Bhopal.
प्रदेश के मूंग उत्पादक किसानों को अब चिंता सताने लगी है। बीते 3 सालों से प्रदेश में मूंग की एमएसपी रेट पर सरकारी खरीदी हो रही थी, पर इस बार खरीदी छोड़िए अब तक किसानों के पंजीयन तक शुरू नहीं हुए हैं। दरअलस निर्धारित लक्ष्य से अधिक खरीदी करने पर प्रदेश सरकार को पिछले साल करोड़ों रूपए प्रदेश के खजाने से देने पड़े थे। जिसके कारण इस बार प्रदेश सरकार ने निर्धारित लक्ष्य से ही अधिक खरीदी का प्रस्ताव बनाकर केंद्र को भेज दिया, जिसके कारण मामला अटक गया है। एमएसपी में मूंग खरीदी का पूरा पैसा केंद्र सरकार से मिलता है, ऐसे में जब तक केंद्र की स्वीकृति नहीं होगी तब तक प्रदेश में मूंग खरीदी की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो पाएगी। वहीं केंद्र निर्धारित लक्ष्य से अधिक खरीदी करने पर अब तक फैसला नहीं कर पाया है। इधर मध्यप्रदेश में मूंग की फसल पूरी तरह से कट चुकी हैं, ऐसे में किसानों को डर है कि यदि एमएसपी पर मूंग की खरीदी नहीं हुई तो उन्हें मजबूरन बाजार में कम भाव में अपनी उपज बेचनी होगी, जिससे उन्हें बड़ा नुकसान होगा।
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प्रदेश सरकार के खजाने को लगी थी 107 करोड़ की चपत
पिछले साल केंद्र ने 1 लाख 39 हजार टन मूंग खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 2 लाख 47 हजार टन कर दिया गया था। खरीदी इससे अधिक 4 लाख टन की हुई थी, लेकिन केंद्र से प्रदेश को राशि सिर्फ 2 लाख 47 हजार टन की ही मिली थी। 2021 में मूंग का समर्थन मूल्य 7196 रूपए था, इस हिसाब से प्रदेश सरकार को करीब 1.5 लाख टन मूंग की अतिरिक्त खरीदी करने पर प्रदेश के खजाने से किसानों को 107 करोड़ से अधिक की राशि देना पड़ी थी।
केंद्र ने 2.25 लाख टन खरीदी का दिया था लक्ष्य
केंद्र सरकार ने प्राइस सपोर्ट स्कीम के अंतर्गत मध्यप्रदेश के लिए 2 लाख 25 हजार टन मूंग खरीदने का लक्ष्य दिया था। प्रदेश सरकार को अपने खजाने से एक दाने की भी कीमत नहीं चुकानी पड़े इसलिए पिछले साल हुई खरीदी को देखते हुए केंद्र को 4 लाख टन मूंग खरीदी का प्रस्ताव भेजा दिया, जिसकी स्वीकृति अब तक नहीं मिली है। किसान नेता लक्ष्मीनारायण पटेल का कहना है कि सरकार को किसानों की चिंता नहीं है। किसानों के पास मूंग को स्टोरेज करने की जगह और व्यवस्था नहीं है। वैसे भी किसानों को आने वाली फसल की तैयारी के लिए पैसा चाहिए, ऐसे में मूंग का उपार्जन शुरू नहीं होने से किसानों को औने पौने दामों पर बाजार में अपनी उपज बेचना पड़ रहा है।
भण्डारण अधिक हुआ तो मध्यान्ह भोजन के लिए दी मूंग
प्रदेश में बीते 3 सालों में मूंग की खरीदी होने और उस अनुपात में खपत नहीं होने से उसका भण्डारण बढ़ गया। जिसके बाद पिछले साल प्रदेश सरकार ने 9 लाख टन मूंग जो करीब 700 करोड़ रुपए की होती है, मध्यान्ह भोजन में विद्यार्थियों को दी। दरअसल केंद्र सरकार किसानों से जो उपज खरीदती है, उसे पीडीएस दुकानों के माध्यम से कम दर पर गरीब जनता या मध्यान्ह भोजन के लिए दे दिया जाता है। इस खपत के आंकलन के आधार पर ही खरीदी का लक्ष्य निर्धारित होता है।
एमएसपी पर मूंग खरीदी नहीं होने से किसानों को नुकसान
अभी बाजार में मूंग प्रति क्विंटल 5 से 6 हजार रुपए के आसपास की दर पर ही बिक रही है। इधर मूंग का समर्थन मूल्य 7275 रुपये प्रति क्विंटल है। इस तरह किसानों को 1275 से 2275 रुपए प्रति क्विंटल का घाटा हो रहा है। सरकार वैसे भी किसानों से पूरी मूंग की खरीदी नहीं करती है। मध्यप्रदेश में मूंग का उत्पादन खरीदी से कहीं अधिक है। प्रदेश में मूंग का उत्पादन 13 से 16 लाख मैट्रिक टन है। ऐसे में किसान की प्राथमिकता यही रहती है कि जितनी उपज सरकारी खरीदी में बिक जाएगी उतना उसे घाटा कम होगा।
1 लाख हेक्टेयर के रकबे वाले पंजाब में शुरू हो चुकी है खरीदी
पंजाब में मूंग की एमएसपी पर खरीदी 12 जून से शुरू हो चुकी है, जबकि यहां ग्रीष्मकालीन मूंग का रकबा मात्र 1 लाख हेक्टेयर है, जबकि मध्यप्रदेश में मूंग का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रीष्मकालीन तीसरी फसल के रूप में अधिकांश जगहों पर केवल मूंग ही उगाई जा रही है। इस वर्ष एमपी के किसानों ने 9 लाख हेक्टेयर में मूंग की फसल ली। होशंगाबाद, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर और रायसेन जिलों में ही 5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में मूंग की फसल ली गई है। अब तक इसका उपार्जन समर्थन मूल्य पर नहीं होने से इन पांचों जिलों के किसानों का खासा नुकसान हो रहा है।