मानवाधिकार आयोग ने नहीं सुना केस तो अब हाईकोर्ट में बुलडोजर के बेजा इस्तेमाल के खिलाफ रिट दायर करने की तैयारी

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Dev Shrimali
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मानवाधिकार आयोग ने नहीं सुना केस तो अब हाईकोर्ट में बुलडोजर के बेजा इस्तेमाल के खिलाफ रिट दायर करने की तैयारी

GWALIOR.यूपी की तरह एमपी में भी आरोपियों के घरों पर सरकार के निर्देश पर प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे बुलडोजर के खिलाफ मामला अब हाईकोर्ट में ले जाने की तैयारी है। पिछले दिनों ग्वालियर सुनवाई के लिए आयी मानवाधिकार आयोग के बेंच के सामने यह मामला रखा गया था लेकिन आयोग ने इस पर सुनवाई से इनकार कर दिया।  याचिकाकर्ता इससे नाखुश दिखे और उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन बुलडोजर करके संविधान और कानून की मूल भावना का उल्लंघन कर रहे हैं। 



ये था मामला 



मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के बुलडोजर ने अपराधियों से लेकर दुष्कर्मियों के अवैध मकानों पर बुलडोजर चलाया था। आज उसी बुलडोजर को लेकर मानव अधिकार आयोग में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया कि जो भी अपराधी है... उन्हें पुलिस ने मामला दर्ज कर अरेस्ट कर लिया, कोर्ट में मामला चल रहा है।बावजूद झठू वाहवाही लूटने के लिए. प्रशासन ने उनके मकानों को जमींदोज कर दिया है। जिसकी सजा उसका परिवार भुगत रहा है, ऐसे उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए ? क्योंकि ये सीधे तौर पर मानव अधिकारों का हनन है। दरअसल ग्वालियर में आज मानव अधिकार आयोग की टीम ने सुनवाई की है। जिसमें 32 केस की सुनवाई मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जैन और सदस्य मनोहर कुमार ममतानी की बेंच ने की है। इस दौरान 23 प्रकरणों का निराकरण कर दिया गया है। वहीं मानव अधिकार आयोग की बेंच में पानी से लेकर पुलिस और सहायता राशि के प्रकरण समाने आए थे। वहीं बुलडोजर मामले में याचिकाकर्ता सुनवाई से खुश नहीं है, वो अपनी याचिका को PIL के रूप में हाईकोर्ट में पेश करेगा।उसका कहना है, खरगोन, ग्वालियर जो कार्रवाई हुई है, वो मानव अधिकारों के उल्लंघन में शामिल है। वहीं पीठ का कहना है.... ये जो शिकायत थी, वो मूल्य शिकायतकर्ता की नहीं थी, बल्कि वकील और समाजसेवी की थी। इसलिए उसे खारिज किया गया है।



ये कहा शिकायतकर्ता ने 



इस मामले में मानवाधिकार आयोग में विश्वजीत रतौनिया ने शिकायत दर्ज कराया था जिसमें कहा गया था कि मध्यप्रदेश के ग्वालियर सहित कई जिलों में देखा गया कि प्रशासन ने गैरकानूनी और  असंवैधानिक तरीके से लोगों के घर बुलडोजर से ढहा दिए गए। मैं इसके खिलाफ आयोग में गया था क्योंकि यह संविधान के आर्टिकल 40 का उल्लंघन किया गया जा रहा है। यदि आप इसी आरोपी का मकान तोड़ रहे हो तो उसके घर वालों की ,बच्चों की क्या गलती है कि उन्हें बेघरवार किया जाए ? जब न्यायालय में ट्रायल नहीं हुआ ,कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया इसके बिना यह कार्यवाही बताती है कि देश में न्यायालय नाम की प्रक्रिया शून्य हो गयी है। मानवाधिकार आयोग ने पक्षपातपूर्ण  ढंग से इस याचिका पर कोई सुनवाई करने से इंकार कर दिया। 



हम इस मामले को हाईकोर्ट जाएंगे 



       शिकायतकर्ता के अभिभाषक धर्मेंद्र कुशवाहा ने कहा कि मानवाधिकार आयोग के इस फैसले के खिलाफ हम हाई कोर्ट जाएंगे और बताएंगे कि मानवाधिकार आयोग का यह कहना सही नहीं नहीं कि यह किसी की निजी शिकायत नहीं है इसलिए नहीं सुनेंगे जबकि आयोग का दायित्व है कि कहीं भी किसी व्यक्ति या समूह के साथ कोई गलत होता है तो वह स्वत: ही संज्ञान लेकर कार्यवाही कर सकते हैं। 



आयोग के अध्यक्ष ने ये दिया तर्क 



मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जैन ने इस याचिका पर सुनवाई न करने पर अपना तर्क देते हुए कहा कि बुलडोजर का मामला इस समय चर्चित है। हमारे सामने जो शिकायत की गयी थी वह ग्वालियर के किसी की व्यक्तिगत मामले को लेकर नहीं थी। हमने शिकायतकर्ता से पूछा -आपका मकान टूटा ? वे नहीं बता पाए। जनरल मामले तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुने जाते हैं। ये मामला यूपी से चर्चा में आया।  वहां से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया लेकिन वहां वह से भी किसी प्रकार की रिलीफ मिली नहीं बल्कि कार्यवाही को जस्टिफाई माना। जस्टिस जैन ने कहा कि जहाँ तक मध्य प्रदेश का मामला है हमारे पास भोपाल का एक मामला जरूर आया था जिस पर  मंगवाई थी लेकिन ग्वालियर का जो मामला था उसमें आवेदक ये नहीं बता पाए कि नुकसान किसका हुआ है ? किसको रिलीफ दिलाया जाए। 


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