चीता स्टेट बने MP में टाइगर की चिंता नहीं; 2000 Cr खर्च, पर कुप्रबंधन से 115 बाघों की मौत; 3 टाइगर रिजर्व में संरक्षण योजना नहीं

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Ruchi Verma
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चीता स्टेट बने  MP में टाइगर की चिंता नहीं; 
2000 Cr खर्च, पर कुप्रबंधन से 115 बाघों की मौत;
3 टाइगर रिजर्व में संरक्षण योजना नहीं

BHOPAL: हाल ही में चीता-स्टेट का दर्ज़ा पाने वाले मध्य प्रदेश की सरकार को अपने यहाँ पहले से मौजूद 526 बाघों की कोई ख़ास चिंता नहीं है...ऐसा हम नहीं खुद केंद्र सरकार के कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट कहती है। रिपोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के उन सभी दावों की धज्जियां उड़ा दी हैं जिसमे ये दावा किया जाता है बाघ मध्य प्रदेश में शिकार से सुरक्षित है।दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 6 टाइगर रिज़र्व में से 3 टाइगर रिज़र्व में बाघ संरक्षण योजना अटकी पड़ी हुई है....तो वहीँ 3 टाइगर रिज़र्व में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश और राज्य सरकार के NTCA के साथ एग्रीमेंट के बावजूद स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स अभी तक नहीं बनाई गई है। और बाघ संरक्षण के मामले में की जा रहीं लापरवाहियों में रही सही कसर उन समितियों (लोकल अडवाइसरी समिति) ने पूरी कर दी है जिन्हें इन टाइगर रिज़र्व के मैनेजमेंट और आसपास गतिविधियों को कण्ट्रोल की ज़िम्मेदारी दी गई है...रिपोर्ट ने राज्य सरकार और वन विभाग पर साफ़ आरोप लगाया है कि सिस्टम, मैनपावर और प्लांनिंग के कमी की वजह से 2014-2018 के दौरान मानव-वन्यजीव संघर्ष, अवैध शिकार, अतिक्रमण, और एक्सीडेंट्स बढ़े। बता दें कि 2012 और 2022 के बीच मध्य प्रदेश में करीब 250 से भी ज्यादा टाइगर्स की मौत हुई है...क्या है राज्य और विभाग की इतनी बड़ी लापरवाहियों का ये मामला..जानिये द सूत्र के इस रिपोर्ट में:



आखिर क्या है ये रिपोर्ट और ये क्यों तैयार की गई?




  • दरअसल, केंद्रीय एजेंसी कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ने मध्य प्रदेश के वाइलाइफ़ सिचुएशन जानने के लिए एक ऑडिट किया....इसको करने का कारण ये जानना था कि:


  • क्या मध्य प्रदेश के जंगलों में रहने वाले वन्यप्राणियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए कोई योजना बनाई गई और अगर बनाई गई तो क्या सही तरीके से उसे लागू किया गया।

  • और क्या राज्य सरकार द्वारा संरक्षित जंगलों और वन्यजीव आवासों का सही तरीके से विकास और प्रबंधन किया गया।



  • इस रिपोर्ट में जो खुलासे हुए, वो चौकाने वाले थे...क्योंकि इसके हिसाब से तो राज्य के 6 में से 3 टाइगर रिजर्व, 3 में से 1 राष्ट्रीय उद्यान और 10 में से 6 वन्यजीव अभ्यारण्यों में  कंजर्वेशन और मैनेजमेंट से जुड़ी योजनाएँ या तो रेवाईस नहीं हुई या फिर बनाई ही नहीं गईं। तो वहीँ राज्य के अधिसूचित 30 इको सेंसिटिव जोन में से 23 ने अभी तक जोनल मास्टर प्लान ही तैयार नहीं किया हैं। रिपोर्ट में ऑडिट की अवधि के दौरान मौजूदा पार्कों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में बाघों के संरक्षण पर पड़े बुरे पड़े असर के बारे में विस्तार से बताया गया। जानिये क्या रहीं रिपोर्ट की फाइंडिंग्स:



    3 टाइगर नेशनल पार्क्स में बाघ संरक्षण योजना लागू नहीं



    बाघों का घर माना जाने वाले मध्य प्रदेश में में छह टाइगर रिज़र्व हैं, जिनमें कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, पन्ना और संजय डुबरी शामिल हैं। जानकार हैरानी होगी कि इनमें से पन्ना, पेंच, और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में  सालों-साल से बाघ संरक्षण योजना ही नहीं हैं। जानकर हैरानी होगी कि कई रेसेर्वेस में तो संरक्षण योजना बनाने के नोटिफिकेशन दिए हुए सालों बीत चुकें हैं पर आज तक वह कोई संरक्षण  योजना नहीं लागू हुई है:




    • पन्ना (कोर एवं बफर): नोटिफिकेशन - दिसंबर 2007 एवं जुलाई 2014 में दिया गया : जून 2019 में एवं मार्च 2021 में बाघ संरक्षण योजना अप्प्रूव के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के पास भेजा गया था। मार्च 2021 तक स्वीकृत किया जाना बाकी है।


  • पेंच (कोर): नोटिफिकेशन - दिसंबर 2007 में दिया गया : 2018-19 के बाद से कोई बाघ संरक्षण योजना तैयार नहीं की गई।

  • बांधवगढ़ (कोर एवं बफर): नोटिफिकेशन - दिसंबर 2007 एवं अक्टूबर 2010 में दिया गया : 2015 में बाघ संरक्षण योजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजी गई।अगस्त, 2020 तक स्वीकृत नहीं हुई।



  • बांधवगढ़, कान्हा और पेंच HC के कहने के बावजूद नहीं हैं विशेष बाघ संरक्षण बल




    • यहीं नहीं मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच में आजतक सरकार और वन विभाग ने बाघों के संरक्षण के लिए कोई टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स नहीं बनाई है।


  • दरअसल, साल 2000 में जब मानव हस्तक्षेप, अवैध शिकार और तस्करी की बढ़ती घटनाओं के कारण बाघों की संख्या में भारी गिरावट आने की वजह से, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने बाघ रिजर्व वाले राज्यों में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स (STPF) स्थापित करने के की सिफारिश की थी।

  • सिफारिश के बाद, ओडिशा, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने तो STPF का गठन कर दिया...पर मध्य प्रदेश ने अभी तक इस तरह के बल का गठन नहीं किया है।

  • 2009-2010 में राज्य सरकार का NTCA के साथ एक एक त्रिपक्षीय एग्रीमेंट भी हुआ पर तय होने के बावजूद राज्य सरकार द्वारा विशेष बाघ संरक्षण बल स्थापित नहीं किया गया। इसको लेकर 2014 में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर राज्य सरकार को एक बार फिर से STPF स्थापित करने का निर्देश भी दिया था। पर सब फ़िज़ूल।



  • राज्य के 5 टाइगर रिजर्व के आसपास गतिविधियों को कण्ट्रोल करने के बनाई गई समितियों ने नहीं किया अपना काम



    मध्य प्रदेश के पांच टाइगर रिजर्व में और उनके आसपास व्यावसायिक गतिविधियों को रेगुलेट करने के लिए राज्य सरकार ने MP के पाँचों हर टाइगर रिजर्व के लिए एक स्थानीय सलाहकार समिति का गठन किया गया था। जिसका काम था रिजर्व के अंदर और आसपास के क्षेत्रों में हो रहे कंस्ट्रक्शन पर लगाम लगाने और मानदंड सुनिश्चित करना। इस स्थानीय सलाहकार समिति की हर 6 महीने में साल में कम-से-कम 2 बैठकें होनी थी, पर:




    • बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व: स्थानीय सलाहकार समिति ने 2014-19 के दौरान न्यूनतम 10 बैठकों के बजाय केवल 5 बैठकें हुई। स्थानीय सलाहकार समिति ने पर्यटन रणनीति या इमारतों के मानदंड की समीक्षा भी नहीं की। ताला-धमोखर रोड पर रात्रि यातायात प्रतिबंधित होने के बावजूद भी नियंत्रित नहीं किया गया।


  • पेंच टाइगर रिजर्व: स्थानीय सलाहकार समिति की केवल दो बैठकें हुई। समिति ने अपने निर्णयों के कार्यान्वयन की निगरानी नहीं की, जैसे टाइगर रिजर्व के आसपास पर्यटन गतिविधि, निर्माण का प्रकार, काम में लगे व्यक्तियों का विवरण नहीं रखा। इसने राज्य सरकार को किसी भी मामले में सलाह नहीं दी थी जैसा कि अनिवार्य था।

  • पन्ना टाइगर रिजर्व: 2014-19 के दौरान स्थानीय सलाहकार समिति की केवल 3 ही बैठकें हुई। पन्ना नगर पालिका द्वारा पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर के क्षेत्रों में कचरा डंप करने की समस्या के समाधान के लिए स्थानीय सलाहकार समिति द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।

  • कान्हा टाइगर रिजर्व: 2014-19 के दौरान स्थानीय सलाहकार समिति की केवल 6 ही बैठकें आयोजित की गईं। समिति ने आदेश दिए थे कि रिजर्व में या रिजर्व के आसपास के होटल, रिसोर्ट, या अन्य व्यावसायिक गतिविधियों वाले भवनों/कंस्ट्रक्शन से कांटेदार बाड़ हटाने होंगे...लेकिन इसके बाद अपने स्वयं के निर्णयों का कितना पालन हुआ या नहीं इसपर कोई रिव्यू नहीं किए

  • सतपुड़ा टाइगर रिजर्व: बैठकों की अनुपालन रिपोर्ट फील्ड कार्यालय में कभी दी ही नहीं गई...ये साफ़ दिखाता है कि टाइगर रिजर्व और उसके आसपास वाणिज्यिक गतिविधियों की कोई ख़ास निगरानी कि ही नहीं गई...जिसके लिए समिति बनाई गई थी। होटल/रेस्तरां द्वारा रिजर्व के आसपास जो कच्चा फैला उसका ठीक प्रबंधन नहीं हुआ। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के आसपास जो नए कंट्रक्शंस हुए या हो रहे हैं...उनके लिए समिति से मंजूरी प्राप्त लेना जरुरी नहीं समझा गया। चूर्णा और मढ़ई के पर्यटन क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई।



  • बाघ संरक्षण योजना न होने से और टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स न होने से 115 टाइगरों की मौत, ज्यादातर का शिकार




    • अब टाइगर रिज़र्व में कोई ठोस बाघ संरक्षण योजना न होने से और टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स न होने का असर ये हुआ कि इको-सेंसिटिव ज़ोन्स में टूरिज्म, कंस्ट्रक्सन का मैनजमेंट प्रॉपर नहीं हो पाया और संरक्षण गतिविधियों को ठीक से लागू नहीं किया जा सका। अगर कुछ जगहों में योजनाएं हैं भी तो योजनाओं को सुनिश्चित करने के लिए न कोई सिस्टम हैं, न कोई कर्मचारी और न ही कोई समय सीमा तय हैं।


  • इस वजह से बाघों के संरक्षण के कार्य ठीक से नहीं होने से सिर्फ 4 सालों में ही यानी 2014-2018 के दौरान, राज्य में कुल 115 बाघों और 209 तेंदुए की मौत के मामले सामने आए। इसमें से एक-चौथाई तो अवैध शिकार की वजह से ही मरे। अकेले कान्हा टाइगर रिजर्व, जिसे दो जिलों मंडला और बालाघाट की परिधि में स्थित कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता है, में 2012 और 2019 के बीच 43 बाघों की मौत हुई की सूचना दी है, जो देश में सबसे अधिक है।

  • यहीं नहीं मध्य प्रदेश में 2012 से 2022 तक की 10 साल की अवधि के दौरान 270 बाघों की मौतें दर्ज की हैं। ये देश में सबसे ज्यादा हैं और चौकाने वाली बात ये हैं की इनमे भी ज्यादातर मौतें टाइगर रिज़र्व के अंदर ही हुई हैं....औरअगर खुद नेशनल टाइगर कंज़र्वेसन अथॉरिटी (NTCA) के आंकड़ों को देखे तो बाघों की मौत का एक बड़ा कारण अवैध शिकार ही रहा...



  • 2016 में: 34 बाघों की मौत  



    2017 में: 27 बाघों की मौत  



    2018 में: 19 बाघों की मौत  



    2019 में: 28-31 बाघों की मौत  



    2020 में: 30 बाघों की मौत



    2021 में: 41-44 बाघों की मौत



    2022 में जुलाई तक: 27 बाघों की मौत



    6 साल में 2 हज़ार करोड़ के भारी भरकम खर्च के बावजूद प्रशासन सुस्त और लापरवाह




    • मध्य प्रदेश में वन्यप्राणियों के सुरक्षा, संरक्षण एवं वन्यप्राणी रहवासों के प्रबंधन ले प्रति शासन और अधिकारियों का ये लचर रवैया तब है जब इन सभी कार्यों के लिए 6 साल (2014-2019) में करीब 2 हज़ार करोड़ पानी की तरह बहा दिए गए।


  • बता दें कि वन्यजीव सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए ये फण्ड, राज्य के बजट, टाइगर रिजर्व/ राष्ट्रीय उद्यानों में डेवलपमेंट फण्ड और प्रतिपूरक वनीकरण निधि के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। राज्य के बजट में राज्य निधि के साथ-साथ केंद्र प्रवर्तित योजना ‘वन्यप्राणी और रहवास का एकीकृत विकास/ बाघ परियोजना’ के अंतर्गत प्राप्त धन शामिल होता है।

  • साल 2014 से साल 2018-19 के दौरान, केंद्र प्रवर्तित योजना के अंतर्गत ₹ 633.32 करोड़ और चार राज्य योजनाओं के अंतर्गत ₹ 1,265.92 करोड़ खर्च किए गए। 2014-15 से 2018-19 के दौरान विकास निधि के अंतर्गत प्राप्तियों के विरूद्ध ₹ 198.10 करोड़ खर्च किए गए जबकि प्रतिपूरक वनीकरण निधि के अंतर्गत ₹ 163.23 करोड़ खर्च किए गए।



  • क्या टाइगर संरक्षण योजना कानूनी ज़रूरी हैं?



    वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के सेक्शन 38(V) के मुताबिक़ हर टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण योजना होना कानूनी तौर पर ज़रूरी है। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के सेक्शन 33 के तहत वाइल्डलाइफ सेंक्चुरीस और नेशनल पार्क्स के लिए मैनेजमेंट प्लान होना भी जरुरी है। इसके अलावा, ईको सेंसिटिव ज़ोन्स (जो संरक्षित क्षेत्र के दो किलोमीटर की परिधि में आते हैं) एवं पूरे बफर क्षेत्र के लिए एक जोनल मास्टर प्लान का होना भी कानूनी तौर पर ज़रूरी है। दरअसल, जब तक कोई राज्य इस तरह की संरक्षण योजना, मैनेजमेंट प्लान, जोनल प्लान या एनुअल प्लान न तैयार करे....तब तक उसे संरक्षण और वन्यजीव मैनेजमेंट के लिए केंद्र से फंड मिलना मुश्किल है...क्योंकि इन्हीं प्लान के आधार पर भारत सरकार से फंड की डिमांड की जाती है। इसीलिए अगर कहीं का पिछला बाघ संरक्षण योजना या मैनेजमेंट प्लान एक्सपायर हो रहा हो... तो ये ज़रूरी हैं कि पिछली योजना अवधि की समाप्ति से पहले ही नए प्लान्स तैयार और अप्प्रूव करवा लिए जाए। हर संरक्षित क्षेत्र और टाइगर रिज़र्व का अपना एक वैज्ञानिक रिसर्च और आंकड़ा (पारिस्थितिक डेटा) होता है। इन्हीं रिसर्च और आंकड़ों के आधार पर ये प्लान्स तैयार किये जाते हैं...




    • वाइल्डलाइफ सेंक्चुरीस और नेशनल पार्क्स के लिए प्रिंसिपल चीफ कन्सर्वेटर ऑफ़ फारेस्ट/ वाइल्डलाइफ द्वारा एप्रूव्ड मैनेजमेंट प्लान (10 वर्ष के लिए)


  • टाइगर रिज़र्व के लिए बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा एप्रूव्ड टाइगर संरक्षण योजना (10 वर्ष के लिए)

  • इको सेंसिटिव जोन के लिए राज्य सरकार द्वारा एप्रूव्ड जोनल प्लान और...

  • केंद्र सरकार से फंड प्राप्त करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एप्रूव्ड एनुअल प्लान (1 वर्ष के लिए) बनाया जाता है



  • रिज़र्व में कंज़र्वेसन प्लान्स के न होने पर द सूत्र ने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स अजय दुबे, पूर्व चीफ वाइलाइफ़ वार्डन और मध्य प्रदेश के PCCF जे एस चौहान से बात की। पढ़िए सभी ने क्या कहा.. 



    रिज़र्व और बाघों के कारगर मैनजमेंट के लिए कंसर्वेशन प्लान कानूनी तौर पर जरुरी: एच एस पाब्ला, MP वाइल्डलाइफ बोर्ड मेंबर, पूर्व चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन



    किसी भी जंगल, रिज़र्व, पार्क या अभ्यारण्य के सही और कारगर मैनजमेंट के लिए कंसर्वेशन प्लान और मैनेजमेंट प्लान्स कानूनी तौर पर जरुरी है। किसी तरह के टाइगर कंसर्वेसन प्लान या फिर मैनेजमेंट प्लान के बिना इतने बड़े एरिया का सही तरीके के संचालन कर पाना मुश्किल होता है। ये बहुत क्रिटिकल है। 10 साल का समय काफी लंबा होता है। इसमें कंजर्वेशन करने की जरूरतें और तरीके बदल जाते हैं। इसलिए हर 10 साल में टाइगर कन्सेर्वटिव प्लान का अपडेट होना भी जरूरी है। और अगर ऐसा नहीं होता है। तो ये साफतौर पर एक प्रशासनिक कमज़ोरी ही है। ऐसा नहीं होना चाहिए। प्लान्स का समय पर न होने का एक बड़ा कारण यही मैनपावर के कमी। सबसे ज्यादा जरुरी है ऑफिसर्स की जरुरत अनुसार रिक्रूटमेंट।स्पेसलाईज़ेड ऑफिसर्स जिनको जंगलो और जानवरों की जानकारी हो...की बहुत कमी है। एक अफसर 4-4 चीज़ों की जिम्मेदारी लेकर बैठा है..तो काम कैसे होगा। सरकार को इसके लिए एक मैनपावर बनाने की जरूरत है



    रिज़र्व में अवैध गतिविधियां जारी रखने के लिए STPF नहीं बनाई जा रही: अजय दुबे, वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट




    • टाइगर कंज़र्वेसन प्लान्स के भरोसे ही रिज़र्व और अन्य आसपास के टाइगरों को कैसे संरक्षित किया जाए। टाइगर्स के लिए सिक्योरिटी प्लान उसी के भरोसे बनता है। कमियों को पूरा किया जाता है। तो अगर टाइगर रिज़र्व में प्लान्स नहीं बना है तो ये दुर्भाग्य है। और शायद यहीं लापरवाहियां थी कि प्रदेश के पन्ना से एक वक़्त टाइगर्स का सफाया हो गया था। टाइगर कंज़र्वेसन प्लान्स तो एक तरह से बाघों को बचाने का ग्रन्थ होता है।


  • टाइगर रिज़र्व  में STPF भी आज तक नहीं बनाई  गई क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो इन रिज़र्व में जो अवैध गतिविधियां जारी हैं। उसपर लगाम लग जायेगी और इसमें मिली-भगत से मिल रहा मुनाफा बंद हो जाएगा।

  • अवैध शिकार के मामले में MP नंबर 1 है। और वो भी टाइगर रिज़र्व में सबसे ज्यादा है। खुद NTCA के पिछले 10 वर्षों के आंकड़े यही कहते हैं। यानि MP के रिज़र्व शिकारियों के लिए पसंदीदा जगह बनी हुई है। पर मॉनिटरिंग की कमी से और अधिकारीयों की लापरवाही से ये हालत बने हुए हैं। और टाइगर स्टेट का दर्ज़ा जो  MP के पास है.. MP में जो टाइगर्स हैं वो अपनी किस्मत से है। MP के टाइगर की संख्या कोई ख़ास बढ़ी नहीं है। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ साथ था..तब MP के पास 700 टाइगर्स थे...आज 526 है....यानी अभी भी हम अपना पुराना दर्ज़ा नहीं प्राप्त कर पाए हैं।



  • रिज़र्व में टाइगर कंज़र्वेसन प्लान्स नहीं होना NTCA की गलती: जे एस चौहान, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, MP



    अगर इन रिज़र्व में टाइगर कंज़र्वेसन प्लान्स नहीं हैं। ये NTCA की गलती न कि मध्य प्रदेश सरकार या वन विभाग की...क्योंकि हम तो अपना प्लान भेज चुके है। NTCA ही अप्प्रूव नहीं कर रहा। साग मध्य प्रदेश पर इतना फोकस कर रहा है अपनी रिपोर्ट में पर क्या उसने कभी ये सवाल किया कि क्यों नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड की मीटिंग पिछले 7-8 सालों से क्यों नहीं हुई है?



    लोकल एडवाइजरी समिति पर




    • एच एस पाब्ला, MP वाइल्डलाइफ बोर्ड मेंबर, पूर्व चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन: लोकल अडवाइसरी समिति का रोल बाघों के संरक्षण में बहुत इम्पोर्टेन्ट रोल है और अगर वो अपना काम ठीक से नहीं करती तो पार्क्स/रिज़र्व के मैनेजमेंट में कमी रह जाती है। जो ठीक नहीं है।


  • अजय दुबे, वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट: LAC को टाइगर रिज़र्व  के बेहतर प्रबंधन, रिज़र्व के जानवरों और आसपास के ज़ोन्स के रहवासियों में बेहतर समन्वय स्थापित करने और टूरिज्म मेन्टेन करने के लिए बनाया गया था। पर LAC के अध्यक्ष कमिश्नर लापरवाह होते जा रहे है।अपने निजी हितों के लिए काम कर रहे हैं। उनपर फारेस्ट डिपार्टमेंट का कोई कंट्रोल नहीं रह गया है...जिसके कारण जंगल के जानवरों की बदहाली हो रही है।

  • जे एस चौहान, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, MP ने टाइगर रिज़र्व में LAC के ठीक से न काम करने को सिरे से नकार ही दिया और कहा कि इससेउनके वनजीव प्रबंधन में कोई फर्क नहीं पड़ता।


  • NTCA TIGER STATE MP STATE OF TIGER CONSERVATION PLANS IN MP'S TIGER RESERVES EXISTENCE OF SPECIAL TIGER PROTECTION FORCE IN MP'S TIGER RESERV LOCAL ADVISORY COMMITTEES IN MP'S TIGER RESERVES DEATHS OF TIGERS DUE TO POACHING IN MADHYA PRADESH WILDLIFE PROTECTION ACT 1972 MP HIGH COURT'S ORDER FOR THE FORMATION OF STPF IN MADHYA PRADESH मध्य प्रदेश में बाघ संरक्षण योजनाएं मध्य प्रदेश के बाघ अभ्यारण्यों में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फ़ोर्स