Bhopal. एक लोकोत्ति है...रक्षक ही बने भक्षक...यह उन एजेंसियों पर बिल्कुल सटीक बैठती है जिनके उपर बड़े तालाब यानी रामसर साइट के संरक्षण की जिम्मेदारी थी। रामसर साइट और वैटलैंड के संरक्षण और संवर्धन के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में वैटलैंड रूल्स बनाए। इसके साथ ही मध्यप्रदेश में एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन कोऑर्डिनेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी एप्को को वैटलैंड के संरक्षण की जिम्मेदारी देते हुए वैटलैंड अथॉरिटी के रूप में तमाम जिम्मेदारियां दे दी गई। पर वैटलैंड अथॉरिटी यानी एप्को ने ऐसा काम कर दिया जो विश्व में कोई दूसरी एजेंसी करने का सोच भी नहीं सकती। मध्यप्रदेश की वैटलैंड अथॉरिटी ने बड़े तालाब के संबंध में सरकारी दस्तावेज से कैचमेंट एरिया शब्द ही हटा दिया, जबकि दुनिया में ऐसी कोई वॉटरबॉडी होती ही नहीं है, जिसका कोई कैचमेंट एरिया न हो। यह क्यों और कैसे किया गया... यह तो हम आपको आगे बताएंगे ही, लेकिन जानकार बताते हैं कि कैचमेंट शब्द को हटाया ही इसलिए गया ताकि बैरागढ़, सूरजनगर और खानूगांव में हुए अवैध निर्माण और अतिक्रमण वैध हो जाए...क्योंकि यही वहे इलाके में जहां मध्यप्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी, नेता से लेकर रसूखदारों तक ने या तो अतिक्रमण किया है या फिर अवैध निर्माण।
पहले कैचमेंट और उसके महत्व को समझिए
कैचमेंट वह जलग्रहण क्षेत्र होता है जिसमें बारिश के समय बरसने वाला पानी नदी—नालों के माध्यम से उस वॉटर बॉडी तक पहुंचता है। जाहिर सी बात है...यह उस वॉटर बॉडी के लिए कभी कम तो हो ही नहीं सकता। यानी बड़ा तालाब में आज हम जो पानी देख रहे हैं यह कैचमेंट में हुई बारिश के समय वहां के नदी नालों से होता हुआ बड़े तालाब तक पहुंचा। कैचमेंट में निर्माण को लेकर सख्ती ही इसलिए की जाती है ताकि बारिश के समय वॉटर बॉडी तक पानी जाने में कोई रूकावट न आए।
कैचमेंट खत्म यानी 26 गांव में करो धड़ल्ले से निर्माण
बड़े तालाब का जल भराव क्षेत्र 31 वर्ग किलोमीटर है। सरकारी दस्तावेजों में खत्म करने से पहले तक बड़े तालाब का कैचमेंट एरिया 26 गांव तक फैला था यानी करीब 361 वर्ग किलोमीटर। इन्हीं 26 गांव के आसपास के इलाके से बारिश के समय पानी बड़े तालाब तक पहुंचता है। कैचमेंट खत्म होने का सीधा अर्थ आप इस तरह से समझ सकते हैं कि नीलबड़—रातीबड़ तक का एरिया फ्री होल्ड हो गया। सब कुछ वैध हो जाएगा। न कोई ग्रीन बेल्ट, न कोई बॉटनीकल ग्राडन और न ही कोई लो डेंसिटी एरिया जैसी निर्माण संबंधी बंदिशे। कैचमेंट पर निर्माण की खुली छूट का अर्थ यह भी है कि आने वाले समय में बड़े तालाब में पानी नहीं पहुंचेगा, जिससे जलस्तर घटता चला जाएगा।
वैटलैंड अथॉरिटी ने ऐसे खेला पूरा खेल
पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष पांडे ने बताया कि वैटलैंड के संरक्षण और संवर्धन के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में जो वैटलैंड रूल्स बनाए थे, उन्हें वर्ष 2017 में रिवाइस किया गया। नियम के मुताबिक नए संसोधन के लिए मिनिस्ट्री आफ इंवारमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेंट चेंज यानी एफओईएफ में पहले अथारिटी को रजिस्ट्रेशन कराना था, ताकि कोई भी संसोधन से पहले पब्लिक हीयरिंग कर सभी पक्षों पर गौर कर सके, मध्यप्रदेश वैटलैंड अथारिटी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि इसमें आपत्तियों की भरमार आने की आशंका थी। वैटलैंड अथॉरिटी ने राज्य शासन के उच्चाधिकारियों के साथ मिलकर अलग से ही आदेश निकाल दिया। जिसमें कैचमेंट शब्द खत्म कर जेडओआई यानी जॉन ऑफ इंफ्लूऐंस शब्द लाया गया। जिसके अनुसार शहरी क्षेत्र में 50 मीटर और ग्रामीण क्षेत्र में 250 मीटर को आरक्षित किया गया। मतलब इस एरिए को छोड़कर बाकि बंदिशे खत्म जैसी ही मानी जाए।
बड़े तालाब में एसटीपी बनाने की विशेष अनुमति
नगर निगम का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बड़े तालाब के अंदर बनाया जा रहा था। इस पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आपत्ति भी ली थी। वैटलैंड अथॉरिटी ने नए नियम में इसके लिए विशेष अनुमति दे दी। मतलब बड़े तालाब के अंदर एसटीपी बनाया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि एसटीपी से निकलने वाले पानी को बड़े तालाब में मिलाया जाएगा, जिसका पानी आप और हम पीते हैं। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे के अनुसार ऐसी वॉटर बॉडी के पानी को दूषित करना जिसका पानी लोग पीने के लिए उपयोग करते हैं...अनैतिक के साथ—साथ गैरकानूनी भी है।
जिम्मेदार का गैर जिम्मेदाराना रवैया, कहा— पीएस से अनुमति लेकर आओ
बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में दो दर्जन से अधिक अवैध शादी हाल संचालित हो रहे हैं। लोगों ने अतिक्रमण कर यहां पक्के गोदाम और फार्म हाउस बना लिए हैं। इससे बड़े तालाब का तकरीबन 26 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र खाली हो चुका है। यह हालात तब है जब बड़े तालाब का कैचमेंट 26 गांव तक फैला था। अब तो कैचमेंट को ही खत्म किया जा रहा है, इससे यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं यदि ऐसा होता है तो बड़ा तालाब कब तक अपना अस्तित्व बचा पाएगा। जब इस संबंध में भोज वैटलैंड अथॉरिटी के प्रभारी लोकेंद्र ठक्कर से बता की तो उन्होंने बात करने से ही मना कर दिया और इसके लिए पहले प्रमुख सचिव से अनुमति लेकर आने की बात कही। जाहिर सी बात है जब कुछ बताने को है ही नहीं तो बड़े तालाब को बर्बाद करने वाले जिम्मेदार आखिर बताएंगे भी क्या!