RAISEN. नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों ने रायसेन और गैरतगंज में बीजेपी की जीत पर विराम लगा दिया। मिशन-2023 के पहले मिली ये हार बीजेपी में चिंतन के लिए पर्याप्त हो सकती है। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद अब जीत का स्वाद तो चखा है लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि बीजेपी के दांत कांग्रेसियों की मेहनत से खट्टे नहीं हुए बल्कि बीजेपी की ही गुटबाजी और कार्यकर्ता की उदासीनता ने बीजेपी को इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।
गुटबाजी की वजह से हारी बीजेपी
नवम्बर 2020 में जिस सांची विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी को देश में रिकॉर्ड मतों से जीत मिली थी, अब वहां रायसेन नगर पालिका और गैरतगंज नगर परिषद में पिछड़ना पड़ा है। कांग्रेस के सामूहिक जुलूस के सामने अपनी-अपनी जीत का अलग-अलग जुलूस निकालकर भाजपाईयों को तसल्ली करनी पड़ी। बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले रायसेन जिले में बाड़ी, बरेली, उदयपुरा, मंडीदीप, सिलवानी, ओबेदुल्लागंज, बेगमगंज में एकतरफा जीती बीजेपी 18 वार्ड की रायसेन नगर पालिका में 7 सीट जीत पाई है, जबकि कांग्रेस ने 8 सीट जीतकर 3 में से एक निर्दलीय का समर्थन भी पा लिया है। बचे दो निर्दलीय भी बीजेपी की बदली हुई परिस्थितियों में कहां खड़े होंगे इसका अंदाजा खुद बीजेपी नहीं लगा पा रही है। 15 वार्ड की गैरतगंज नगर परिषद में 9 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीतकर इतिहास बनाया है। यहां बीजेपी और कांग्रेस को 3-3 सीट मिली हैं। सांची विधानसभा क्षेत्र की ये दो प्रमुख नपा और परिषद में पिछड़ी बीजेपी की हार का अब तक सबसे प्रमुख कारण गुटबाजी निकलकर सामने आया है।
बीजेपी की सविता को छोड़कर अध्यक्ष के सब दावेदार हारे
रायसेन नगर पालिका अध्यक्ष की सीट पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित है। ऐसे में बीजेपी के कई नेताओं की नजर इस पर थी। 4 वार्डों से संभावित अध्यक्ष के दावेदार मैदान में थे सबसे अहम बात ये रही कि एक-दूसरे को निपटाने और अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के फेर में इनमें 3 वार्ड बीजेपी हार गई। इन हारे हुए तीन वार्डों में 2 पर कांग्रेस एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। वार्ड-13 से पूर्व नपाध्यक्ष जमना सेन की पत्नी सविता सेन हार की तमाम अटकलों के बीच 190 मतों से जीतकर आई हैं। अगर परिषद बनाने की कोई स्थिति बीजेपी में बनती है तो फिलहाल अध्यक्ष पद के लिए सविता ही एकमात्र उम्मीदवार बची हैं। सूत्र बताते हैं कि ऐसी किसी संभावना होने पर बीजेपी से एक नाम चौंकाने वाला सामने आ सकता है।
स्वास्थ्य मंत्री के वार्ड में निर्दलीय को मिली जीत, वार्ड-4 में हराने में खूब लगी ताकत
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का निवास वार्ड-15 अर्जुन नगर में है। यहां बीजेपी उम्मीदवार को 182 मतों से हराकर निर्दलीय यशवंती बघेल चुनाव जीती हैं। बघेल के पति भीम बघेल इसी वार्ड से बीजेपी के पार्षद रह चुके हैं। उन्होंने बागी होकर पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा था। वार्ड-4 में महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष वर्षा लोधी कांग्रेस के दीपक थोराट से चुनाव हार गई। बीजेपी से ही बागी विशाल कुशवाह निर्दलीय चुनाव मैदान में थे जो वर्षा लोधी की हार का कारण बने। यहां बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी क्योंकि टिकट उनकी पसंद पर हुआ था। ऐसे में एक पूर्व मंत्री और एक मंत्री की अलग-अलग टीमों ने अध्यक्ष पद की इस सम्भावित उम्मीदवार की जीत को पर्चा दाखिल वाले दिन ही खतरे में डाल दिया था।
मुस्लिम वोट को साधते रहे पंड्या-चौरसिया, हिन्दू वोट परमार को जमकर मिले
वार्ड-9 के मुकाबले को शुरुआत से ही बहुत रोचक माना जा रहा था। यहां कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं थी। बीजेपी से स्वास्थ्य मंत्री के बेहद करीबी दीपक पंड्या की पत्नि नीति पंड्या प्रत्याशी थी जबकि बीजेपी के मंडल अध्यक्ष रहे अनिल चौरसिया की बहू श्रद्धा चौरसिया निर्दलीय उम्मीदवार थीं। हिंदूवादी छवि के नेता राहुल परमार की पत्नी योगिता परमार यहां दूसरी निर्दलीय उम्मीदवार थीं। बताते हैं कि पंड्या और चौरसिया वार्ड के अल्पसंख्यक वोटों (वार्ड में अधिक हैं) को साधने में लगे रहे, वहीं परमार की हिंदूवादी छवि के कारण उन्हें एकतरफा समर्थन मिला और योगिता ने नीति पंड्या को 289 मतों से चुनाव हरा दिया। सूत्र बताते हैं कि ये वार्ड स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी की प्राथमिकता में शामिल था। 2014 के नपा चुनाव में पूर्व मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने भी इस वार्ड में हुए त्रिकोणीय मुकाबले में निर्दलीय प्रत्याशी की दमदारी के चलते इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।
वार्ड-5 से किरण सोनी की जीत, अध्यक्ष की दावेदार
वार्ड-5 से कांग्रेस प्रत्याशी किरण सोनी ने 105 मतों से जीत हासिल की है। वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर सोनी की पत्नी किरण एकतरफा चुनाव जीतकर अब कांग्रेस से अध्यक्ष होड़ के लिए ओबीसी की एकमात्र सशक्त दावेदार हैं। वार्ड-14 से प्रियंका सेन की अप्रत्याशित हार के बाद अब किरण सोनी एकमात्र विकल्प है। कांग्रेस के 8, बीजेपी के 7 और निर्दलीय 3 उम्मीदवार चुनाव जीते हैं। ऐसे में कांग्रेस परिषद बनाने की मजबूत स्थिति में है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी भी हर हाल में अपना अध्यक्ष यहां बनाना चाहती है जबकि कांग्रेस कोई मौका छोड़ने के मूड में नहीं है। सूत्र तो ये भी बता रहे हैं कि फिलहाल अध्यक्ष के पद की चाबी रामवन परिसर से निकलकर बारला हाउस पहुंच गई है। सत्ता के इन दोनों केंद्र बिंदुओं से परे अध्यक्ष के मामले में बादशाह की मुख्य भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।