सीएम हेल्पलाइन : गौरव गृह निर्माण सोसाइटी का मामला
40 साल पहले लिया प्लाट किसी और को बेचा, अब बेटी के 1 बीएचके फ्लैट में किराए से रहते हैं 85 वर्षीय गिरीश
द सूत्र, भोपाल।
पहले ईमानदारी से नौकरी कर जो थोड़ा बहुत जोड़ा, उसे भूखण्ड खरीदने के लिए लगा दिया, फिर रिटायरमेंट से जो पैसे मिले वह धीरे—धीरे उस भूखण्ड यानी प्लाट का पजेशन लेने के लिए दौड़ भाग करने में निकल रहे हैं। यह हकीकत है...रचना नगर 382 के प्रथम तल पर 1 बीएचके फ्लैट में रहने वाले 85 वर्षीय गिरीशचंद्र दुबे की। गिरीशचंद्र दुबे ने अपने 44 संस्थापक सदस्यों के साथ 1982 में गौरव गृह निर्माण सोसायटी की स्थापना की थी। सोसायटी को 5 एकड़ जमीन बावड़ियाकला में मिली थी, जो आज शहर की प्राइम लोकेशन है, पर इन संस्थापक सदस्यों में से किसी को भी उस जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं मिला। उम्र की जिस दहलीज पर गिरीशचंद्र हैं, वहां उन्हें आराम करना चाहिए, पर वे अपना प्लाट पाने इधर—उधर चक्कर लगा रहे हैं। हर कर्मचारी का सपना होता है कि वह रिटायरमेंट के बाद अपनी बांकी की जिंदगी पूरे सम्मान के साथ जिए, पर मजबूरन गिरीशचंद्र को अपनी बेटी के 1 बीएचके फ्लैट में रहना पड़ रहा है, हालांकि वे इसका किराया अपनी बेटी को देते हैं।
सीढ़ी से चढ़ने उतरने में होती है दिक्कत
गिरीशचंद्र के साथ 1 बीएचके फ्लैट में उनके बेटा बहू के साथ एक पोता और एक पोती रहते हैं। जबकि गिरीशचंद्र को गौरव गृह निर्माण सोसायटी से प्लाट नंबर 80 आवंटित हुआ था। गिरीशचंद्र बताते हैं कि उन्होंने भूखण्ड के लिए 20 हजार से अधिक की राशि भी जमा की। 1981 में इसके लिए 2400 रूपए भी दिए, पर पजेशन नहीं मिलने पर वह सालों से इसके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। कई जगह सैंकड़ों बार शिकायत की, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं। बिल्डर से मिलीभगत कर समिति के पूर्व अध्यक्ष ने उनके भूखण्ड को निगम में बंधक रखवा दिया, जब सालों तक लड़ाई लड़ उसको बंधक मुक्त करवाया तो उसकी किसी दूसरे के नाम रजिस्ट्री कर दी गई।
क्या है पूरा मामला...
1981—82 में 44 सदस्यों ने बावड़ियाकला के पास 5 एकड़ भूखण्ड लिया, जिसके लिए सभी ने 2400—2400 रूपए दिए। इस भूखण्ड को विकसित कर सभी वैध परमीशन लेकर इन्हीं 44 सदस्यों को प्लाट आवंटित होने थे, जिसके बाद ये उस पर घर बनाते। सदस्यों का आरोप है कि समिति के अध्यक्ष संतोष जैन ने बिल्डर शिशिर खरे के साथ मिलकर धोखाधड़ी की। विकास के नाम पर अवैधानिक रूप से नगर निगम में प्लाट बंधक रख दिए। फिर डुप्लेक्स बनाकर 40—40 लाख में गैर सदस्यों को बेच दिए। जबकि इन पर सदस्यों का अधिकार था। अब यहां शुभालय विहार नाम से सोसाइटी है।
44 में से 22 सदस्यों की हो चुकी है मौत
गौरव गृह निर्माण सोसायटी में जिन लोगों ने 1981—82 उस समय प्लॉट लिए थे उनकी उम्र 35 से 45 साल के बीच थी। आज इन 44 सदस्यों में से किसी को प्लॉट नहीं मिला, इनमें से 22 सदस्य प्लॉट के लिए संघर्ष करते रहे और आज इस दुनिया में नहीं हैं। बचे हुए सदस्य बुढ़ापे में संघर्ष कर रहे हैं। गरीशचंद्र दुबे, टीजी हांडे, एसपी माथुर, एमके हाजरा अपना प्लाट पाने लड़ाई लड़ रहे हैं।
सीएम हेल्पलाइन में 38 शिकायत, सभी की बंद
गौरव गृह निर्माण सोसायटी के फाउंडर मेंबर में अशोक दीक्षित भी थे, जिनका निधन हो चुका है। उनके बेटे विवेक दीक्षित अब इस समिति के सदस्य है। विवेक दीक्षित बताते हैं कि गौरव गृह निर्माण सोसायटी में हुई धोखाधड़ी और लोगों को उनका हक दिलाने के लिए सीएम हेल्पलाइन में करीब 38 शिकायतें की गई, पर सभी शिकायतें बिना निराकरण किए बंद कर दी गई।
सहकारिता उपायुक्त ने अपनी पत्नी के नाम प्लाट लिया
मामले में आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने बताया कि सोसायटी के संबंध में कई जांचें हुईं, लेकिन हर बार घुमा फिराकर गेंद शिकायतकर्ताओं के इर्द गिर्द ही रख दी। इनका क्या कसूर था? हर व्यक्ति अपनी छत का सपना देखता है। इन्होंने देखकर क्या गुनाह कर दिया। इस सोसायटी के संबंध में अब तक कई जांचें हुईं, वर्तमान सहकारिता उपायुक्त बबलू सातनकर ने तो अपनी पत्नी के नाम ही प्लॉट ले लिया, लेकिन पीड़ितों को कुछ नहीं मिला। वहीं द सूत्र ने जब मामले में बबलू सातनकर से बात की तो उन्होंने कहा कि यदि कोई आरोप लगा रहा है तो वह इसमें क्या कह सकते हैं, मामले में जांच चल रही है।
अब तक हुई जांच और उनकी स्थिति
- तत्कालीन सहायक आयुक्त अखिलेश चौहान ने 2016 में जांच की। उस समय संस्था के ऑडिट के बारे में कोई टीखा टिप्पणी नहीं की गई। जबकि संस्था का पिछले छह साल से ऑडिट नहीं हुआ था। जांच में स्पष्ट किया गया कि 44 सदस्य भूखंड प्राप्त करने के पात्र है। बिल्डर द्वारा भूखंडों को विकसित कर ड्यूप्लेक्स बनाकर बेचे जाने के तथ्य को सही पाया गया। लेकिन किसी को प्लॉट नहीं मिले। साठगांठ कर रिपोर्ट तैयार करने का आरोप।
- वर्ष 2019-20 में त्रिस्तरीय कमेटी का गठन कर जांच की गई। जांच में एक बार फिर 44 संस्थापक सदस्यों को भूखंड से वंचित बताया गया। प्रेमसिंह जायसवाल और अनीता विष्ट का संचालक मंडल दोषी पाया गया। जिन बैठकों में 23 संचालकों को निकाला गया, उनमें वैध संचालक उपस्थित थे ही नहीं। इसी जांच रिपोर्ट में 16 भूखंडों की रजिस्ट्री शून्य कराने सहकारिता निरीक्षक आरएस उपाध्याय को अधिकृत किया गया। लेकिन किसी मनोज साहू से दो भूखंडो का पंजीयन अन्य व्यक्तियों से करवाते हुए आर्थिक लाभ प्राप्त किया गया।
- विधानसभा में 2020 में भी गौरव सहित कई सोसायटियों में घोटाले को लेकर सवाल लगे, लेकिन सभी में गलत जवाब दिए गए। एक ही व्यक्ति महाकाली, गुलाबी, न्यू मित्र मंडल, लाला लाजपत राय , मंदाकिनी, गौरव हेमा, इन सभी संस्थाओं में सदस्य बनकर राशि अहारण करता रहा। किसी पर कार्रवाई नहीं हुई।
- सहकारिता मंत्री के स्टाफ ने भी मनोज साहू नामक व्यक्ति से अपने परिजनों के नाम भूखंडों का पंजीयन कराया। जो अपने आप में करोड़ों का घोटाला था। पंजीयन प्रतिबंध के बाद भी प्लॉट कैसे दे दिए गए। स्टाफ के परिवार के तीन लोग जो ग्वलियर निवासी हैं, उनको प्लॉट कैसे दिए गए। पात्र संस्थापक सदस्यों को प्लॉट कब मिलेंगे।