जबलपुर में लगातार हो रही स्टेट कैंसर अस्पताल के निर्माण में देरी, लालफीताशाही की जीती जागती मिसाल बना अस्पताल

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर में लगातार हो रही स्टेट कैंसर अस्पताल के निर्माण में देरी, लालफीताशाही की जीती जागती मिसाल बना अस्पताल

Jabalpur. कैंसर के मरीज इलाज के लिए तड़प रहे हैं।उनको सिंकाई नहीं हो पा रही है,उन्हें पांच से छह माह बाद का समय सिंकाई के लिए दिया जा रहा है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि जबलपुर में सात साल से बन  रहे स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट का निमार्ण अभी तक पूरा नहीं हुआ है। जबकि इसे 2018-19 में पूर्ण हो जाना था। चार वर्ष अतिरिक्त समय हो गया। समय से पूरा हो जाता तो लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन आ जाने से मरीजों को रेडियेशन से सिंकाई समय पर संभव हो पाती।



जुलाई में द सूत्र से ये कहा




 जुलाई माह में द सूत्र ने इसके निमार्ण की पूर्णता के बारे में जब मेडिकल कॉलेज की प्रभारी डीन डॉ गीता गुईन से बात की थी तो उन्होंने एक से डेढ़ माह में इसे शुरू होने की बात कही थी। यानी कि अगस्त में इसे शुरू हो जाना चाहिए था लेकिन अगस्त बीत गया  इसके बाद जब द सूत्र ने आज फिर प्रभारी डीन से पुनः इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि अगले 15 दिन में यह मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द हो जाएगा फिर इसे शुरू किया जाएगा।वहीं कमिश्नर बी चंद्रशेखर का कहना है कि अभी एक से दो माह लग सकते हैं। यानी दो अधिकारी अलग अलग समय बता रहे हैं।




कांट्रेक्टर ने डिले किया




कमिश्नर बी चंद्रशेखर का कहना है कि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट भवन निर्माण पीआईयू (प्रोजेक्ट इम्लीमेंटेशन यूनिट) के द्वारा किया जा रहा है। कांट्रेक्टर ने इसमें डिले किया। उस पर पैनाल्टी  लगाई गई है और आवश्यक कार्रवाई विभाग के द्वारा की गई है। जो निर्माण कार्य चल रहा है उसका इंस्पेक्शन शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज जबलपुर के सिविल विभाग के इंजीनियरों से कराया था। इसमें कुछ कमियां पाई गईं। जोकि एक से दो माह में पूरी हो जाएंगी।




भोपाल बात कीजिए




पीआईयू के एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर आरके अहिरवार का कहना है कि वे इस बारे में कुछ नहीं कह सकते आप भोपाल बात कीजिए।




6 माह का इंतजार सिंकाई के लिए




 मेडिकल अस्पताल परिसर में चल रहे उज्जम्बा कैंसर अस्पताल में कैंसर के मरीजों को सिंकाई कराने छह महीने का इंतजार करना पड़ रहा है। मरीजों का कहना है कि वे कैसे पांच से छह माह तक सिंकाई कराने इंतजार करें। प्राईवेट अस्पतालों में सिंकाई कराने लाखों रुपए खर्च होते हैं। गरीब मरीज इतना खर्च कैसे उठा पाएगा।




रेडियेशन में लाखों का खर्च




कैंसर विशेषज्ञ व प्रोफेसर डॉ श्यामजी रावत का कहना है कि निजी अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेरेटर से रेडियेशन थैरेपी का  एवरेज खर्च एक मरीज को एक से दो लाख रुपए तक पड़ता है। यह रेडियेशन की तकनीक पर डिपेंड करता है कि उसे किस तकनीक से रेडियेशन थैरेपी दी जा रही है। 




चार तरह की रेडियेशन थैरेपी देने की तकनीक होती हैं




- थ्री डी सी आर टी 

- आई एम आर टी

- आई सी आर टी

- रेपिड आर्क 

आयुष्मान कार्ड में एक लाख रुपए तक अप्रूव है। मध्य प्रदेश में अभी किसी मेडिकल अस्पताल में लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन की सुविधा नहीं है। जब मशीन लगाई जाएगी उसके बाद सरकार फीस निर्धारित करेगी।



स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण की फैक्ट फाइल




कैंसर का इलाज करने केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से जबलपुर के मेडिकल अस्पताल परिसर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट शुरू होना है। इसका निर्माण वर्ष 2015 -16 से शुरू किया गया। 135 करोड़ का फंड इसके लिए स्वीकृत हुआ है।जिसमें 70 करोड़ की राशि सिविल वर्क के लिए राज्य सरकार को देना था और शेष राशि से मशीन व उपकरण खरीदे जाने हैं, जोकि केंद्र सरकार को देना है।  इसमें केंद्र सरकार ने 60 प्रतिशत व 40 प्रतिशत राज्य सरकार ने राशि दी है। 




अब तक शुरू क्यों नहीं




1, इस प्रोजेक्ट  को वर्ष 2018-19 में पूरा हो जाना था। लेकिन काम धीमी गति से चला।

2, सिविल वर्क करने वाली संस्था पीआईयू ने सिविल वर्क का एस्टीमेट बढ़ाया। जिससे बजट पास होने में समय लगा।एक बार कांग्रेस की अल्प समय रही सरकार ने वर्ष 2018-19 में 15 करोड़ का फंड स्वीकृत किया।इसके बाद बीजेपी सरकार ने 10 करोड़ की राशि का बजट में प्रावधान किया। जब तक बजट नहीं आया,काम रुका रहा।

3, कोरोनाकाल में काम रुका रहा।

4, फायर प्रूफ फाल्स सीलिंग पीआईयु को लगाने थे लेकिन नहीं लगाए,जब तत्कालीन प्रभारी डीन डॉ नवनीत सक्सेना ने इंस्पेक्शन करके इस ओर ध्यान दिलाया तो इसे लगाया गया,जिसमें अतिरिक्त समय लगा। जबकि यह काम पहले ही होना था।

5, शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के सिविल विभाग के इंजीनियरों ने इसके निर्माण कार्य का इंस्पेक्शन किया।जिसमें निर्माण कार्य में कई कमियां पाई गईं। इनको दूर किया जा रहा है।



 पीआईयू के सब इंजीनियर आर एस रघुवंशी ने भी  31जुलाई तक मेडिकल प्रशासन के हैंडओवर किए जाने की बात कही थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

 

अभी ये भी होना है




स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द होने के बाद भी कैंसर मरीजों के लिए क्या उपयोगी साबित होगा। यहां स्टाफ की भर्ती की जाना है। इसकी लंबी प्रक्रिया चलेगी। इसके अलावा बहुत ही आवाश्यक मशीन,, दो लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन को यहां लगाया जाना है। जिसमें भी वक्त लगेगा। हालांकि प्रभारी डीन डॉ गीता गुईन का कहना है कि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट मेडिकल के हैंडओवर होते ही यहां मरीजों का इलाज शुरू कर दिया जाएगा। 



यह सवाल उठना लाजिमी




1, समय अवधि में यह प्रोजेक्ट पूरा हो इसके लिए भोपाल से क्या मॉनिटरिंग की गई।

2, चिकित्सा शिक्षा मंत्री वा प्रमुख सचिव स्वास्थ्य ने लेट हो रहे इस प्रोजेक्ट पर क्या संज्ञान लिया है?




ये हैं हालात




मेडिकल परिसर में उजम्बा कैंसर अस्पताल है,जोकि सरकारी है और मेडिकल कॉलेज का ही एक भाग है।यहां पूरे महाकोशल और विंध्य से कैंसर का इलाज कराने मरीज आते हैं। इसका कारण यह है कि सागर, शहडोल, छिंदवाड़ा में मेडिकल कॉलेज एवम अस्पताल में कैंसर के उपचार की सुविधा नहीं है। वहीं रीवा का मेडिकल अस्पताल केवल एक कैंसर विशेषज्ञ के भरोसे चल रहा है इसलिए वहां से भी केस जबलपुर रेफर किए जा रहे हैं। जबलपुर के कैंसर अस्पताल में रोज करीब 150 से 200 मरीज कैंसर का इलाज कराने आते हैं। इनमें से 100 से अधिक मरीजों को रोज रेडियेशन दिया जाता है और 50 से 60 मरीजों की कीमोथेरेपी चलती है। यहां हर वर्ष 2500 नए मरीज आते हैं।



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ये है रेडियेशन देने की व्यवस्था




मेडिकल में वर्ष 2021 तक दो कोबाल्ट मशीनें थीं जिनसे मरीजों को रेडियेशन से  सिंकाई की जाती थी। लेकिन एक कोबाल्ट में फाल्ट आने के बाद वह बंद है यहां केवल एक कोबाल्ट मशीन से सिंकाई की जा रही है। एक ही मशीन से रेडियेशन देने के कारण यहां सिंकाई के लिए मरीजों की प्रतीक्षा सूची लंबी हो रही है। अब मरीजों को जनवरी 2023 की तारीख दी जा रही है। निजी अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेटर मशीन से सिंकाई करवाने में पूरी थैरेपी में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं।



क्यों जरूरत लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन की




लीनियर एक्सीलेरेटर आधुनिक मशीन है। यह मशीन प्रदेश के किसी सरकारी अस्पताल में नहीं है। जबकि प्रदेश में 13 सरकारी मेडिकल अस्पताल हैं। इनमें से केवल जबलपुर,भोपाल, इंदौर,ग्वालियर,रीवा इन चार अस्पतालों में कैंसर का इलाज होता है। यहां भी लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन नहीं है। कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ श्यामजी रावत का कहना है कि लीनियर एक्सीलेरेटर से रेडियेशन देते समय मरीज की नार्मल कोशिकाओं पर असर नहीं पड़ता जबकि कोबाल्ट मशीन से मरीज की नार्मल कोशिकाओं पर भी असर पड़ता है और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसलिए लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन उपयोगी है।



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Jabalpur STATE CANCER HOSPITAL delay in construction of State Cancer Hospital in Jabalpur जबलपुर में लगातार हो रही स्टेट कैंसर अस्पताल के निर्माण में देरी लालफीताशाही की जीती जागती मिसाल बना अस्पताल