Bhopal. कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को बीजेपी ने 17 साल पहले मिस्टर बंटाधार का नाम दे दिया था। ये नाम मध्यप्रदेश बंटाधार करने के दावे के साथ बीजेपी ने दिया। हालांकि इस बीच दिग्विजय सिंह किसी भी पद से दूर रहे लेकिन पार्टी के लिए पूरी निष्ठा से काम करते रहे। कई मौके तो ऐसे आए जब दिग्विजय सिंह मुश्किल वक्त में पार्टी के संकट मोचक बने। लेकिन वर्तमान हालातों को देखकर कहा जा सकता है कि किसी जमाने में डैमेज कंट्रोल के लिए पहचाने जाने वाले दिग्विजय सिंह अब खुद पार्टी के लिए डैमेज बनते नजर आ रहे हैं। खासतौर से बीते दो सालों में, जब से कांग्रेस के हाथ से मध्यप्रदेश की सत्ता फिसली है। उसके बाद से दिग्विजय सिंह की बयानबाजी पार्टी पर भारी पड़ने लगी है। अभी कांग्रेस खरगोन मामले से मिली चोट से उभरी भी नहीं है कि दिग्विजय सिंह ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर सवाल पूछ डाले हैं।
सॉफ्ट हिंदुतत्व से दिग्विजय की दूरी
ये हाल तब है जब कमलनाथ बार-बार दिग्विजय सिंह को ये ताकीद कर चुके हैं कि वो पार्टी की सॉफ्ट हिंदुतत्व की छवि के आड़े न आएं। उसके बावजूद दिग्विजय सिंह आरएसएस से उलझने का कोई मौका नहीं छोड़ते। हाल में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अखंड भारत पर बयान दिया। उस बयान पर सबसे पहले सवाल उठाने का काम कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह ने ही किया। ट्वीट के जरिए उन्होंने भागवत से पूछ डाला ऐसा कब तक और कैसे होगा।
खरगोन दंगों पर बयावबाजी
ये बयान तब आया जब कांग्रेस और कमलनाथ दोनों खरगोन वाले मामले के बाद डैमेज कंट्रोल करने में जुटे थे। खरगोन मामले में दिग्विजय सिंह ने जल्दबाजी दिखाते हुए मस्जिद की फोटो ट्वीट की। मस्जिद पर कुछ भगवाधारी झंडा फहरा रहे थे। इधर दिग्विजय सिंह का ट्वीट हुआ, उधर से बीजेपी ने एक बार फिर अपना पूरा तरकश दिग्विजय सिंह पर खाली कर दिया। एक के बाद एक उन पर बयानी तीर चलाए जाते रहे। एफआईआर भी दर्ज हुई। दिग्विजय सिंह जो नजरअंदाज कर गए वो ये बात थी कि वो मस्जिद एमपी का था ही नहीं। सो दिग्विजय सिंह को घिरना ही था। बात सिर्फ बयानबाजियों तक नहीं रही। दिग्विजय सिंह के खिलाफ शिकायतें भी दर्ज हुईं। इसके बावजूद दिग्विजय सिंह के तेवर नहीं बदले। इसके बाद दिग्विजय सिंह के खिलाफ एकाएक पूरी बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया। बात दिग्विजय सिंह से आगे बढ़ते हुए कांग्रेस पार्टी तक आने लगी। मामला शांत करने के लिए और कांग्रेस को एंटी हिंदूतत्व छवि से बचाने के लिए फिर कमलनाथ को आगे आना पड़ा।
कमलनाथ ने हनुमान जयंती के जरिए स्थितियां संभाली
पहले तो कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह के बयान से कन्नी काटी। लेकिन पार्टी के जिम्मेदार पद पर बैठे कमलनाथ के लिए बयानों से किनारा करना आसान भी नहीं था। पार्टी की सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि संभालने के लिए असली संकटमोटक हनुमानजी की याद आई। हनुमान जयंती पर कमलनाथ हर बार बड़ा आयोजन करते हैं। इस बार भी सोशल मीडिया पर उसी का सहारा लिया गया। इधर कमलनाथ हनुमान जयंती पर संकट मोचक की पूजा कर रहे थे। उधर दिग्विजय सिंह ने फिर आरएसएस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सवाल ये है कि कमलनाथ कब तक दिग्विजय सिंह के आरएसएस और हिंदुत्व पर हमले के बीच पार्टी की छवि को संभालते रहेंगे। ये पहला मौका नहीं है, जब दिग्विजय सिंह बिना सोचे समझे बयारों की बंदूक चलाई हो। उनके बयानों की लंबी फेहरिस्त है। जिसने कई बार उन्हें और पार्टी दोनों को विवादों में उलझा दिया।
जब मोदी पर दिया विवादित बयान
बात हिंदुत्व की हो, मोदी की हो या सावरकर की। दिग्विजय सिंह के बोल हमेशा विवाद खड़े करते रहे हैं। पिछले दिनों भोपाल में हुए एक कार्यक्रम में दिग्गी राजा मोदी के लिए कुछ यूं कह गए- मोदी से सिर्फ 40 साल से ज्यादा की महिलाएं ही प्रभावित हैं। जींस पहनने वाली लड़कियां मोदी से प्रभावित नहीं हैं। इस बयान के बाद भी बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को सुधर जाने की सलाह दी थी। उससे पहले भी दिग्विजय सिंह ने कई विवादित बयान दिए। जिस पर अक्सर पार्टी को भी कन्नी काटनी पड़ी।
दिग्गी के विवादित बोल
- सावरकर ने अपनी किताब में लिखा है कि हिंदू धर्म का हिदुत्व के साथ कोई संबंध नहीं है। गाय ऐसा पशु है, जो खुद के मल में लोट लेता है। वो कहां से हमारी माता हो सकती है। उसके गोमांस खाने में कोई खराबी नहीं है।
राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु रहे दिग्विजय सिंह
ऐसा नहीं है कि अपने पार्टी दिग्विजय सिंह अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरों की आलोचना के शिकार हुए। कई बार उनकी पार्टी ने भी उनके बयानों पर उन्हें फटकार लगाई है। दिग्विजय सिंह का कांग्रेस में वो रूतबा रहा है कि एक समय उन्हें राहुल गांधी का राजनीतिक गुरू तक कहा जाने लगा था। लेकिन बाद में इन्हीं दिग्विजय सिंह की संगत को पार्टी के ही आला नेताओं ने कोटरी का नाम दे दिया। कुछ नेताओं ने तो सलाह भी दी कि कांग्रेस को बचाना है तो राहुल गांधी को कोटरी से बाहर निकलना होगा। यूं लगता है कि राहुल गांधी तो उस कोटरी से निकल अपना राजनीतिक गुरू बदल चुके हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह सियासत की उस पुरानी कोटरी से निकल कर नई राजनीति समझ नहीं पाए हैं। या फिर बीजेपी और आरएसएस से उलझ कर सुर्खियों में बने रहना उनका एक सियासी स्टंट ही है।