Bhopal. ये रिश्ता क्या कहलाता है- नाम टेलीविजन पर लंबे चले एक डेली सोप का है। लेकिन इसे अगर कांग्रेस और प्रशांत किशोर के रिश्तों पर फिट कर दें तो भी कुछ गलत नहीं होगा। ये रिश्ता है ही ऐसा पहले बना फिर बिगड़ा। अब एक बार फिर इस रिश्ते को बनाने की कोशिश की गई। पर अफसोस कि रिश्ता फिर टूट गया। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने पुरजोर कोशिश की कि इस बार प्रशांत किशोर जैसा चुनावी रणनीतिकार उनकी पार्टी का हिस्सा बन ही जाए। पर वो भी आदत से मजबूर ऐसा ऑफर ही नहीं दे पाईं, जो पीके को रास आता। दूसरी तरफ पीके की भी राजनीतिक महत्वकांक्षा हर बार कांग्रेस के दरवाजे आकर दम तोड़ देती है। जितनी कांग्रेस को पीके की जरूरत है इसमें कोई दो राय नहीं की पीके को भी कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी की उतनी ही जरूरत है। फिर भी बात नहीं बन सकी। इसके बावजूद ये साफ है कि कांग्रेस और पीके में रिश्ते की एक डोर जुड़ी जरूर रहेगी। क्यों ये भी बताएंगे। बस परत दर परत रिश्तों की गहराई में छिपे रहस्यों को समझने की कोशिश करते जाइए।
सहमति क्यों नहीं बनी
कांग्रेस और पीके यानी कि प्रशांत किशोर के बीच बात नहीं बन सकी। बैठकों के दौर पर दौर चले। बात सर्वे से लेकर प्रजेंटेशन तक पहुंची। लेकिन ज्वाइनिंग तक पहुंचने से पहले ही अटक गई। कई कांग्रेस नेताओं के मन में तो लड्डू भी फूटे ही होंगे। क्योंकि ये चुनावी रणनीतिकार उन्हें फूटी आंखों नहीं सुहा रहे थे। जो वो चाहते थे वो बिना किसी जतन के अपने आप ही हो गया। वो विरोध जताते या असहमति उससे पहले बातचीत सोनिया गांधी और प्रशांत किशोर के स्तर पर ही खत्म हो गई। कांग्रेस और पीके के बीच कुछ तो ऐसा है कि हर बार बात बनते बनते बिगड़ जाती है। लेकिन इस बार दोस्ती का गेट बंद हुआ है लेकिन साथ का रिश्ता थोड़ा और कायम रहेगा और क्या पता 2024 आते-आते कांग्रेस और पीके का यारान फिर नजर आए।
पीके ने ठुकरा कांग्रेस का ऑफर
कांग्रेस में शामिल होने से पहले प्रशांत किशोर कई पेज लंबा प्रेजेंटेशन भी दे चुके थे। पार्टी को किस एरिया में, किस तरह काम करना है इसका एक खाका तो वो पार्टी को दे ही चुके हैं। अब बात बस इस फैसले पर टिकी थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस के भीतर रह कर पार्टी की जीत का रास्ता बनाएंगे या बाहर से ही सपोर्ट करेंगे। जो फैसला आया वो इन दोनों संभावनाओं से अलग था। प्रशांत किशोर की कांग्रेस में दाल नहीं गली। कांग्रेस चुनावी जीत से कितनी दूर हुआ या कितनी पास ये बाद में तय होगा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि प्रशांत किशोर से पार्टी ने एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 से जुड़ने की पेशकश की थी। लेकिन पीके ने उसे ठुकरा दिया। ट्विटर पर लिखा कि पार्टी को मुझसे ज्यादा एक अच्छी लीडरशिप और ऐसी इच्छाशक्ति की जरूरत है जो अंदर तक पैठ बना चुकी समस्या को दूर कर सके।
ये रिश्ता नया नहीं बहुत पुराना है जनाब
पीके के इस ट्वीट के क्या मायने हैं। क्या प्रशांत किशोर पार्टी की ऐसी समस्या की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो जानते सब हैं लेकिन खुलकर बोल सकें ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। तो क्या पीके पार्टी का हिस्सा बन जाते तो भीतर रह कर उस समस्या पर बात कर सकते थे। इन सवालों के जवाब तो अब शायद ही मिल पाएंगे। फिलहाल तो ऐसा लगता है कि खुद पीके जैसा रणनीतिकार पार्टी में उसी समस्या का शिकार हो गया है। एक बार नहीं दूसरी बार। पिछले साल भी पीके की कोशिशों पर पानी फिर था। पर कोई शक नहीं कि पीके अगले साल फिर कांग्रेस के साथ नजर आ जाएं। क्योंकि ये रिश्ता नया नहीं बहुत पुराना है जनाब।
पीके को उप्र का गठबंधन पसंद नहीं आया था
पीके और कांग्रेस के रिश्ते को समझना है तो कुछ सियासी पन्ने पलटने होंगे। वो पन्ने खंगाले जाएं उससे पहले बता दें कि पीके के सक्सेस रेट पर जो सबसे बड़ा दाग लगा है वो भी कांग्रेस की ही बदौलत है। 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पीके ने कांग्रेस का साथ देने की कोशिश की थी। लेकिन उस वक्त कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। शायद पीके को ये गठबंधन पसंद नहीं था। फिर भी नारा गढ़ा यूपी के लड़के। लेकिन यूपी के लड़के वो करिश्मा नहीं दिखा सका, जो अच्छे दिन आएंगे के नारे ने दिखाया था। संभव ये भी है कि एक नारा राहुल गांधी और अखिलेश यादव के लिए था और दूसरा नरेंद्र मोदी के लिए। नारे के साथ साथ चेहरा भी इम्पोर्टेंट हो सकता है। ये बात इससे समझी जा सकती है।
खैर आगे बात आगे बढ़ाते हैं। उस चुनाव में पीके को वो फ्री हैंड नहीं मिल सका जिसकी उन्हें दरकार थी। यूपी के लड़के बुरी तरह चुनाव हारे। संबंधों में खटास तो जरूर आई होगी। लेकिन वक्त की मांग को देखते हुए कांग्रेस और पीके में फिर चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। पिछले साल भी कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच बात बनते-बनते बिगड़ गई थी। मुलाकात और बैठकों के दौर के बीच कांग्रेस आलाकमान को ये संशय हुआ कि पार्टी के कई बड़े चेहरों को दूसरी पार्टी में शामिल कराने में प्रशांत किशोर ने मध्यस्थता की है तो रिश्तों में खटास आ गई।
इसलिए बिगड़ी बात
बात इतनी बिगड़ी कि प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा ‘जिस विचारधारा और राजनीति का कांग्रेस प्रतिनिधित्व करती है, वह मजबूत विपक्ष के लिए अहम है, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व किसी एक व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकारी नहीं है। विशेषकर तब जब पार्टी पिछले 10 साल में 90 प्रतिशत चुनाव हारी है। जाहिर है निशाना गांधी परिवार के परिवारवाद की तरफ था। खासतौर से राहुल गांधी की तरफ। इसके बाद रिश्ता तो टूटना ही था। शायद इस बार भी अपने ट्वीट के जरिए प्रशांत कुमार कांग्रेस की वही गहराई तक उतरी समस्या की तरफ इशारा कर रहे हैं जो है परिवारवाद।
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जमकर पीके पर निशाना साधा। जिसके बाद पीके भी एक बार फिर नरेंद्र मोदी की तारीफ करते नजर आए। यहां तक कह दिया कि सिर्फ ट्वीट और कैंडल मार्च करते बीजेपी को हराया नहीं जा सकता। तब लगा कि पीके का चैप्टर कांग्रेस में क्लोज हो चुका है। लेकिन चैप्टर ही खत्म हुआ था कांग्रेस को तो दोबारा जीत का पूरा नया सिलेबस बनाना है। सो पीके की जरूरत फिर महसूस हुई। हालांकि इस बार भी बातचीत बेमानी रही।
माना जा रहा है कि कांग्रेस पीके की मदद तो लेना चाहती है लेकिन उस तरह का फ्री हैंड नहीं देना चाहती जैसा पीके चाहते हैं। पार्टी के दिग्गज नेताओं का असंतोष और परिवार का वर्चस्व खत्म होने का डर शायद पीके को पार्टी में सीधे शामिल करने से रोक रहा है। यहीं आकर बात बनते बनते बिगड़ गई। वैसे पार्टी के सबसे पुराने नेताओं में से एक कमलनाथ तो ये कह ही चुके हैं कि कोई आए या न आए पार्टी किसी पर निर्भर नहीं है।
बीजेपी में दोबारा बात बन पाना तकरीबन नामुमकिन
कांग्रेस से मेल मुलाकात कर फारिग होने के बाद अब पीके अपनी कंपनी आईपैक के जरिए टीआरएस का काम संभालने निकल चुके हैं। फिलहाल दो राज्यों के चुनाव है। उसके बाद अगले साल होगा सत्ता का सेमीफाइनल। उसमें जो जीता वही 2024 की रेस में सिंहासन के ज्यादा करीब होगा। अपने अपनों से जूझ रही कांग्रेस को इस बीच फिर पीके की याद आ जाए या पीके कांग्रेस को मना लें तो ताज्जुब नहीं होगा। क्योंकि कांग्रेस को पीके की जरूरत है ये सब को नजर आ रहा है। लेकिन पीके को भी एक राष्ट्रीय स्तर के दल की जरूरत है। बीजेपी में दोबारा बात बन पाना तकरीबन नामुमकिन है। ऐसे में कांग्रेस में ही पीके को बेहतर विकल्प नजर आ सकता है। तो दोबारा ये रिश्ता फिर नए सिरे से शुरू होता दिखाई दे तो चौंकिएगा मत।