Bhopal. राजधानी भोपाल में बीघ की मूवमेंट फिर कैप्चर हुई है। जब भी शहर से सटे इलाके में बाघ मूवमेंट होता है तो एक सवाल जरूर उठता है कि शहर में बाघ की दस्तक का दोषी कौन है? जानकार बताते हैं कि लगातार शहरी सीमा के अंदर बाघ का मूवमेंट कोई शुभ संकेत नहीं माना जा सकता। इससे मानव और बाघ के बीच आज नहीं तो कल टकराव की स्थिति बनेगी। इसका नतीजा हाल ही में बिहार के बाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व के बाघ से जोड़कर देखा जा सकता है। यहां बाघ और मानव के बीच टकराव इस कदर बढ़ा की बाघ ने 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। मजबूरन चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने इस बाघ को मारने के आदेश दिए और शिकारियों को बुलाकर इस पर निशाना साधकर ढेर किया गया। सवाल यह उठता है कि क्या मध्यप्रदेश सरकार भी भोपाल में इसी दिन का इंतजार कर रही है...जब बाघ और मानव के बीच टकराव इस हद तक बढ़ जाए कि बाघ और मानव में से किसी एक का ही चुनाव करना हो। क्योंकि बाघ तो उन्हीं रास्तो से आ रहा है जिस रास्ते का उपयोग उसकी फैमली के अन्य बाघों द्वारा सालों से किया जाता रहा है। पर्यावरणविद् राशिद नूर खान का आरोप है कि बाघ मूवमेंट एरिए में सरकार खुद नान फारेस्ट एक्टिविटी को बढ़ावा देकर इस तरह की स्थिति बनाने में लगी हुई है। सूत्र शुरू से कहता रहा है कि शहर की सीमा में बाघ नहीं आए बल्कि बाघ मूवमेंट एरिया में शहर घुस चुका है।
शहर में लगातार शोर—शराबा, फिर भी कैसे अंदर आ जाता है बाघ
शहर का भले ही बाघ मूवमेंट एरिया में अतिक्रमण हो गया हो लेकिन यह बात भी सही है कि इन इलाकों में लोगों के रहने और वाहनों के आने—जाने से शोर—शराबा इतना बढ़ गया है कि बाघ मूवमेंट में व्यवहारिक तौर पर थोड़ी बहुत जो कमी दिखाई देनी थी वह भी नहीं दिखाई दे रही। द सूत्र ने इसकी पड़ताल की और पूरे मामले को समझा। इसके पीछे 3 प्रमुख कारण सामने आए...
1. भौगोलिक स्थिति ऐसी कि भटक रहा बाघ
कलियासोत नदी के पास के दोनो ओर के इलाके देखने में जंगल ही लगते हैं, भले ही यहां अब कालोनियों और इमारतों ने जगह ले ली हो। दानिश हिल की पहाड़ी पहले पूरी तरह जंगल ही थी, अब यहां इमारत है पर निचला सिरा अब भी झाड़ियों से ढका है, चंदनपुरा जंगल से आने वाला बाघ इन झाड़ियों को अब भी जंगल मानकर यहां पहुंच जाता है, यहां से दानिश हिल बामुश्किल 20 से 50 मीटर दूर ही है। कलियासोत नदी के दूसरी ओर खुशीलाल आयुर्वेद अस्पताल से पहले भी ग्रीनरी बहुत अधिक है। वॉल्मी के जंगल की ओर से आने वाला बाघ इस ग्रीनरी को जंगल समझकर आगे की ओर निकल जाता है, जिससे इसका मूवमेंट खुशीलाल आयुर्वेद अस्पताल, मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी यानी मैनिट की ओर हो जाता है।
2. आसानी से शिकार मिल जाता है
शहरी सीमा या उसके अंदर बाघ को आसानी से अपना शिकार मिल जाता है। यहां वह अधिकतर गाय और भैंस को अपना शिकार बनाता है जो किसी बाघ के लिए सबसे आसान शिकार होता है। दानिश हिल के नीचे के भाग पर लगी झाड़ियों में जंगली और पालतु सुंअरों बड़ी संख्या में है, बाघ इन्हें भी आसानी से अपना शिकार बना लेता है। इसके अलावा कलियासोत नदी और डेम में यह पानी पीने भी आता रहता है। जानकार यह भी मानते हैं कि जंगल में शिकार कम होने से भी यह स्थिति बनी है।
3. वाल्मी के कटीले तार सबसे बड़ी समस्या
शहर में बाघ की दस्तक का सबसे बड़ा दोषी जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान यानी वाल्मी ही है। वाल्मी ने अपनी 89 हेक्टेयर की लैंड को कवर करने के लिए जगह—जगह कटीले तार लगा दिए हैं। वाल्मी की इसी लैंड पर घना जंगल है जो बाघ मूवमेंट एरिया है। अधिकांश जगह यह कटीले तार ही लगे हैं, कुछ जगहों पर छोटी सी जगह पर तार नहीं है। बाघ इन रास्तों से कलियासोत नदी या डेम की ओर निकल आता है, पर कटीले तारों की वजह से भटककर शहर की ओर बढ़ जाता है।
कटीले तारों को लेकर वाल्मी का खुद की पीठ थपथपाना कितना सही!
कटीले तारों से वन्य प्राणियों के जीवन पर भी खतरा रहता है, इसमें फंसकर वह घायल हो सकते हैं और मर भी सकते हैं, इसलिए नियमानुसार इन्हें नहीं लगाया जा सकता। इसकी जगह 10 से 12 फीट की तार फेंसिंग की जा सकती है, जो वन विभाग ने अपने इलाकों में की भी है। इससे हटकर वाल्मी ने अपने पूरे इलाके को इन्हीं कटीले तारों से कवर कर रखा है। पर्यावरणविद् राशिद नूर खान ने कहा कि इस तरह की ब्लेड फेंसिंग लगाना गलत है, उन्होंने वन विभाग को इसकी शिकायत की थी, पर अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली। यह नियमों का सीधा उल्लंघन है। ताज्जुब की बात यह कि वाल्मी अपनी इस गलती पर खुद की पीठ थपथपाने से भी नहीं चुकता। 30 सितंबर 2022 को जारी एक प्रेसनोट के अनुसार वाल्मी का मानना है कि यही फेंसिंग मानव और बाघ के टकराव को रोकने में कामयाब हुई है और इसी फेंसिंग के कारण बाघ शहर में कम प्रवेश कर रहा है। जबकि हकीकत इससे उलट है। वाल्मी से कलियासोत की ओर बाघ का जाना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, यदि यह कटीले तार न हो तो वह शहर की ओर बढ़ने की बजाए आसानी से वाल्मी के जंगल में वापस लौट जाए।
अब समझिए... इस बार किस रास्ते से आया बाघ
राजधानी में सबसे पहले बाघ करीब 10 दिन पहले वाल्मी के ही मेन गेट के पास रात 7.30 से 8 बजे के बीच देखा गया। यह बाघ यहां करीब 2 घंटे रहा। इसके बाद कटीले तारों की वजह से यहीं से नीचे उतर गया। सड़क पार की और खुशीलाल आयुर्वेद अस्पताल की ग्रीनरी को जंगल समझते हुए कलियासोत डेम के पिछले हिस्से से खुशीलाल अस्पताल से होते हुए मैनिट पहुंच गया। दानिश हिल पर बीते दो दिनों से जो बाघ की दहाड़ सुनाई दे रही है। यह बाघ चंदनपुरा के जंगल से आया और शिकार करने के लिए झाड़ियों में छुप गया। यहां संतोष गोस्वामी ने बताया कि दो दिनों से बाघ के दहाड़ा की आवाज सुनाई दे रही है। बता दें कि इसके ठीक सामने चंदनपुरा का वही इलाका है जहां नगर वन के साथ माननियों के रिश्तेदारों के साथ साथ रसूखदारों की जमीन है। द सूत्र चंदनपुरा, केरवा और कलियासोत के जंगल में हुए अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर लगातार खुलासे करता रहा है।