Bhopal. महंगाई भत्ते के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने अपने अपने 12 लाख कर्मचारियों के लिए कैशलेस हेल्थ बीमा योजना लागू कर दी है। राज्य शासन के कर्मचारी इस नई बीमा योजना के तहत एक साल में 5 लाख रुपए तक का इलाज कैशलैस करा सकेंगे। राजपत्र में भी इसका प्रकाशन कर योजना के नियम दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा लागू की गई इस योजना में राज्य शासन के नियमित कर्मचारियों के अलावा संविदा, दैनिक वेतन भोगी और कार्यभारित कर्मचारी भी शामिल किए गए हैं, लेकिन प्रदेश के करीब 4.5 लाख पेंशनर्स को इस योजना से दूर कर दिया गया है। इससे योजना लागू होते ही विरोध की स्थिति बन गई है।
राज्य शासन द्वारा 3 अगस्त को राजपत्र में इस योजना का प्रकाशन कर दिया गया है। प्रस्तावित बीमा योजना के अनुसार 7 लाख कर्मचारी इसके दायरे में आएंगे। इसकी बड़ी वजह यर्मचारियों का इलाज तय नियमों के हिसाब से सरकार कराती है। इलाज की सीमा 5 लाख रुपए तय की गई है; इसमें ओपीडी में चिकित्सकों को दिखाने पर लगने वाली फीस की भी प्रतिपूूर्ति का प्रावधान रखा गया है, लेकिन यह फीस एक बार में 2000 और साल भर में 8000 रुपए से अधिक नहीं होगी। शासन द्वारा ऐसे मामलों में ओपीडी फीस की प्रतिपूर्ति को स्वीकृत करने के लिए सक्षम कमेटी की जिम्मेदारी भी तय की है। जानकारी के अनुसार योजना में निर्धारित की गई 5 लाख रुपए से अधिक का खर्च होने पर मामला कैबिनेट को भेजा जाएगा। कैबिनेट की अनुमति से अतिरिक्त राशि का प्रीमियम काटा जाएगा। नई योजना लागू होने के बाद 5 लाख रुपए तक का इलाज कैशलेस और उससे ऊपर के इलाज के लिए कैबिनेट की विशेष अनुमति जरूरी होगी। सूत्रों के मुताबिक प्रारंभिक आकलन के अनुसार करीब 300 करोड़ रुपए हर महीने प्रीमियम के जमा होंगे, जो सालाना 3600 करोड़ रुपए होंगे।
नई योजना लागू होने से ये आएगा अंतर
पिछले महीने तक कर्मचारी स्वास्थ्य नियमों के हिसाब से 3000 रुपए तक की राशि चिकित्सक से परामर्श के बाद ले सकते थे। नए नियमों में इसे बढ़ाकर 8000 रुपए कर दिया गया है। वहीं, सिविल सर्जन की अनुमति के बाद पहले 3000 रुपए का इलाज लेने के बाद कर्मचारी 2 लाख रुपए तक का इलाज ले सकते थे, अब इसकी अधिकतम सीमा 20 हजार रुपए होगी।
गंभीर बीमारी में सीजीएचएस स्कीम होगी कवर
प्रदेश में करीब साढ़े 5 लाख शासकीय कर्मचारी हैं, जिनके इलाज के लिए 180 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यह राशि हाल ही में जारी नियमों के हिसाब से कर्मचारी चिकित्सक की सलाह पर साल में 8 हजार रुपए का इलाज घर रहकर करा सकते हैं। इससे ज्यादा राशि की जरूरत पड़ने पर उन्हें सिविल सर्जन की अनुमति लेना होगी और 20 हजार रुपए साल में इलाज की पात्रता होगी। यदि बीमारी गंभीर है तो उन्हें अस्पताल में भर्ती होना होगा, जिसमें सीजीएचएस स्कीम में कवर बीमारियों का इलाज मिलेगा। योजना के लिए हर स्तर पर कमेटी बनाकर जिम्मेदारी तय की गई है तो पैकेज की राशि चारों शहर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर समेत अन्य बड़े शहरों के अस्पतालों की दरों के आधार पर किया गया है। अब इस योजना का एक लाभ यह भी होगा कि जो राशि अभी तक चारों महानगरों के अस्पतालों में ही खर्च हो जाती थी, अब जिला और तहसील स्तर पर भी कर्मचारी अपना इलाज बिना किसी संकोच के करा सकेंगे।
पेंशनर्स को रखा सुविधा से दूर
इस बीमा योजना में प्रदेश के करीब 4.50 लाख पेंशनर्स को शामिल नहीं किया गया है। इससे पेंशनर्स को एक बार फिर शासन की ओर से झटका मिला है। मध्यप्रदेश पेंशनर्स महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष जीडी जोशी ने इसेे शासन की दोहरी नीति माना है। जोशी का आरोप है कि महंगाई भत्ता, नए वेतनमान की सुविधाओं में तो राज्य शासन पेंशनर्स से दोगला व्यवहार करता ही है, अब स्वास्थ्य सुविधाओं से भी पेंशनर्स को अलग कर दिया है। जबकि स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च सेवानिवृत्ति की आयु के बाद ही होता है। स्वास्थ्य बीमा योजना में पेंशनर्स को ज्यादा सुविधाएं देते हुए शामिल किया जाना चाहिए था। इसका पेंशनर्स पुरजोर विरोध करेंगे और जरूरत पड़ी तो स्वयं के और अपने आश्रितों को स्वास्थ्य की सुविधा के लिए सड़कों पर उतरने में भी संकोच नहीं करेंगे।