MP : सरकार के माननीय को भी भाया केरवा का जंगल, सिटी फॉरेस्ट की जाली से सटाकर फार्म हाउस के लिए खड़ी की जा रही बाउंड्री वॉल

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Sunil Shukla
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MP : सरकार के माननीय को भी भाया केरवा का जंगल, सिटी फॉरेस्ट की जाली से सटाकर फार्म हाउस के लिए खड़ी की जा रही बाउंड्री वॉल

राहुल शर्मा, BHOPAL. द सूत्र (The sootr) की खास पड़ताल 'केरवा के कातिल' (Kerwa Killers) की पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे वन विभाग (Forest department) ने केरवा के जंगल (Kerwa Forest) के बीच से निजी उपयोग के लिए सड़क बनाने की सिफारिश कर दी है। इस पर पर्यावरणविदों को क्यों लगता है कि इस तरह से जंगल को खत्म करने की साजिश रची जा रही है। अब चौथी और आखिरी कड़ी में पढ़िए कि किस तरह प्रदेश सरकार के एक मंत्री को केरवा का टाइगर मूवमेंट एरिया (Tiger Movement Area) भा गया है। कैसे वे राष्ट्रीय पशु (National Animal) के रहवास और विचरण के इलाके में खुद कब्जा जमाने का प्रयास कर रहे हैं।



सिटी फॉरेस्ट की फेंसिंग से सटाकर खड़ी की जा रही बाउंड्री वॉल  



केरवा के जंगल की खूबसूरती पर फिदा मंत्री जी ने इलाके में बनाए गए उस नगर वन से सटी जमीन पर ट्यूबवेल तक खुदवा लिया है जहां पिछले महीने दो टाइगर की मौजूदगी से वन विभाग का अमला सकते में आ गया था। इस जमीन की 24 घंटे देखरेख के लिए बाकायदा एक चौकीदार की तैनात किया गया है। साथ ही जंगल की जाली से सटाकर दीवार भी खड़ी कर दी गई है। यह आधिकारिक रूप से टाइगर मूवमेंट एरिया है जहां स्वच्छंद तरीके से जंगली जानवर विचरण कर सकते हैं लेकिन अब यहां इंसानी बसाहट की गैरकानूनी कोशिशें जा रही हैं।   



बाघों के इलाके में इंसानी बसाहट का दुस्साहस! 



प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) भोपाल की पहचान टाइगर्स कैपिटल के रूप में बनाना चाह रहे हैं। आंकड़ों पर नजर जालें तो देश के किसी शहर से सटे इलाके में इतने बाघ कहीं नहीं हैं, जितने मप्र की राजधानी भोपाल में हैं।  इसके आसपास 40 से ज्यादा टाइगर्स का मूवमेंट है लेकिन इन्हें  बचाए रखने के लिए सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा केरवा और कलियासोत (Kaliasot) इलाके में हो रही जंगल की बर्बादी से लगाया जा सकता है। इस क्षेत्र को प्रकृति ने बेमिसाल हरियाली का वरदान दिया है और अब इस हरियाली को तहसनहस करने के मंसूबे दिनों दिन प्रबल होते जा रहे हैं। चंदनपुरा के जिस जंगल में नगर वन बनाया जा रहा है उसके पास टाइगर मूवमेंट इलाके से सटकर राज्य सरकार के एक माननीय ने अवैध कब्जा (illegal occupation) कर लिया है। यहां तैनात चौकीदार ने द सूत्र की टीम को इस खास जमीन के मालिक के रूप में माननीय मंत्री जी का नाम बताया। लेकिन जमीन के खसरे पर जाहिर तौर पर अभी माननीय या उनके किसी सगे संबंधी का नाम अपडेट नहीं हुआ है इसलिए द सूत्र उनके नाम का खुलासा नहीं कर रहा है और उनके बारे में चौकीदार के बयान की पुष्टि भी नहीं करता। लेकिन जानकार बताते हैं कि माननीय ने टाइगर का मूवमेंट रोकने के लिए  वन विभाग की 12 फीट की फेंसिग को भी पीछे हटवाकर अपनी जमीन का दायरा बढ़ा लिया है।  



केरवा में बाघ की गुफा के नीचे बन रहा है बड़ा रिसॉर्ट 



वन विभाग के डीएफओ आलोक पाठक इस तरह फेंसिंग को पीछे हटाए जाने गलत करार देते हैं, लेकिन यहां किए जा रहे निर्माण के खिलाफ कोई कानूनी कदम उठाए जाने से पल्ला झाड़ रहे हैं। टीएंडसीपी का अमला तो पहले ही हथियार डाल चुका है और स्थानीय ग्राम पंचायत के पास इतनी ताकत नहीं है कि रसूखदारों से सीधी टक्कर ली जा सके। इस लाचारी को देखकर यही लगता है कि टाइगर्स और उनकी सुरक्षा भगवान भरोसे है। उधर केरवा डैम की ओर जाने वाले रास्ते के बाईं तरफ दूर से ही ऊंचे पहाड़ पर बाघ की गुफा साफ नजर आती है। कई लोगों ने यहां बाघों को आते-जाते देखा है। इसी गुफा के ठीक नीचे के इलाके में बड़े क्षेत्र में इन दिनों एक विशालकाय रिसॉर्ट आकार ले रह रहा है।  इसके पास टाइगर का मूवमेंट रोकने के लिए कटीले तारों की ऊंची फेंसिंग की गई है। इसी तरह की फेंसिंग वॉटर एंड लैंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट यानी वाल्मी सहित अन्य संस्थाओं ने भी कर दी है, जो वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिहाज से गैरकानूनी है। इसके बाद भी जिम्मेदारों की खामोशी चिंता का बड़ा सबब है।



हर महीने 2-3 बार शिकार के लिए आता है टाइगर 



चंदनपुरा इलाके में संचालित नंदिनी गौशाला और वन रक्षा समिति के सदस्य राकेश रावत कहते हैं कि केरवा और कलियासोत इलाके में हर महीने औसतन 2 से 3 बार टाइगर मवेशियों का शिकार करता है। बीते 23 मई की शाम 07 बजे के आसपास यहां दो बछड़ों के शिकार का मामला सामने आया था। टाइगर ने फिर 08 जून को एक बछड़े का शिकार किया लेकिन इस इलाके में वाहनों की आवाजाही होने के कारण वह शिकार को आधा छोड़कर वहां से भाग निकला। इसके बाद पिछले महीने 12 जुलाई को भी सिटी फॉरेस्ट के पास एक बाघिन को देखा गया था जो जाली से बाहर आने का प्रयास कर रही थी।    



टाइगर मूवमेंट इलाके में इन रसूखदारों की जमीन



चंदनपुरा क्षेत्र के सरकारी रिकॉर्ड में ही टाइगर मूवमेंट इलाके में किस-किस रसूखदार की जमीन है? 29 अक्टूबर 2020 तक की स्थिति के अनुसार जेवीके उफा, चंदानी, दिलीप बिलकॉन, नसीमा बानो, दिलीप सूर्यवंशी, मेक मोडियम रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड, खालिद अली, राकेश मलिक, जागरण वेलफेयर सोसायटी, हरिमोहन गुप्ता, दीपा गुप्ता सहित कई नाम शामिल हैं जिनकी इस इलाके में जमीनें हैं। इस क्षेत्र के आसपास 15 फरवरी 2020 और 10 अगस्त 2020 को कलियासोत डैम, 11 नवंबर 2020 को 13 शटर के पास, 22 फरवरी 2021 को कलियासोत के जंगल में, 6 जनवरी 2022 को नगर वन में और 12 अप्रैल 2022 को 13 शटर के पास टाइगर देखा गया था। पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं कि रसूखदारों की जमीनें बचाने के लिए ही इस इलाके को बाघों की संख्या लगातार बढ़ने के बाद भी, टाइगर रिजर्व के रूप में नोटिफाई करने की प्रक्रिया नहीं की जा रही है। लेकिन इस इलाके को जल्द ही टाइगर रिजर्व बनने जा रहे रातापानी अभ्यारण्य के बफर जोन में जरूर शामिल किया जा सकता है। ऐसा होने पर ही बाघ सुरक्षित होंगे और मानव से उनके टकराव की आशंकाएं कम होंगी।  

 


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