रीवा राजेन्द्र के लिए चुनौती, सिंगरौली सतना 'राम' भरोसे..!

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The Sootr CG
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रीवा राजेन्द्र के लिए चुनौती, सिंगरौली सतना 'राम' भरोसे..!

REWA. विंध्य की तीनों नगर निगमों के महापौर पद के लिए बीजेपी के प्रत्याशियों ने पर्चे दाखिल कर दिए। रीवा की कमान पूर्व मंत्री व वरिष्ठ विधायक राजेन्द्र शुक्ल ने थाम ली है। सिंगरौली में विधायक रामलल्लू वैश्य चुनाव अभियान के अगुवा बने हैं जबकि सतना में नामांकन के समय मंत्री रामखेलावन पटेल गायब रहे। रीवा से प्रबोध व्यास, सिंगरौली से चंद्रप्रताप विश्वकर्मा और सतना से योगेश ताम्रकार ने अपने-अपने देवी-देवताओं का सुमिरन करके नामांकन दाखिल कर ढोल ढमाकों के साथ चुनावी रण में उतर चुके हैं।





रीवा में कांग्रेस की अप्रत्याशित एकता से अंदर तक सहमी बीजेपी





रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल ने दावा किया है कि इस बार महापौर के चुनाव में बीजेपी जीत का नया कीर्तिमान बनाएगी। लेकिन जमीनी हकीकत क्या है चलिए इस पर विचार करें। यह सही है कि बीजेपी के लिए प्रत्याशी की हैसियत नहीं चुनाव चिन्ह महत्वपूर्ण होता है। यहां संगठन के चाबुक की डर से कोई चूं-चपड़ नहीं करता, लेकिन क्या चुनाव जीतने के लिए इतना ही काफी है..? नहीं.. जातीय समीकरण, सामने प्रतिद्वंद्वी की ताकत और तात्कालिक मुद्दे भी बड़े कारक होते हैं। इस बार कांग्रेस बिखरी नहीं है। युवा प्रत्याशी अजय मिश्र बाबा किसी परिचय के मोहताज नहीं और न ही उनकी पैराशूट लैंडिंग हुई है। वे निगम के नेता प्रतिपक्ष के रूप में शहर के ज्वलंत मुद्दे पर मुखर और स्थानीय विधायक को लेकर वाचाल रहे हैं। बाबा के नाम पर समूची कांग्रेस एकजुट है। तीन दशक बाद कांग्रेस में ऐसा एका दिख रहा है। अब तक महापौर के चुनाव में बसपा बीजेपी के लिए राह आसान करती रही है। बसपा से लगातार मुसलमान नेता लड़ते रहे हैं। इस बार कांग्रेस को लेकर एक मत हैं। दोनों ब्राह्मण प्रत्याशी हैं सो सजातीय समीकरण भी एक सा ही है। इसलिए सांसद जनार्दन मिश्रा भले ही कहें कि कांग्रेस का उम्मीदवार तिनके कि तरह उड़ जाएगा लेकिन हकीकत यह है कि कांग्रेस को मुद्दतों बाद अंगद के पांव सा प्रत्याशी मिला है जिसे आसानी से उखाड़ने में दांतों तले पसीना आएगा।





सिंगरौली में बीजेपी की जीत के आगे धुंध और धुंआ..!





पिछले चुनाव में बीजेपी से बगावत कर तीन तिकड़म से नगर निगम अध्यक्ष बन जाने वाले चन्द्रप्रताप विश्वकर्मा की पीठ पर भले ही विधायक रामलल्लू वैश्य का हाथ हो लेकिन उनकी जीत का रास्ता कोयले की धूल धक्कड़ से भरा है। वजह बीजेपी के भीतर ही बगावत की स्थिति है। टिकट के दावेदार बीजेपी के जिलाध्यक्ष गोयल नामांकन के समय से गायब हैं। सामान्य सीट  पर पिछड़े को उतारने से सामान्य वर्ग के भाजपाई नाकभौं सिकोड़कर बैठ गए हैं। सामान्य वर्ग का मतदाता समान्य वर्ग की ओर गोलबंद होने की फिराक में है और रही सही कसर बसपा व आप अपनी टिकट पर पिछड़ों को उतार कर पूरा करने जा रही है। अब भाजपा की सांगठनिक शक्ति ही इस चुनाव में चंद्र के प्रताप को बनाए रख सकती है..।





सतना में पिछड़ों का मतलब कुनबी काछी..





सतना की राजनीति की परिभाषा में कोई पिछड़े का मतलब पूछे तो बच्चा भी जवाब दे देगा.. पिछड़ा मतलब- कुनबी,काछी। बीजेपी के योगेश ताम्रकार न कुनबी हैं और न काछी। उनकी पहचान एक कुलीन परिवार व व्यवसाई के तौर पर है। सामने मुकाबले पर हैं खालिस काछी सिद्धार्थ कुशवाहा।  इसी गणित के चलते बीजेपी ने रामखेलावन पटेल को पिछड़ों के चेहरे के तौर पर मंत्रिपरिषद में लिया। लेकिन योगेश के नामांकन के समय पटेल की गैरमौजूदगी ने सभी को चौंकाया। यद्यपि सांसद गणेश सिंह थे। बकौल एक पत्रकार उन्हें देखते ही भाजपा में फुसफुसाहट हुई कि इनकी तो 'डब्बू से डील हो गई' डब्बू बोले तो सिद्धार्थ कुशवाहा। डब्बू ने जब तीनबार के विधायक भाजपा के शंकरलाल तिवारी को हराया था तब तिवारी ने पार्टी फोरम में यह शिकायत की थी कि गणेश और उनके लोगों ने मेरा नहीं कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा का साथ दिया।  और लोकसभा में सिद्धार्थ ने गणेश के एहसान को चुकता किया यह आरोप राजाराम त्रिपाठी (लोकसभा प्रत्याशी) से जुड़ा कोई भी बता देगा। महापौर के चुनाव में ये बातें न आए यह कैसे हो सकता है। कांग्रेस छोड़कर बसपा के हाथी पर सवार हुए सईद अहमद  से जरूर भाजपा आस लगा सकती है कि मुसलमानों के एकमुश्त वोट कांग्रेस में जाने से रुक जाए। योगेश ताम्रकार को पिछड़ों से ज्यादा रामभरोसे ही चलना होगा



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