GWALIOR. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को अपना जन्मदिन मनाने आदिवासी बहुल श्योपुर जिले में पहुँच रहे है। कुपोषण से जूझते इस जिले को मोदी के स्वागत के लिए दुल्हन की तरह सजाया गया है। लोगों में खासा उत्साह है और ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि स्वतंत्र भारत में पहली बार है जब कोई प्रधानमंत्री इस दूरस्थ अंचल में पधार रहा हो। इस दौरे का सबसे ख़ास आकर्षण है नामीबिया से चीतों काआगमन। देश के वनों से विलुप्त हो गए चीतों की बसाहट करने के लिए कल ही आठ अफ्रीकी चीते नाम्बिया से कूनो नेशनल पार्क में पहुँच रहे हैं जिन्हे पीएम मोदी अपने हाथों में पिंजड़े बाहर निकलकर स्वतंत्र करेंगे। यही वजह है कि स्वागत के लिए जो बोर्ड लगाए गए हैं उनमें मोदी को चीतों के साथ दिखाया गया है। लेकिन अब इस मामले में राजनीति भी शुरू हो गयी है। कूनो नेशनल पार्क बनाने की परिकल्पना से लेकर इसके आसपास बसे आदिवासियों के गांव के विस्थापन तक की कार्यवाही की प्रक्रिया में अहम् किरदार रहे मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक लम्बी चौड़ी चिट्ठी लिखकर नाम्बिया से चीते लाने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया है लेकिन उनसे आग्रह भी किया है कि अब वे गुजरात के सीएम नहीं है देश के पीएम है और अब अपना बड़ा दिल दिखाते हुए गुजरात के गिर से शेर भी यहाँ लाकर बसाएं जिसके लिए कूनो अभयारण्य का निर्माण किया गया था।
पहले महाराजा का शिकारगाह था फिर दिग्विजय सरकार ने शेर बसाने की योजना बनाई
रावत श्योपुर जिले की उसी विधानसभा क्षेत्र से अनेक बार विधायक रहे हैं जिसके क्षेत्र में इस नेशनल पार्क का निर्माण हुआ है। इस पत्र में उन्होंने इसके निर्माण की पूरा घटनाक्रम सिलसिलेवार लिखा है। उन्होंने लिखा है कि राज्य शासन ने 16 जनवरी, 1981 को महाराजा ग्वालियर और पालपुर जागीरदार के शिकारगाह के रूप में विकसित 344.686 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कूनो अभ्यारण्य के रूप में घोषित किया था। यह इलाका श्योपुर जिले की विजयपुर तहसील में आता है । इस अभ्यारण्य में 24 गांव विशेष पिछड़ी अनुसूचित जनजाति के ‘सहरिया‘ आदिवासी निवास करते थे । कुछ अन्य वर्ग भी निवास करता था । इसके बाद वन्य-प्राणी संरक्षण और प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए तत्कालीन कांग्रेस के शासनकाल में दिग्वजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में राज्य शासन ने 8 अप्रैल 2002 को अभ्यारण्य की सीमा से लगे हुए 890.702 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को जोड़कर कुल 1235.388 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में कूनो वन्य प्राणी मण्डल का गठन किया । वर्ष 2006 में इसे वन सरंक्षक वन्य-प्राणी एवं परियोजना संचालक सिंह परियोजना ग्वालियर के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया । वर्ष 2008 में मुख्य वन संरक्षक सिंह परियोजाना, ग्वालियर की पदस्थापना की गई ।
एशियाई शेरों के लिए मुफीद पायी गयी थी यह जगह
कांग्रेस नेता ने लिखा है कि वर्ष 1994 में तंजानिया के सेरेन्जिटी राष्ट्रीय उद्यान में केनाइन डिस्टेम्पर वायरस से लगभग 30 प्रतिशत अफ्रीकी शेरों की मृत्यु हो गई थी। ऐसी विपदा का सामना एकमात्र गुजरात के गिर वन में पाये जाने वाले एशियाई सिंहों को न करना पड़े, केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की पहल पर वन्य-जीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों ने ऐशियाई सिंहों के द्वितीय वैकल्पिक आवास के रूप में देश के समस्त संरक्षित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान एशियाई सिंहों के द्वितीय आवास के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया था । मध्य भारत में सिंहों के अस्तित्व का उल्लेख गजट में भी है। इसके अनुसार वर्ष 1873 में आखिरी सिंह का शिकार गुना और ग्वालियर के बीच में किया गया था। वन्यजीव संस्थान ने एशियाई सिंह की पुनर्स्थापना के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चुना और सिंह परियोजना के नाम से 20 वर्षीय परियोजना भी तैयार की।
शेरों के लिए आदिवासियों को विस्थापन के लिए मनाया
रावत ने लिखा है कि गुजरात के गिर फॉरेस्ट के शेरों के विस्थापन के लिए कूनो वन्य प्राणी अभ्यारण का चयन के पश्चात इसे मूर्त्त रूप देने के लिए 1994 में विस्थापन के लिए प्रयास शुरू कर दिए उस समय दिग्विजय सिंह की सरकार थी । मैं सरकार में राज्य मंत्री के रूप में था । मुझे याद है अब इन गांवों में रहने वाले आदिवासियों के विस्थापन को लेकर तत्कालीन कद्दावर आदिवासी नेता सरकार में मंत्री श्रीमती जमुना देवी ने यह बयान देकर हडकंप मचा दिया कि ‘शेरों को बसाने के लिए 24 गांवों के हजारों आदिवासी परिवारों को बेघर वार किया जा रहा है ।‘ तब मैंने तत्समय मंत्री कांतिलाल भूरिया, प्रताप सिंह बघेल एवं प्रेम साय सिंह के साथ संयुक्त रूप से इन ग्रामों का दौरा किया एवं आदिवासियों को विस्थापन के बदले उचित मुआवजा एवं पुनर्वास का कमिटमेंट कर विस्थापन के लिए तैयार किया था । विस्थापन का कार्य विस्थापित लोगों के लिए सुविधाजनक तरीके से उनकी सहमति अनुसार किया गया । 1998 में विस्थापन का कार्य प्रारंभ कर दिया गया और वन्य प्राणी अभ्यारण्य में बसे हुए 24 गांवों के लगभग 1440 परिवारों का विस्थापन 2003 तक करा दिया गया ।
सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया
गांवों का विस्थापन एशियाटिक लायन लाने की शर्त पर ही किया गया था जो तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात (मोदी )की हठधर्मिता के कारण हमें नहीं मिल पाए । एशियाई सिंहों की पुनर्स्थापना में हो रहे विलंब के कारण नई दिल्ली स्थित अशासकीय संस्था बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन ट्रस्ट ऑफ इण्डिया ने मान. उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका लगाई गई। मान. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 15 अप्रैल, 2013 को निर्णय पारित करते हुए 6 माह में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में सिंहों के पुनर्वास का आदेश दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन में भारत सरकार द्वारा 13 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया, जिसकी 7 बैठकें हो चुकी हैं। माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय एवं आदेशों के बावजूद भी हमें एशियाटिक लायन नहीं दिए गए ।शासन की अधिसूचना द्वारा 14 दिसम्बर, 2018 को अधिसूचना में संशोधन करते हुए कूनो वन्य-प्राणी अभयारण्य को कूनो राष्ट्रीय उद्यान घोषित करते हुए 748.76 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया है।
कूनो गिर लॉयन के लिए हर तरह मुफीद
रावत ने लिखा है कि भारतीय वन्य-जीव संस्थान, देहरादून के बाॅयोजियोग्राफिक वर्गीकरण के अनुसार कूनो राष्ट्रीय उद्यान को जोन 04 सेमीऐरिड तथा बायोटिक प्राॅविन्स फोर बी गुजरात राजपूताना के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है । इस राष्ट्रीय उद्यान में 129 वृक्ष प्रजातियां, 73 शाक एवं झाड़ियां, 33 लताऐं और परजीवी प्रजाति के साथ 35 प्रकार की घास और बांस प्रजातियां पाई जाती है । यहां वन्य-प्राणियों की 35 स्तनपाई, 205 पक्षी, 14 मछली, 33 सरीसृप और 10 उभयचरों की प्रजातियां पाई जाती है । क्षेत्र में प्रमुख शाकाहारी वन्य-प्राणी जैसे चीतल, नीलगाय, सांभर, चिंकारा, चैसिंगा, सुअर, बंदर, लंगूर, खरगोश, मोर, सेही आदि पाए जाते हैं। पार्क में तेंदुए और भालुओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है । मांसाहारी वन्य-प्राणियों में बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्ली,लकड़बग्धा, भालू, सियार, लोमड़ी, भेड़िया, बिज्जू आदि मुख्य हैं । जलीय जीवों में मगर एवं घड़ियाल भी प्रचुर संख्या में कूनो नदी में पाए जाते हैं ।कूनो नेशनल पार्क गिर लायन को बसाने के लिए पूरी तरह मुफीद है । उद्यान में प्रवेश करते ही दीवार पर लिखी यह लाइन ‘आल सेट फार न्यू बिगनिंग‘ पर्यटकों का ध्यान तो आकर्षित करती है, किन्तु गिर से कूनो में सिंहों के ट्रांसलोकेशन पर हो रही देरी और इसमें म.प्र. सरकारी की नाकामयाबी पर सोचने को मजबूर कर देती है । जैसा कि मैंने पूर्व में भी उल्लेख किया है कि विलुप्तप्राय गिर एशियाटिक शेरों को प्रजाति को समाप्त होने से बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने कुछ सिंह मप्र. के कूनो नेशनल पार्क में भी स्थानांतरित करने के निर्देश दिए हैं ,किन्तु म.प्र. सरकार अपनी नाकामयाबी पर पर्दा डालने के लिए अफ्रीकन चीतों को कूनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री हाथों से छोड़ने का ईवेंट रच रही है जो कि श्योपुर एवं म.प्र. जनता के साथ सरासर अन्याय है । क्योंकि बेचारे भोले भाले आदिवासियों एवं इस क्षेत्र की जनता ने एशियाटिक शेरों को उनके क्षेत्र में बसाये जाने के नाम पर विस्थापन का दंश झेला है । रावत ने कहा कि प्रधानमंत्री से अनुरोध भी करूंगा के हमारे 24 गांवों का विस्थापन एशियाटिक लायन लाने के लिए किया गया था न कि अफ्रीकन चीतों के लिए । कूनो नेशनल पार्क में आपके द्वारा गिर फॉरेस्ट से शेरों को न भेजकर पूरे क्षेत्र की जनता ही नहीं मध्य प्रदेश के साथ अंततः भेदभाव ही किया गया है । देश में 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्त वन्यजीव घोषित किया था । मध्यप्रदेश में सन 2010 से चीतों को बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं । 12 साल लंबे इंतजार के बाद हमारे श्योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीकन चीतों को बसाने के लिए प्रधानमंत्री जी नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन 17 सितंबर के अवसर पर पधार कर अफ्रीकन चीतों को छोड़ेंगे।
अपना दिल बड़ा करें मोदी
उन्होंने लिखा है कि इस अवसर पर मैं प्रधानमंत्री का पूरे क्षेत्र की जनता की ओर से स्वागत व अभिनंदन करता हूं । एवं उनके 75वें जन्मदिन के अवसर पर हार्दिक बधाई भी देता हूं।श्योपुर जिले का जनसेवक होने के नाते मैं श्योपुर की जनता की ओर से आपसे विनम्र प्रार्थना करता हूं कि आप देश के प्रधानमंत्री हैं , अब अपना दिल बड़ा करके गिर फॉरेस्ट से एशियाई शेरों को कूनो नेशनल पार्क में भिजवाने की भी कृपा कर मध्य प्रदेश की जनता एवं श्योपुर जिले की जनता के साथ न्याय करेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूं।