर निकल सके।हम दोनों बच्चों को बचाने में लग गए। वहां मौजूद आग बुझाने वाले सिलेंडर भी काम नहीं कर रहे थे। हमने भी जैसे-तैसे स्टाफ की मदद से बच्चों को बाहर निकलवाया। अभी भी सीने में भी दर्द हो रहा है। जैसा कहा जा रहा है कि स्टाफ भाग गया था। ऐसा कुछ नहीं है स्टाफ पूरी शिद्दत से लोगों की मदद के लिए डटा हुआ था