GWALIOR News. पूरे प्रदेश में बीजेपी ने नगरीय निकायों में भले ही अधिकांश जगहों पर अपनी जीत परचम फहराया हो लेकिन ग्वालियर में मिला दंश उसे बहुत परेशान करेगा। ग्वालियर नगर निगम में साढ़े पांच दशक के बाद कांग्रेस ने महापौर पद पर अपनी जीत हासिल की है । ग्वालियर को जनसंघ के जमाने से बीजेपी का अभेद्य सियासी दुर्ग माना जाता था जो आज ढह गया।
यहां से कांग्रेस की प्रत्याशी डॉ शोभा सतीश सिकरवार ने शानदार जीत हासिल कर बीजेपी को चौंका दिया। इसके साथ ही बीजेपी का यह गर्वोक्ति भी चूर -चूर हो गई कि ग्वालियर में बीजेपी को कोई नहीं हरा सकता।
कई पीढ़ियों ने नही देखा कांग्रेसी मेयर
ग्वालियर नगर निगम में बीते साढ़े पांच दशक से कांग्रेस ने मेयर पद पर जीत का स्वाद नहीं चखा था। आखिरी बार कांग्रेस का मेयर 1968 में बना था । उस समय मेयर का चुनाव पार्षद किया करते थे और समाज का कोई भी व्यक्ति मेयर चुनाव लड़ सकता था। उसका पार्षद होना भी जरूरी नहीं था । जनसंघ से पहले मेयर बने वरिष्ठ नेता स्व नारायण कृष्ण शेजवलकर। इसके बाद ही राजमाता विजयाराजे सिन्धिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र से टकराव हो गया । राजमाता ने अपने समर्थक विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस छोड़ दी। इसके चलते प्रदेश की कांग्रेस सरकार गिर गई । देश की पहली गैर कांग्रेसी संविद सरकार का गठन हुआ और गोविंद नारायण सिंह सीएम बने। माना जाता है कि राजमाता को जनसंघ में प्रवेश कराने में सबसे बडी भूमिका शेजवलकर की ही रही । इसके बा इमरजेंसी लग जाने के बाद से लगातार ढाई दशक तक नगर निगमो में चुनाव ही नही हुए ।
इसके बाद जब एक बार फिर चुनाव हुए तो श्रीमती अरुणा सैन्या मेयर बनीं । वे बीजेपी से ही थी । इसके बाद सरकार ने निगमों में मेयर सीधे जनता से चुनवाने कानून बनाया । इसके बाद हुए मेयर के पहले चुनाव में ग्वालियर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई । बीजेपी ने इस सीट से मेयर पद के लिए अपने पूर्व विधायक पूरन सिंह पलैया को मैदान में उतारा। उनके खिलाफ कांग्रेस ने माधव राव सिंधिया के खास डॉ हरिश्चन्द्र पिपरिया को मैदान में उतारा लेकिन उनकी करारी हार हुई। अगले चुनाव में मेयर पद सामान्य वर्ग के लिए था। इसमें बीजेपी ने अपने वरिष्ठ नेता विवेक नारायण शेजवलकर को मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने सिंधिया परिवार के खास गोविंद दास अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया लेकिन वे भी हार गए। शेजवलकर ने अग्रवाल को लगभग अस्सी हजार मतों के बड़े से शिकस्त दी।
इसके बाद ग्वालियर मेयर का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हो गया। बीजेपी ने इसके लिए अपनी पूर्व पार्षद श्रीमती समीक्षा गुप्ता को उम्मीदवार बनाया जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर सिंधिया समर्थक अपनी वरिष्ठ नेता श्रीमती उमा सेंगर पर दाँव लगाया। उमा की करारी पराजय हुई और समीक्षा अच्छे अंतर से जीतकर मेयर बनी। इनके बाद यह सीट फिर सामान्य वर्ग के खाते में आई तो बीजेपी ने एक बार फिर अपने पुराने मेयर वरिष्ठ नेता विवेक नारायण शेजवलकर को प्रत्याशी बनाया । वे इस बार पहले से भी ज्यादा लगभग एक लाख मतों भारी अंतर से चुनाव जीते और मेयर बने। इसके बाद बीजेपी ने उन्हें ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वे सवा लाख मतों से सांसद निर्वाचित हुए तो उन्होंने मेयर पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से यहां मेयर का पद खाली पड़ा था। अब जब चुनाव हुआ तो बीजेपी ने यहां से श्रीमती सुमन शर्मा को प्रत्याशी बनाया जबकि कांग्रेस ने अपने विधायक डॉ सतीश सिंह सिकरवार की पत्नी डॉ श्रीमती शोभा सिकरवार को मैदान में उतारा।
तोमर,सिंधिया और वी डी शर्मा ने लगाया जोर
हालांकि बीजेपी शुरू से ही इस सीट को काफी आसान मान रही थी । इस सीट पर न केवल अंचल या प्रदेश बल्कि देश भर के राजनीतिक प्रेक्षकों की भी निगाहें थीं। इसकी बजह थी इसका हाई प्रोफाइल होना। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर के ही है और यहाँ से सांसद भी रह चुके हैं । इसके अलावा कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी में शामिल हुए और प्रदेश में फिर शिवराज सरकार बनवाकर स्वयं केंद्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा की प्रतिष्ठा भी दांव पर थी। उन्होंने ही सुमन शर्मा को टिकट दिलाकर चुनाव संचालन भी अपने खास लोगों को सौंपा था। इस चुनाव में बीजेपी को अपनी हार का अंदेशा था इसलिए बड़े नेताओं ने खूब जोर लगाया कि वे अपने कार्यकर्ताओं की नाराजी और उदासीनता तोड़ सकें । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दो बार ग्वालियर आये । उन्होंने बैठकें,संभाएँ की और रोड शो भी किया। इसी तरह केंद्रीय कॄषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने भी खूब पसीना बहाया। इनके अलावा गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ,ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर , उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह यहीं डेरा डाले रहे ।
कांग्रेस से सिर्फ कमलनाथ
उधर लगभग हारी हुई बाज़ी लड़ रही कांग्रेस के चुनाव प्रचार की कमान प्रत्याशी के पति डॉ सतीश सिकरवार के हाथों में रही। यहां बड़े नेता के रूप में यहां प्रचार करने सिर्फ कमलनाथ ही आये । दिग्विजय सिंह,अरुण यादव,सुरेश पचौरी,डॉ गोविंद सिंह में से कोई नही पहुंचा। नाराज नेताओं को मनाने और कार्यकर्ताओं को पटाने के काम सिर्फ प्रदेश कोषाध्यक्ष अशोक सिंह संभालते रहे और शुरुआत में टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी में थोड़ा घमासान शुरू भी हुआ लेकिन कमलनाथ ने अशोक सिंह को भेजकर डेमेज कंट्रोल भी कर लिया लेकिन बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं के बीच उपजे असंतोष को अंत तक मजाक में ही उड़ाती रही और उन्ही की उदासीनता का परिणाम अंततः कम मतदान और 57 साल बाद बीजेपी के सबसे मजबूत किले के ढहने के रूप में हुई।