GWALIOR : प्रीतम लोधी घटनाक्रम के बाद ग्वालियर चम्बल में बन रहे नए जातीय गठबंधन से बीजेपी में बढ़ रही है चिंता

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Dev Shrimali
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GWALIOR : प्रीतम लोधी घटनाक्रम के बाद ग्वालियर चम्बल में बन रहे नए जातीय गठबंधन से बीजेपी में बढ़ रही है चिंता

GWALIOR. ग्वालियर में बीजेपी नेता  प्रीतम लोधी  द्वारा दिए गए बयान को लेकर इस समय बवाल मचा हुआ है।भले ही बीजेपी ने  ब्राह्मणों पर की गई अभद्र टिप्पणी को लेकर उन्हें  तत्काल लोधी को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया हो और इसके जरिये ब्राह्मणों के गुस्से को कम करने की कोशिश की हो परन्तु इसके  इसके बाद भी अभी   बीजेपी और उसकी सरकार की  मुसीबतें कम होने की जगह बढ़तीं ही जा रहीं हैं। । प्रीतम लोधी के निष्कासन के बाद ग्वालियर -चम्बल अंचल में पिछड़े और दलितों के बीच बन रहे नए जातिगत  गठबंधन से अगले साल होने वाले विधानसभा  चुनावों के मद्देनजर बीजेपी के जातिगत समीकरण गड़बड़ाने लगे हैं। हालात 2018 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले हुए दलित और सवर्ण संघर्ष  जैसी खतरनाक ही होती जा रही है जिसके  चलते बीजेपी को अपनी जमी- जमाई सत्ता गंवाना पड़ी थी।



पंचायत और निकाय चुनावों में दिखा यह गठबंधन



बीते चार रोज  से ग्वालियर - चम्बल अंचल की सियासत में जातिगत घमासान मचा हुआ है । 2018 के विधानसभा ,फिर पिछले साल हुए उप चुनाव और हाल ही में हुए स्थानीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायती राज के चुनावों में दलित और पिछड़ी जातियों के बीच गठजोड़ देखने को मिला था। नतीजतन अनेक स्थानों पर पिछड़ों ने सामान्य सीटों तक पर चुनाव जीत लिया । ग्वालियर जिले को ही देखें तो तो इसमें जिला पंचायत में ज्यादातर सवर्ण सीटों पर पिछड़ों ने जीत हासिल की और एक ही ब्राह्मण जीत सका।  यही हाल ग्वालियर नगर निगम में हुआ। निगम में तीन प्रमुख पदों में एक  भी ब्राह्मण नहीं जीत सका। कांग्रेस की मेयर और बीजेपी के सभापति दोनों ठाकुर है जबकि बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष पद पर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक हरी पाल पिछड़े की ही ताजपोशी हुई। 57 साल बाद ग्वालियर में कांग्रेस के मेयर पद पर डॉ शोभा सिकरवार की जीत के पीछे भी दलित,पिछडा और क्षत्रीय गठबंधन का मुख्य रोल रहा है।



2018 के चुनाव से पहले हुआ था दलित -सवर्ण संघर्ष



अप्रैल 2018 में ग्वालियर में दलितों की एक रैली के हिंसक हो जाने के बाद जातिगत हिंसा भड़क गई थी । इसमे ग्वालियर और भिण्ड में तीन लोगों की हत्या हो गई थी । बाद में सैकड़ों युवाओं के खिलाफ केस दर्ज हुए थे। चुनावो में इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा।  इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में पूरे ग्वालियर चम्बल अंचल से बीजेपी एकदम साफ हो गई थी। हालांकि तब भी अनेक पिछड़ी जातियों ने बीजेपी का साथ दिया था जिसमे लोधी खास थे जो शत -  प्रतिशत बीजेपी के साथ रहे थे। जिसके चलते बुंदेलखंड में बीजेपी ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी लेकिन ताजा प्रीतम लोधी घटनाक्रम के बाद अब यह गठजोड़ और भी शक्तिशाली ढंग से उभरने लगा है। क्योंकि लोधी ही बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।



लोधी दिखा रहे है शक्ति ,दलित दे रहे हैं साथ



लोधी को बीजेपी से निकालने की घोषणा से पहले ही ओबीसी महासभा ने उनके समर्थन में एसपी ऑफिस का घेराव कर और फिर रात को निष्कासन के बाद भोपाल से शताब्दी एक्सप्रेस से ग्वालियर पहुंचे लोधी के स्वागत में स्टेशन पर उमड़ी भीड़ ,उनका वह से सीधे अंबेडकर पार्क जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करना और फिर अनेक पिछड़े संगठनो द्वारा उनके समर्थन में उतरना 2018 से भी ज्यादा खतरनाक जातिगत गठबंधन बनने का संकेत दे रहा है ।

     ऐसा नही कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के ठीक पहले हाथ से फिसलते जातिगत समीकरणों को बिगाड़ने वाली परिस्थितियों का बीजेपी नेताओं  को कोई भान नही है बल्कि उसमें घनी बेचैनी है । बीजेपी ने लोधी के निष्कासन के बाद पिछड़ों को साधने के लिए पूर्व मंत्री नारायण सिंह  कुशवाह की बीजेपी पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष पद पर जिस हड़बड़ी में नियुक्ति की वह बताती है कि उसे न केवल इस नए जातिगत गठबंधन का भान है बल्कि इससे भयभीत भी है।



लोधी - भीम आर्मी मुखिया में भेंट



निष्कासित बीजेपी नेता और भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर रावण से हुई लोधी की गुपचुप मुलाकात और लंबी गुफ्तगू से भी बीजेपी में बेचैनी थी ही कि प्रीतम ने शिवपुरी जिले के पिछोर में बड़ी रैली करके बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास कराया।



पिछोर रैली के मायने



पिछोर सीट पर कांग्रेस के कद्द्वार और अपराजेय नेता केपी सिंह 1993 से अपराजेय बने हुए हैं। बीजेपी दो बार से ग्वालियर में रहने वाले प्रीतम लोधी को ही अपने टिकट पर उनके खिलाफ पिछोर में उतार रही है और पिछले चुनाव में तो उन्होंने कड़ी टक्कर दी थी। इसकी वजह पिछोर क्षेत्र का जातिगत समीकरण है। वहां लोधी वोटों की बहुतायत है और कांग्रेस के भैया साहब लोधी यहाँ से चुनाव जीतकर मंत्री भी रह रहे। इस क्षेत्र में केपी सिंह के सजातीय बुंदेला क्षत्रियों की भी बहुतायत है और इस बाहुबली जाति के मुकाबले लोधी बाहुबली जाति से मुकाबला कराने का जातिगत समीकरण बीजेपी ने साधा था। इस क्षेत्र में  लोधी और दलित जातियों को एक साथ लाने   में प्रीतम सफल हुए थे।  हालाँकि वे चुनाव नहीं जीत सकें लेकिन हार का अंतर भी महज कुछ हजार तक ले आये थे। उन्होंने कल रैली करके और उसमें बड़ा जनसमूह एकत्रित करके बीजेपी को यह दिखाने की कोशिश की है कि यहोने यह ताकत आपकी नहीं खुद की दम  पर खड़ी की और निष्कासन के बाद भी वह उनके साथ है।



एफआईआर लेकिन गिरफ्तारी नहीं



विडियो  वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों द्वारा दिखाए गए गुस्से से घबराकर बीजेपी ने लोधी से किनारा करने के लिए उन्हें आनन -फानन में न केवल पार्टी की प्राथमिकता से निकाला गया बल्कि शिवपुरी,ग्वालियर और मुरैना जिले के विभिन्न थानों में उनके खिलाफ गैर जमानतीय धाराओं में आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किये गए। लेकिन लोधी इनसे डरे बगैर दुस्साहस के साथ शताब्दी एक्सप्रेस से ग्वालियर आये ,वहां उनके स्वागत में उमड़ी भीड़ ने बीजेपी ,वीडी शर्मा और कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ जमकर नारे लगाए।  इसके बाद उनकी भीम आर्मी के चंद्र शेखर रावण से भेंट हुई और फिर पिछोर में उन्होंने रैली के बहाने अपना शक्ति प्रदर्शन किया लेकिन अब बीजेपी इतनी भयभीत हो गयी है कि उनके खिलाफ अपनी गाइडलाइन तय नहीं कर पा रही। लोधी तमाम केस दर्ज होने के बावजूद खुले आम पुलिस की मौजूदगी में घूम रहे है लेकिन वह उन पर हाथ नहीं डाल पा रही है। उलटे उनके समर्थक अब धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग कर रहे है।  उनका आरोप है कि उन्होंने अपने प्रवचनों में खुले आम लोगों को लोधी के खिलाफ उकसाया और खुद भी मसल डालने की धमकी दी।  



उमा भारती के रिश्तेदार हैं प्रीतम



प्रीतम लोधी पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती के न केवल कट्टर  समर्थक बल्कि उनके निकटतम रिश्तेदार भी है। लोधियों में इस कार्यवाही को बीजेपी द्वारा उमा भारती को सबक सिखाने वाली कार्यवाही के रूप में भी प्रचारित किया जा रहा है। इस घटनाक्रम के बाद उमा भारती में फौरी ही प्रतिक्रिया दी कि उनकी पहली गलती थी और माफ़ी भी मांग ली थी इसलिए कार्यवाही नहीं करनी थी।




नारायण सिंह की नियुक्ति




 विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही अज्ञातवास में पड़े पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह की अचानक की गयी नियुक्ति को भी इसी घबराहट और भय से जोड़कर देखा जा रहा है। कुशवाह ग्वालियर दक्षिण विधानसभा  क्षेत्र से पिछला विधानसभा चुनाव महज 121 मतों के मामूली अंतर से हार गए थे। इसके बाद बीजेपी ने उन्हें पूरी तरह से हांसिए पर डाल रखा था। यहाँ तक कि उनके कहने पर पार्षद तक के टिकिट नहीं दिए गए। लेकिन जैसे ही प्रीतम लोधी वाला एपिसोड हुआ, आनन - फानन में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कुशवाह को बीजेपी पिछड़ा वर्ग मोर्चा का अध्यक्ष घोषित कर दिया। यह लोधी  के निष्कासन के बाद पिछड़ों में व्याप्त  गुस्से को रोकने की कोशिश ही की गयी है। लेकिन लोधी के साथ जैसी भीड़ जुट रही है उससे लगता है कि कुशवाह की नियुक्ति का भी असर अभी ज्यादा नहीं हुआ है। अब बीजेपी सूत्र बता रहे हैं कि नारायण सिंह को इसके अलावा सरकारी पद भी देने पर विचार हो रहा है ताकि वे समाज में घूमकर सरकारी स्तर पर भी काम कर सकें। उनको पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोज में अध्यक्ष या सदस्य बनाने पर भी विचार किया जा रहा है


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