राहुल शर्मा, भोपाल. नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। नए सत्र के साथ ही शुरू हो गई है प्रायवेट स्कूलों की मनमानी। स्कूलों और दुकानदारों के गठजोड़ ने अभिभावकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। नियमों के खिलाफ होने के बाद भी स्कूल अभिभावकों को तय दुकान से ही किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने का दबाव डाल रहे हैं। जो दुकान निर्धारित है, उस पर भी मनमाने दामों पर यूनिफॉर्म और किताबें मिल रही हैं। स्कूल एनसीईआरटी की जगह दूसरे पब्लिशर्स की महंगी किताबें बच्चों को पढ़ा रहे हैं। खुलेआम हो रहे इस गड़बड़झाले की तरफ प्रशासन भी आंखें बंद कर बैठा है।
बदलती रहती हैं निजी प्रकाशकों की किताबें
करीब 20 साल पहले तक एक प्रकार की पुस्तकें ही चला करती थी। जिसके चलते छोटा भाई, बड़े भाई की पुरानी किताबों का उपयोग कर लेता था। परिचित एक-दूसरे से पुस्तकों का लेना-देना करते थे। ये सिलसिला तब तक चलता था, जब तक कि वह पुस्तक पूरी तरह से पढ़ने लायक न रह जाए। लेकिन अब इन पुस्तकों से स्कूलों का सीधे तौर पर मोटा कमीशन जुड़ा रहता है इसलिए इनके पब्लिशर्स हर बार बदल जाते हैं। कमीशन का यह खेल इतना बढ़ा है कि सरकारी आदेश के बावजूद कुछ स्कूल तो 5वीं कक्षा तक एनसीईआरटी की बुक ही नहीं चला रहे हैं। 6वीं कक्षा से एनसीईआरटी की बुक निजी स्कूल की सूची में आती है। लेकिन वह भी ऑप्शनल सब्जेक्ट में, मुख्य विषयों की बुक तो निजी पब्लिशर्स की ही होती है।
नियमों में कई पेंच
जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ को सीबीएसई संबद्ध निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के तहत पॉवर दिया गया है। इस एक्ट की धारा 6 में बुक और स्टेशनरी से संबंधित दिशा-निर्देश तो दिए हैं। लेकिन एनसीईआरटी शब्द का कहीं कोई उपयोग नहीं किया गया। मतलब एक्ट यह तो कहता है कि बुक और स्टेशनरी जैसी अन्य सामग्री सार्वजनिक प्रदर्शित की जाए, लेकिन स्कूल में एनसीईआरटी की बुक चलाना अनिवार्य है या किसी कक्षा में कम से कम इतनी बुक एनसीईआरटी की होना जरूरी है। ऐसा कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। भोपाल जिला शिक्षा अधिकारी नितिन सक्सेना कहते हैं कि एक्ट के कारण ही हमारे हाथ बंधे हैं, नहीं तो हम कार्रवाई करते हैं।
पड़ताल में यह सच आया सामने
द सूत्र की पड़ताल में सामने आया कि कार्मल कान्वेंट भेल स्कूल में पहली से 6वीं कक्षा तक एक भी बुक एनसीईआरटी की नहीं है। वहीं सेंट जोसफ स्कूल अरेरा कॉलोनी में सिर्फ 6वीं क्लास में उर्दू ऑप्शनल सब्जेक्ट में ही एनसीईआरटी की बुक ली गई है। डीपीएस में 6वीं क्लास में 3, जीवीएन ग्लोबल पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा में उर्दू ऑप्शनल और 6वीं कक्षा में गणित विषय की बुक एनसीईआरटी की ली गई है। लेकिन इसके साथ ही इसी कक्षा में गणित विषय की एक निजी पब्लिशर्स की बुक को भी ऐड कर दिया गया। मतलब एक कक्षा में एक ही विषय की दो बुक स्टूडेंट को पढ़नी होगी।
ऐसे समझे निजी पब्लिशर्स की पुस्तकों में कमीशन का खेल
पेरेंट्स पराग अग्रवाल बताते हैं कि सीबीएसई ने निजी स्कूलों को एनसीईआरटी की पुस्तकें चलाने के लिए तो कहा, पर उस आदेश में यह स्पष्ट रूप से कहीं नहीं लिखा कि आप निजी पब्लिशर्स की पुस्तकें नहीं चला सकते। जिसका फायदा निजी स्कूलों ने उठाया और एनसीईआरटी पुस्तकों के साथ या तो उसी विषय से जुड़ी महंगे पब्लिशर्स की अन्य पुस्तकें भी चला दी या फिर महंगे पब्लिशर्स की कुछ विषयों की पुस्तकें ऐड कर दी। जवाहर स्कूल की 9वी कक्षा की एनसीईआरटी की 10 पुस्तकें 810 रूपए की है वहीं निजी पब्लिशर्स की मात्र 3 पुस्तकें 1055 की है, इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सीबीएसई स्कूल निजी पब्लिशर्स की पुस्तकें चलाने के नाम पर क्या लूट कर रहे हैं। वहीं एमजीएम स्कूल की कक्षा 5वीं की पुस्तकों में तो एक भी एनसीईआरटी की पुस्तकें नहीं है। यहां 14 पुस्तकें 3382 रूपए में आ रही है।
आदेश पर आदेश निकले पर पालन एक का भी नहीं
सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन यानी सीबीएसई ने 12 अप्रैल 2016 और 19 अप्रैल 2017 को स्कूलों से ही या चयनित दुकानों से पुस्तकें, स्टेशनरी, यूनिफार्म, स्कूल बेग खरीदने के संबंध में आदेश जारी किया था। जिसमें कहा गया कि बच्चों और उनके पालकों पर चयनित दुकान या किसी चयनित निजी प्रकाशक की पुस्तकों को खरीदने का दबाव नहीं बनाया जा सकता। वहीं इन्हीं आदेशों का हवाला लेकर 31 मार्च 2018 को स्कूल शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश ने भी सभी कलेक्टर्स को पत्र लिखकर आदेशित किया कि म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के अंतर्गत ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की जाए जो लाभ कमाने के लिए पालकों पर महंगी पुस्तकें, स्कूल ड्रेस और एक चयनित दुकान से ही खरीदने का दबाव बना रहे हैं, पर इन आदेशों का कभी पालन नहीं हुआ।
कुछ ने किताबें नहीं बदली,बढ़ा दी कॉपियों की संख्या
दो साल से कोविड महामारी के कारण स्कूल पूरी तरह से खुल नहीं पाए, जिसके कारण कुछ प्राइवेट स्कूल का जिस पब्लिशर्स से टाइपअप था उतना टारगेट पूरा नहीं हो पाया। इससे बहुत से स्कूलों ने इस बार पुस्तकें तो नहीं बदली, लेकिन कमाई कम न हो इसके लिए कॉपियों की संख्या बढ़ा दी। इससे एक मोटा कमीशन स्कूलों की जेब में जा रहा है। राजधानी के जवाहर स्कूल, सागर पब्लिक स्कूल, सेंट जोसेफ व अन्य प्राइवेट स्कूलों ने पेरेंट्स को लूटने का यही तरीका अपनाया है।
बढ़ता जा रहा स्कूल बेग का बोझ
स्कूल बेग का बोझ कम करने सीबीएसई ने 4 मई 2006 को सर्कुलर क्रमांक 07/2006 जारी कर स्कूल बेग के बढ़ते बोझ को कम करने एक आदेश जारी किया। जिसमें तय हुआ कि पहली कक्षा में सिर्फ 3 पुस्तकें, तीसरी कक्षा में 4 और पांचवी कक्षा में 6 पुस्तकें ही रहेंगी। इसी तरह अन्य कक्षाओं की पुस्तकों की संख्या भी निर्धारित की गई। इसका उद्देश्य यह था कि कक्षा पहली और दूसरी में बेग का वजन 1.5 किलो, कक्षा तीसरी से पांचवी तक के लिए 2 से 3 किलो, कक्षा 6वीं और 7वीं के लिए 4 किलो, कक्षा 8वीं और 9वीं के लिए 4.5 किलो और कक्षा 10वीं के लिए स्कूल बेग का वजन 5 किलो से ज्यादा न हो। पर कमीशन के खेल के चक्कर में स्कूल बेग का बोझ बढ़ता ही गया। दिल्ली पब्लिक स्कूल में कक्षा 4 और 5वीं में 20—20 और 6वीं कक्षा में 21 कॉपी और किताब स्टूडेंट को लेना पड़ता है। सेंट जोसफ स्कूल में यह संख्या 14 से 15 तक है।
फिक्स दुकानों के भेज जा रहे मैसेज
स्कूल संचालक पेरेंट्स के मोबाइल फोन पर मैसेज भेजकर उन्हें फिक्स दुकानों से किताब खरीदने का दबाव बना रहे हैं। फिक्स दुकानों से पेरेंट्स महंगी किताबें खरीदकर लुट रहे हैं। द सूत्र ने ऐसे ही एक स्टोर बुक्स एंड बुक्स गुरूकुल स्टोर्स कोलार रोड पर जाकर मामले की पड़ताल की। यहां एक कर्मचारी ने बताया कि सेज इंटरनेशनल स्कूल की तीसरी कक्षा की बुक करीब 3 हजार रूपए की आएगी और यदि नोटबुक भी लेते हैं तो कम्पलीट सेट 4 हजार 10 रूपए का आएगा। जो बुक की लिस्ट कर्मचारी द्वारा बताई जा रही थी उसमें एक भी बुक एनसीईआरटी की नहीं थी।
पालक महासंघ का सवाल: शिक्षा माफिया पर कब चलेगा बुलडोजर
प्राइवेट स्कूलों की इस मनमानी के लिए पालक महासंघ ने सरकार द्वारा दी जा रही छूट को दोषी ठहराया है। पालक महासंघ के अध्यक्ष कमल विश्वकर्मा ने कहा कि शिवराज मामा आजकल माफिया पर बुलडोजर चला रहे हैं, लेकिन वे ये बताए कि शिक्षा माफिया पर कब बुलडोजर चलाएंगे।