ललित उपमन्यु, इंदौर. सुबह करीब आठ-साढ़े आठ बजे का वक्त होगा। इंदौर नगर निगम का अमला स्कीम नंबर 140 से लगी ग्रेटर ब्रजेश्वरी कॉलोनी में दो बुल्डोजर से अवैध निर्माण तोड़ रहा था। इन्हीं में एक बुल्डोजर चला रहे थे संजय लाल वर्मा। जिस मकान को तोड़ रहे थे, अचानक वो पूरा का पूरा जेसीबी पर आ गिरा। ड्राइविंग सीट पर बैठे संजय उसमें आधे दब गए। दुर्घटना के तीन हफ्ते बाद तक वे इंदौर के बांबे हॉस्पिटल में पट्टों में लिपटे बिस्तर पर हैं।
ड्राइवर का एक पैर आधा काटना पड़ा
जेसीबी के ड्राइवर का एक पैर आधा काटना पड़ा है, एक अंगूठा टूट गया है और दो ऊंगलियां आधी काटनी पड़ी हैं। पैरों को कहीं स्क्रू से साधा गया है तो कहीं रॉड से। बिस्तर पर लेटे वे खुद को हालात के हवाले कर चुके हैं। सिरहाने खड़ी पत्नी की आंखों में अजीब सी उदासी है और एक उम्मीद भी शायद नकली पैर से ही सही, पति अपने पैरों पर फिर चलने लगें।
संजय जो सीधी जिले के ठौरा गांव के रहने वाले हैं और इंदौर आए थे ढेर सारे सपने लेकर। सपने केवल अपने लिए नहीं, अपनों और बेगानों के लिए भी। यहां जेसीबी चलाने वाली एक निजी कंपनी में काम करते थे। इसी कंपनी के जेसीबी नगर निगम में अटैच हैं। निगम के अभियान में संजय कंपनी की तरफ से ही जेसीबी लेकर गए थे। तब उन्हें इल्म ही नहीं रहा होगा कि ये अभियान उनकी जिंदगी के अभियानों को ढहा देगा, दबा देगा।
पैसा कमाकर गांव लौटना चाहते थे
संजय कुल साढ़े सोलह हजार तनख्वाह की नौकरी का एक हिस्सा अपने गांव भेजते थे, जनसेवा के लिए। किसी के काम आ जाए। उनकी ख्वाहिश थी कि इंदौर में पैसा कमा लूंगा फिर लौटकर गांव की सेवा करूंगा। घर में दो छोटी बेटियां हैं, एक बेटा है। वे गांव में ही हैं। उन्हें तो शायद पता भी नहीं होगा कि पापा किस दौर से गुजर रहे हैं। हां, संजय जरूर जानते हैं कि आने वाला समय बहुत कठिन होने वाला है। अभी तो वे अपनी कंपनी और नगर निगम के अफसरों के आश्वासनों के भरोसे हैं। उन्होंने 'द सूत्र' से कहा- इलाज नगर निगम करवा रहा है। कंपनी ने दस हजार की सहायता भेजी थी। मुझे कहा गया है कि ठीक होने के बाद पैर भी लगवा देंगे और नौकरी भी देंगे। देखते हैं क्या होता है ?