विधानसभा में टूटा नियमः शिवराज और कमलनाथ ने बोले असंसदीय शब्द, अध्यक्ष ने विलोपित कराए

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विधानसभा में टूटा नियमः शिवराज और कमलनाथ ने बोले असंसदीय शब्द, अध्यक्ष ने विलोपित कराए

भोपाल। मप्र विधानसभा में मानसून सत्र के पहले ही दिन माननीयों ने जमकर असंसदीय शब्दों और वाक्यों का उपयोग किया। जबकि एक दिन पहले ही रविवार 08 अगस्त को विधानसभा अध्यक्ष ने करीब 1162 ऐसे असंसदीय शब्दों की किताब जारी की थी, जिन्हें सदन की कार्यवाही के दौरान बोलने पर पाबंदी लगाई है। सोमवार को सदन में न सिर्फ विधायकों ने बल्कि नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ और सदन के नेता शिवराज सिंह चौहान ने भी आदिवासियों के मुद्दे पर हुई बहस में कई ऐसे शब्द बोले जिन्हें विधानसभा अध्यक्ष ने विलोपित करवा दिया। दोनों ही पार्टियों के विधायकों ने खुद को आदिवासियों का हितैषी साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।

कांग्रेस ने बीजेपी को बताया आदिवासी विरोधी

विधानसभा में मानसून सत्र का पहला दिन हंगामेदार रहा। सदन में पहले दिन दिवंगत नेताओं और सदस्यों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा है। लेकिन श्रद्धांजलि देने से पहले ही कांग्रेस के सदस्यों ने बीजेपी को आदिवासी विरोधी बताते हुए हंगामा शुरू कर दिया। उनका आरोप था कि सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस की छुट्टी निरस्त कर आदिवासियों का अपमान किया है। कांग्रेस विधायकों ने आसंदी का घेराव किया और गर्भगृह में नारेबाजी की। विपक्ष के नेता कमलनाथ ने कहा कि बीजेपी के आदिवासी विरोधी रवैये की वजह से ही सदन में हंगामे की स्थिति बनी। 

प्रदेश में 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती पर अवकाश होगाः सीएम

सदन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के बीच गर्मागर्म बहस हुई।  दोनों ने एक दूसरे पर जमकर छींटाकशी भी की। सीएम ने कहा कि बीजेपी आदिवासी विरोधी नहीं है। असल में आदिवासियों के हित में पेसा एक्ट (पंचायत एक्सटेंशन ओवर शिड्यूल्ड एरियाज़ एक्ट,1996) बीजेपी सरकार ही लागू करेगी। उन्होंने कहा कि 15 नवंबर को प्रदेश में बिरसा मुंडा की जयंती पर गौरव दिवस मनाया जाएगा। सरकार इस दिन अवकाश भी घोषित करेगी। वैसे सरकार ने 9 अगस्त को भी ऐच्छिक अवकाश घोषित किया है।  

आदिवासी वोटों के लिए सियासत

बता दें कि मप्र में अगले कुछ दिनों में खंडवा लोकसभा और जोबट विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इन दोनों सीटों पर करीब 6 लाख आदिवासी वोटर्स है। इसलिए कांग्रेस ने आदिवासी कार्ड खेलते हुए सरकार को घेरने का भरसक प्रयास किया। उधर बीजेपी भी  खुद को आदिवासियों का हितैषी बताने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। और इस होड़ में दोनों ही दलों ने संसदीय परंपराओं की धज्जियां उड़ाने से परहेज नहीं किया।  

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