Bhopal. हमारे साप्ताहिक कार्यक्रम साहित्य सूत्र में हम आपसे किसी खास किताब पर चर्चा करते हैं। इस बार वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल ने कई मीडिया संस्थानों में संपादक रहे और मध्य प्रदेश की पत्रकारिता में भीष्म पितामह कहे जाने वाले महेश श्रीवास्तव से चर्चा की। श्रीवास्तव ने वरदा नर्मदा किताब लिखी है। जन-जन की जुबान पर रहने वाला मध्य प्रदेश गान सुख का दाता, सबका साथी, सुख का ये संदेश है, मां की गोद, पिता का आश्रय अपना मध्य प्रदेश है- लिखने वाले महेश श्रीवास्तव ही हैं। श्रीवास्तव ने कई धारदार टिप्पणियां तो लिखी ही हैं, साथ ही कई साहित्यिक परंपरा भी निर्वहन किया है।
नर्मदा की बातें तो खूब, पर...
महेश श्रीवास्तव बताते हैं कि नर्मदा कैसे साफ होगी, वे कहते हैं कि सब नर्मदा को मां कहते हैं, ये कुछ ऐसा है कि मां पर कोई कविता लिखे, मां की भक्ति करे लेकिन उसे वृद्धाश्रम में रखे। नर्मदा के बर्बाद करने वाले रेत का उत्खनन करने वाले हैं। लोग नर्मदा में शौच करते हैं, उसमें गंदा बहाते हैं। जो साधु हैं, जिन्होंने मंदिर-मठ-आश्रम बनाए हुए हैं, वे मल और गंदा उसमें बहाए हुए हैं।
नर्मदा में गंगा भी स्नान को आती हैं
श्रीवास्तव ने बताया कि नर्मदा को किस प्रकार माना गया है ये बताया है। मार्कंडेय ने बताया था कि चाहे कुछ हो जाए, 7 कल्पों तक नर्मदा विलुप्त नहीं होंगी। लेकिन आज की स्थिति मां नर्मदा को बचाना जरूरी है। होशंगाबाद में गर्मी में प्रवाह 1/10 रह जाता है। नर्मदा इतनी पवित्र हैं, मोक्षदायिनी हैं कि उनके दर्शन मात्र से आप पापमुक्त हो जाते हैं। जब गंगा, लोगों को निर्मल करते-करते थक जाती हैं तो वे खुद एक बार नर्मदा स्नान (गंगा दशहरा) करने आती हैं। नर्मदा साल के वनों के बीच से गुजरती हैं, लेकिन बीते सालों में, चाहे कारण कुछ भी हों, साल के पेड़ जबर्दस्त तरीके से काटे गए। अमरकंटक से जबलपुर से वनों की भयंकर कटाई हुई है।
मध्य प्रदेश जड़ी-बूटियों का गढ़
श्रीवास्तव कहते हैं कि एक सर्वे में बताया गया था कि दुनिया में जितनी भी जड़ी-बूटी हैं, उनमें ज्यादातर या तो हिमालय क्षेत्र में हैं या पचमढ़ी-अमरकंटक में। इसके बाद हम रक्षा नहीं कर पा रहे। श्रीवास्तव ने नर्मदाष्टक से जुड़ा किस्सा भी बताया। नर्मदाष्टक की रचना आदि शंकराचार्य ने ओंकारेश्वर में की थी। कहा जाता है कि तब एक बार नर्मदा में भीषण बाढ़ आई थी, नर्मदा स्तुति के बाद उन्होंने बाढ़ को अपने कमंडल में ले लिया। एक किस्सा ये भी है कि शंकर ने जब नर्मदा स्तुति की तो नर्मदा की बाढ़ उतरने लगी। उस समय नर्मदा शंकराचार्य के गुरु की कुटिया तक पहुंच गई थी, गुरु तपस्या में लीन थे। शंकर को डर लगा कि उनके गुरु का क्या होगा, इसलिए उन्होंने स्तुति की।
हर मनुष्य कवि
श्रीवास्तव कहते हैं कि मैं मानता हूं कि मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाला हृदय में कहीं ना कहीं कवि होता है। मनुष्य के जीवन में शुरुआत से लेकर अंत तक काव्य होता है। पक्षियों का कलरव भी संगीत होता है, क्योंकि वो निर्बंध होता है। हवा में भी गान होता है। कविता में शब्द महत्वपूर्ण होता है। मैं कभी कान्हा गया था। एमपी टूरिज्म के हट्स में रुका था। वहां जंगलों में काफी प्रभावित हुआ। लौटते वक्त कविता लिखी- विदा कान्हा, विदा कान्हा...। साल के वृक्षों से सरसराई हवा ना ना ना ना...। हट्स के मार्ग में चुगते चीतल, मोर, भरी आंखों से देखा, बोल पड़े...फिर आना...।