चंबल, बागी और नेता प्रतिपक्ष; विद्रोही तेवर आज भी बरकरार

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Rahul Garhwal
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चंबल, बागी और नेता प्रतिपक्ष; विद्रोही तेवर आज भी बरकरार

देव श्रीमाली, Gwalior. चम्बल तीन जिलों का संभाग है। ये राजस्थान से सटे श्योपुर जिले से शुरू होता है और इसी सीमा को स्पर्श करते हुए यूपी से आलिंगन करते हुए अंततः यमुना में समा जाता है। यानि जहां तक चम्बल वहां तक चम्बल संभाग।



बागियों का इलाका चंबल



स्वतंत्रता पूर्व इस इलाके को बागियों के रूप में जाना जाता था। महाभारत काल में भगवान कृष्ण की बुआ कुंती का घर रहा ये इलाका बाहुबली कर्ण की जन्मस्थली भी है। जब दिल्ली के राजा अनंगपाल को दिल्ली की गद्दी से हटा दिया गया तो ये मुगलों और फिर अंग्रेजों के लिए विद्रोहियों का अड्डा बन गया। इतिहास ने नाम दिया पिंडारी। स्थानीय लोगों ने कहा बागी। बागी कब डकैत बन गए किसी को पता ही नहीं चला और चम्बल दस्युगर्भा बन गई और इसकी धार से खड़ी हुई बीहड़ों की अथाह श्रृंखला इन डाकुओं की शरण स्थली।



भिंड अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वालों का गढ़



हालांकि डकैत तो बीहड़ों में रहते रहे लेकिन इस अंचल के गांव और कस्बों में रहने वाले लोग भी बागी स्वभाव के रहे हैं। स्वतंत्रता पूर्व चम्बल का भिण्ड जिला अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वालों का गढ़ रहा। 1857 की पहली क्रांति में मिहोना से लेकर इंदुरखी तक हर कोई रानी लक्ष्मी बाई के समर्थन में शमशीर बांधे खड़ा हुआ। हालांकि इस आंदोलन की असफलता इस क्षेत्र के लोगों पर भारी पड़ी और झांसी की रानी की शहादत के बाद अंग्रेज क्रूरतापूर्वक इस क्षेत्र के लोगों पर टूट पड़े। सैकड़ों युवाओं को सरेआम सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाकर मार डाला गया। जमीदारों के किले और गढ़ीं ध्वस्त कर उन्हें जेल में डाल दिया गया।



सत्ता नहीं विपक्ष के साथ जाने को आतुर लोग



1947 में देश आजाद हुआ लेकिन चम्बल के जहन में सत्ता प्रतिष्ठान के विरोध वाली परत मजबूती से चिपक गई। इस इलाके में सोशलिस्ट और जनसंघ की जड़ें मजबूत रहीं क्योंकि यहां के लोग सत्ता नहीं विपक्ष के साथ जाने को आतुर रहते आए हैं। 1967 में जब राजमाता विजया राजे सिंधिया ने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र के खिलाफ ठीक वैसे ही विद्रोह कर दिया जैसे 53 साल बाद उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया तो इसकी धुरी में चम्बल अंचल ही था। चम्बल इतनी विद्रोही था कि सत्ता को चुनौती देने वाली राजमाता जब भिण्ड में तब के दिग्गज नेता और मंत्री नरसिंह राव दीक्षित के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरी तो पूरे प्रदेश ने सत्ता को चुना लेकिन चम्बल के भिण्ड ने जनसंघ की राजमाता को।



चम्बल की सियासत में विद्रोही तेवर आज भी बरकरार



चम्बल की सियासत में विद्रोही तेवर आज भी बरकरार हैं। 2018 में इन्हीं तेवरों के चलते शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार श्यामला हिल्स के मुख्यमंत्री निवास में घुसने से रोक दिया और फिर महज दो साल में ही कांग्रेस के कमलनाथ को सत्ता से बेदखल करने में अग्रणी भूमिका निभाई। भिण्ड सत्ता की सियासत में भले ही कोई बड़ा स्थान नहीं बना पाई हो लेकिन सत्ता उखाड़ने में इसका कोई सानी नहीं है। भिण्ड अपवाद को छोड़कर एमपी का इकलौता जिला है जिससे अब तक दो नेता प्रतिपक्ष रहे हों। एमपी में अब तक 24 नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं।



डॉ. गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष



हाल ही में कांग्रेस ने डॉ. गोविंद सिंह को अपना नेता प्रतिपक्ष बनाया है। वे सदन में 25वें नेता प्रतिपक्ष हैं और भिण्ड से दूसरे। इससे पहले भिण्ड जिले के अटेर विधानसभा क्षेत्र से विधायक सत्यदेव कटारे 2014 से 2016 तक नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। इनके निधन के बाद राहुल भैया को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो भिण्ड के चौधरी राकेश सिंह को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया लेकिन वे बागी होकर भाजपा में चले गए।

 


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