पं. प्रदीप मिश्रा का छलका दर्द, रायसेन में बोले- मेरे शंकर को कैद से बाहर निकालो

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पं. प्रदीप मिश्रा का छलका दर्द, रायसेन में बोले- मेरे शंकर को कैद से बाहर निकालो

अम्बुज माहेश्वरी, रायसेन. रायसेन के ऐतिहासिक किले पर स्थित शिव मंदिर है। इस मंदिर को सोमेश्वर धाम कहा जाता है। इस मंदिर पर ताला लगा हुआ है। इसी मंदिर पर एक मजार भी है। इस मंदिर से ताले को खुलवाने के लिए 50 सालों से संघर्ष हो रहा है। भक्तों ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा से लेकर एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक से गुहार लगाई। साल 1955 में किले पर मंदिर-मजार के चलते साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति बन गई थी। इसके बाद किले पर स्थित शिव मंदिर पर जिला प्रशासन द्वारा ताला लगा दिया गया था। मंदिर का ताला खोलने के लिए साल 1974 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्वर्गीय रामनारायण चतुर्वेदी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन को खत्म करवाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी रायसेन पहुंचे थे। हेलीकॉफ्टर से पहुंचे मुख्यमंत्री सेठी ने मंदिर का ताला खुलवाया और शिवलिंग की विधिवत पूजा-अर्चना की। तब से साल में केवल एक बार महाशिवरात्रि के दिन प्रशासन की निगरानी में मंदिर का ताला खोला जाता है।





ये है पूरा मामला







रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया था। शेरशाह के शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई। रायसेन किले में 800 फीट ऊंचाई पर बने सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इसे परमारकालीन राजा उदयादित्य ने बनवाया था। मंदिर में भगवान शंकर के 2 शिवलिंग स्थापित हैं। 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा। यह फिलहाल पुरातत्व विभाग की देखरेख में है।





समय-समय पर स्थानीय लोगों ने मंदिर से ताला हटाने की मांग की है। इसी क्रम में 5 अप्रैल को रायसेन में प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने अपील की कि मंदिर से ताला खुलना चाहिए। उन्होंने किले के शिव मंदिर को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज हैं और उनके राज्य में शिव कैद में हैं, तो राज्य सत्ता किसी काम की नहीं ? उसके बाद से एक बार फिर मंदिर से ताला खुलवाने की मांग ने जोर पकड़ा है। मंदिर से ताला खुलवाने के लिए सोशल मीडिया से लेकर ज्ञापनबाजी तक होने लगी है। गौरतलब है कि पंडित मिश्रा ने अपनी कथा में कहा था कि धिक्कार है रायसेन वालों… शिव मंदिर में ताला डाला है और तुम दीवाली मना रहे हो ? शंकर के मंदिर में ताला है और तुम लड्डू खा रहे हो ? अरे.. आस-पास कोई तालाब हो तो चुल्लू भर पानी भरकर ले आओ और... पंडित मिश्रा ने व्यास गद्दी से भक्तों को संबोधित करते हुए कहा था कि मैं जानता हूं मामा सनातनी हैं, गृह मंत्री सनातनी हैं, प्रधानमंत्री सनातनी हैं। मैं चाहूंगा मेरे शंकर को कैद से बाहर निकाला जाए।





सिर्फ एक दिन खुलता है ताला





महाशिवरात्रि पर्व पर सुबह 6 बजे जिला प्रशासन के अधिकारियों और हिन्दू उत्सव समिति के पदाधिकारियों की उपस्थिति में ताला खोला जाता है। शाम को 6 बजे दोबारा ताला लगा दिया जाता है। शहर के बुजुर्ग बताते हैं कि देश के स्वाधीन होने के पहले ही मंदिर में पूजन का क्रम बन्द हो गया था। शिवलिंग भी मंदिर के बाहर मिला था, जिसे तब मंदिर में पुनः स्थापित किया गया। लेकिन इसके बाद साम्प्रदायिक तनाव बनने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रशासन व पुलिस के साथ मिलकर ताला डाल दिया।  





आंदोलनकारियों से मिलने पहुंचे थे तत्कालीन मुख्यमंत्री





साल 1974 तक इस मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर पाया था। तब नगर के हिंदू समाज और संगठनों ने मंदिर के ताले खोलने के लिए एक आंदोलन शुरू किया। तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और हिन्दू उत्सव समिति अध्यक्ष रहते स्वर्गीय रामनारायण चतुर्वेदी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी से आग्रह किया, तो खुद किला पहाड़ी पर मंदिर पहुंचे। उन्होंने ताला खुलवाया और पूजा-पाठ किया। तब से महाशिवरात्रि पर मंदिर परिसर में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाने लगा। शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं।





12 साल के संकल्प के साथ हर सुबह किले में पहुंचते थे देवीशरण





किले पर स्थित सोमेश्वर धाम में ताले की बात यूं तो पुरानी है। पिछले साल इस मंदिर से जुड़े एक शिवभक्त देवीशरण श्रीवास्तव की कोरोना से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद मंदिर काफी चर्चाओं में आया था। दरअसल देवीशरण ने 2015 में 12 वर्ष तक हर सुबह किले जाकर भोलेनाथ के दर्शन का संकल्प लिया था। उनके मन में मंदिर के ताले खुलवाने की प्रबल इच्छा थी। कोरोना से मौत के चार दिन पहले तक वे किले पर पैदल पहुंचे थे। उनकी मौत के बाद मंदिर के ताले खुलने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ा था।



 



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