MP: बीजेपी और शिवराज सरकार में हड़कंप क्यों मचा? आरएसएस और आईबी की रिपोर्ट शिवराज सरकार के लिए सिरदर्द बनी; आला अफसरों को भी खतरा

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The Sootr CG
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MP: बीजेपी और शिवराज सरकार में हड़कंप क्यों मचा? आरएसएस और आईबी की रिपोर्ट शिवराज सरकार के लिए सिरदर्द बनी; आला अफसरों को भी खतरा

BHOPAL. बीजेपी सरकार (BJP government) को अचानक कर्मचारियों की याद आई है। जैसे ही याद आई ताबड़तोड़ फैसले लिए जाने लगे। आज दिन में ही द सूत्र ने सबसे पहले ये खुलासा किया कि कर्मचारियों (government employees) के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने बड़ा फैसला लिया है। ऐसा फैसला जिसे अमल में लाने के लिए उन्होंने इतनी तेजी दिखाई की प्रदेश के अफसरों को भी सीधे ऐलान से ही पता चला कि प्रदेश में क्या कुछ नया होने वाला है। इतना बड़ा फैसला लिया लेकिन उसे अमल में लाने वाले अफसरों को ही पता नहीं कि करना क्या है, तो उस फैसले को अमलीजामा कैसे पहनाया जाएगा। ये तो बाद की बात है। पहले ये जान लेना जरूरी है कि ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि सीएम को बिना सोचे समझे लाखों परिवारों से जुड़ा बड़ा ऐलान करना पड़ा।





70 हजार कर्मचारी हुए बिना प्रमोशन के रिटायर्ड





मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी पिछले छह साल से इंतजार कर रहे हैं कि उन्हें अपनी नौकरी रहते प्रमोशन (promotion) मिलेगा। कर्मचारी पर कर्मचारी रिटायर होते गए लेकिन प्रमोशन पर लगी रोग नहीं हट सकी। इस इंतजार को पूरा करने के लिए रिटायरमेंट (retirement) की उम्र 60 से बढ़ा कर 62 कर दी गई कि शायद दो साल और नौकरी में रह कर अधिकारी कर्मचारी प्रमोशन का सपना पूरा कर सकेंगे। लेकिन वो दिन कभी नहीं आया। प्रमोशन के इंतजार में सत्तर हजार अधिकारी कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। लेकिन प्रमोशन में आरक्षण पर कोर्ट का मामला क्लियर न होने से सरकार किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।





इतनी जल्दबाजी क्यों है





लेकिन अब अचानक सीएम ने ऐलान कर दिया है कि सरकारी अधिकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मिलेगा। न केवल इतना बल्कि इस प्रमोशन का आधार क्या होगा ये भी साफ हो चुका है। द सूत्र की खास पेशकश में हम सभी को बता चुके हैं कि किस आधार पर सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों का प्रमोशन तय होगा। ये सारे फैसले इतनी जल्दबाजी में हुए हैं कि संबंधित अधिकारियों को  भी इसकी कोई खबर नहीं थी। अब तलवार उनके सिर लटक रही है कि इस फैसले को जल्दी अमल में लाया जाए।



पर सोचने वाली बात ये है कि अचानक ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी कि 18 साल से प्रदेश पर काबिज सरकार को इतनी तेजी में इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा। ऐसा फैसला जिसकी बीते छह साल से सरकार ने कोई खास फिक्र नहीं की, वो अचानक इतना अहम कैसे हो गया। इसके पीछे वाकई कर्मचारी हित है या फिर सरकार और सत्ता की ऐसी मजबूरी कि बिना सोचे समझे दनादन ऐलान पर ऐलान कर दिए गए।





पेंशनर्स भी हैं नाराज 





सरकार का कोई फैसला यूं ही नहीं होता। खासतौर से जब चुनाव सिर पर हों और तब जब एक चुनाव के नतीजे ये चीख चीख कर बता चुके हों कि सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी बढ़ चुकी है। नगरीय निकया चुनाव में हारे हुए स्थानों पर सर्वे हुआ और जो रिपोर्ट आई उसने शिवराज सरकार के होश फाख्ता कर दिए। लोगों की नाराजगी अलग-अलग मुद्दों पर हो सकती है लेकिन सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की नाराजगी और उदासीनता सरकार पर भारी पड़ती नजर आई। 





जिसके बाद कर्मचारियों को खुश करने के लिए महंगाई भत्ता तीन प्रतिशत बढ़ाकर केंद्र के समान करने का ऐलान हुआ। इस फैसले के बाद फिर आंकलन हुआ और पार्टी इस नतीजे पर पहुंची कि कर्मचारी इतने पर खुश नहीं है। केंद्र ने जनवरी में ये आदेश जारी किए और राज्य सरकार ने अगस्त में आदेश दिया। ये सात माह का नुकसान कर्मचारियों को गंवारा नहीं हुआ। 





नाराजगी तो उस कर्मचारी वर्ग में भी है, जो पेंशन उठा रहा है। ऐसे कर्मचारी गाहे-बगाहे ये आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार रिटायर्ड कर्मचारियों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव कर रही है। दरअसल प्रदेश में पेंशनर्स को महंगाई भत्ता देने से पहले छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का मुंह देखना पड़ता है। ये नाराजगी जस की तस है। कर्मचारियों का आरोप है कि छत्तीसगढ़ से सहमति लेने के नाम पर उनसे जुड़े फैसले अटका दिए जाते हैं। इसकी वजह से कर्मचारी और पेंशनर्स के महंगाई भत्ते का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार के ताजा ऐलान के बाद कर्मचारियों को 34 प्रतिशत महंगाई भत्ता मिलेगा। जबकि पेंशनर्स को 22 प्रतिशत ही महंगाई भत्ता मिलता है। इस बात की नाराजगी भी सरकार पर भारी पड़ रही है। 





शिवराज सिंह चौहान एक्शन मोड में 





प्रदेश की सत्ता में बने रहना हो या सत्ता में वापसी करना हो सरकारी नौकरों की अनदेखी नहीं की जा सकती। ये बात अब बीजेपी समझ चुकी है। नगरीय निकाय चुनावों के नतीजों में बीजेपी का जो हाल है उसे देखते हुए संघ ने ये चेता दिया है कि अब भी सरकारी नौकरों को अनदेखा किया तो 2023 में वापसी की संभावनाओं को भूल जाएं। इस फटकार के बाद से शिवराज सिंह चौहान एक्शन मोड में है। पहले मंहगाई भत्ते पर ऐलान और उसके बाद बिना आरक्षण के प्रमोशन को हरी झंडी दे दी है। वैसे ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इसलिए सरकार ने ये भी क्लीयर कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही उसके अनुसार जरूरी कार्रवाई की जाएगी।





ये फैसला इतनी जल्दी में लिया गया कि अफसरों तक से सलाह मशवहरा करने के बारे में नहीं सोचा गया। मंत्रालयों के सूत्रों की माने तो सीएम ने अफसरों को तलब किया और सख्त हिदायत दी है कि जल्द से जल्द प्रमोशन के मामलों पर अमल होना चाहिए। जिसे देखते हुए ये हैरानी तो होगी ही कि आखिर अचानक सरकार के मातहत काम करने वाले इतने खास कैसे हो गए।





बीजेपी करना चाहती है डैमेज कंट्रोल 





कहते हैं सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आए तो भूला नहीं कहलाता। अब ये तो जनता ही बताएगी कि ये भूला शाम को घर लौट कर आया है या अंधेरा और भी ज्यादा घना हो चुका है। जिसे छांटने के लिए सिर्फ कोरी घोषणा से काम नहीं चलेगा। इस फैसले पर तेजी से अमल हुआ तो शायद बीजेपी डैमेज कंट्रोल में कुछ हद तक कामयाब हो सकती है। अब ये अफसरों की चाल तय करेगी कि वो डैमेज कंट्रोल में कितनी तेजी दिखाते हैं और 2023 से पहले सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने में शिवराज सरकार को कामयाबी दिलवाते हैं।



 



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